"तालदेवरी की सुबह – आज़ादी के रंग" ✍️ समीर खूंटे की कलम से

समीर खूंटे की कलम से: रात ढल चुकी थी। आसमान में चाँद जैसे अपनी आखिरी पहरेदारी दे रहा था। हवा में हल्की-सी उमस थी, जैसे सावन की विदाई और भादो की दस्तक मिलकर मौसम को उलझा रही हो। तालदेवरी गाँव के बीच से गुजरने वाली कच्ची गलियों में सन्नाटा पसरा था, पर हर घर में एक हलचल थी "कल 15 अगस्त है, झंडा फहराना है, सबको जल्दी उठना है" ये बातें फुसफुसाते हुए लोग अपने-अपने काम निपटा रहे थे।

दूर खेतों में, धान की बालियाँ हवा में ऐसे झूम रही थीं जैसे वो भी आज़ादी का गीत गा रही हों। नहरों में पानी कल-कल बहता, अपनी ही धुन में गाँव को सींच रहा था। और कहीं दूर से आती भोर की चिड़ियों की चहचहाहट, जैसे एक नए दिन का स्वागत कर रही हो।

भोर की पहली किरण

15 अगस्त की सुबह, उगते सूरज ने तालदेवरी को सुनहरी चादर ओढ़ा दी। आसमान का रंग हल्का गुलाबी था और खेतों के ऊपर ओस की बूंदें मोतियों-सी चमक रही थीं। गाँव की गलियों में सफाई हो चुकी थी, चौक-चौराहे सज चुके थे। पंचायत भवन, आंगनबाड़ी, प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हर जगह तिरंगे के रंग में रंगी सजावट थी।

गाँव के बच्चे अपने-अपने हाथों में छोटे-छोटे तिरंगे लेकर दौड़ते फिर रहे थे। लड़कियों के बालों में तिरंगे की रिबन बंधी थी और लड़के अपने सीने पर बैज लगाए इतराते फिर रहे थे।

विद्यालय का आँगन

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तालदेवरी का प्रांगण उस दिन जैसे एक मेले में बदल गया था। ध्वजारोहण की तैयारी पूरी हो चुकी थी। एक तरफ स्कूल के शिक्षक और बच्चों की कतार, दूसरी तरफ ग्राम पंचायत के सभी जनप्रतिनिधि अपनी पारंपरिक वेशभूषा में मौजूद थे।

ध्वजारोहण के इस गरिमामयी क्षण के साक्षी बने:
श्रीमती सीमा सोनवानी (सरपंच), श्री मुनीराम साहू (उपसरपंच), श्रीमती प्रीति साहू, श्री श्रीराम साहू, श्रीमती मुनिया बाई यादव, श्रीमती मंजूलता राजपूत, श्रीमती सावित्री बाई मनहर, श्रीमती शुकवारा बाई खुंटे, श्रीमती रमा देवी साहू, श्रीमती कशिश देवी मनहर, श्री कलेश्वर खुंटे, श्री हरबचन खुंटे, श्री रथराम खुंटे, श्री जयपाल साहू, श्रीमती पूजा आजाद, श्रीमती मोहर बाई मनहर, श्रीमती बद्रिका खुंटे, श्री गनपत कुरें,
श्रीमती जानकी बाई साहू और श्री परस राम दिवाकर सबके चेहरे पर गर्व और उत्साह साफ झलक रहा था।

ध्वज फहराने का क्षण

जब सरपंच श्रीमती सीमा सोनवानी ने धीरे-धीरे रस्सी खींचकर तिरंगे को लहराया, तो पूरे मैदान में "भारत माता की जय" और "वंदे मातरम्" के स्वर गूंज उठे। बच्चों की आँखों में चमक थी, बुजुर्गों के चेहरे पर संतोष, और जवानों के दिल में गर्व।

गाँव के किसान भी अपने-अपने खेतों से आकर इस समारोह में शामिल हुए। उनकी धूप में तपी हथेलियाँ, पसीने की महक और चेहरे पर आज़ादी का गर्व ये सब मिलकर इस दृश्य को और भी पवित्र बना रहे थे।

गाँव की आत्मा में देशभक्ति

ध्वजारोहण के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। छोटे बच्चों ने देशभक्ति गीत गाए, किशोरों ने नाटक प्रस्तुत किए, और युवाओं ने तिरंगा लेकर दौड़ लगाई। आंगनबाड़ी की बहनों ने "जय जवान, जय किसान" पर आधारित गीत गाया, जिसे सुनकर कई बुजुर्गों की आँखें नम हो गईं।

तालदेवरी के व्यापारी वर्ग ने भी इसमें हिस्सा लिया। मिठाई, पानी और ठंडे पेय की व्यवस्था थी। कार्यक्रम के दौरान गाँव के हर व्यक्ति के चेहरे पर एक ही रंग था देशभक्ति का रंग

प्रकृति का आशीर्वाद

धान के खेत हवा के झोंकों के साथ लहराते रहे, जैसे वो भी तिरंगे की सलामी दे रहे हों। नहर का पानी अपनी मधुर आवाज़ में जैसे कह रहा हो"इस मिट्टी को सींचना मेरा धर्म है"। और सूरज की किरणें गाँव के हर कोने को आशीर्वाद देती रहीं।

समीर खूंटे की कलम से अंतिम पंक्तियाँ

आजादी के 78 साल बाद भी तालदेवरी की मिट्टी में वही जुनून है जो शायद 1947 में था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब लोगों ने अपने लहू से तिरंगे को सींचा था, और आज लोग अपने पसीने से इस धरती को सींच रहे हैं। किसान, व्यापारी, अध्यापक, बच्चे, महिलाएँसब मिलकर इस गाँव की रूह में देशभक्ति का रंग भरते हैं।

इस साल का 15 अगस्त तालदेवरी के लिए सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा और प्रकृति के बीच का वो पवित्र संवाद था, जिसमें तिरंगा सिर्फ एक झंडा नहीं, बल्कि गर्व, त्याग और एकता का प्रतीक बन गया।