भक्ति की प्राप्ति होने के उपरान्त दुष्प्रवृत्तियों का दहन भी आवश्यक: कथा व्यास रमेश भाई शुक्ल

अमित श्रीवास्तव

शिवगढ़ रायबरेली। क्षेत्र के गुमावां बॉर्डर पर आयोजित अष्ट दिवसीय हनुमत कथा के सप्तम दिवस, रविवार को हनुमत कथा का व्याख्यान करते हुए कथा व्यास रमेश भाई शुक्ल ने हनुमान जी की अदभुद लीलाओं का वर्णन किया, उन्होंने कहा कि सीता जी की खोज में लंका पहुंचे हनुमान जी ने सबसे पहले माता सीता के दर्शन के किए और उसके बाद अपनी पूंछ से लंका को जलाकर राख दिया, तत्पश्चात समुद्र में कूद कर अपनी पूंछ बुझाई। कथा व्यास ने भक्तों से कहा कि हनुमान जी द्वारा सीता जी की खोज अथवा उनके दर्शन के बाद लंका दहन के प्रसंग से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि, सीता माता भक्ति का स्वरुप हैं, और लंका, दुष्प्रवृत्तियों का स्वरुप है, इसलिए जब भी हमें सत्संग, भक्ति अथवा पूजा इत्यादि का सौभाग्य का प्राप्त हो, तब हमें अपनी कुछ न कुछ बुराइयों या दुष्प्रवृत्तियों को दहन भी अवश्य ही करना चाहिए, तभी भक्ति प्राप्ति होने अर्थात कथा श्रवण, सत्संग या पूजा इत्यादि की सार्थकता है। इस अवसर पर पण्डित लालमनि शुक्ल, आनन्द शुक्ल, लवलेश शुक्ल, अवनीश शुक्ल, सूरज सिंह, गुमावां प्रधान प्रदीप सिंह, नेरथुवा प्रधान प्र. बलबीर सिंह नीरज मौर्य, ध्यानू पाण्डेय, शशांक दीक्षित, चन्द्र मोहन दीक्षित, अनुज अवस्थी, आदि हजारों भक्त गण उपस्थित रहे।