फिर कागजों में सिमट कर न रह जाए पौधरोपण

फिर कागजों में सिमट कर न रह जाए पौधरोपण

अम्बेडकरनगर
धरती को हरा भरा बनाने और पर्यावरण संतुलन के उद्देश्य से वन विभाग द्वारा हर साल बरसात के मौसम में बड़े पैमाने पर पौधारोपण किया जाता है। इस बार भी बरसात के मौसम में पौधारोपण करने की जनपद में व्यापक तैयारियां चल रही हैं।जानकारी के अनुसार इस वर्ष वन विभाग द्वारा जनपद अम्बेडकर नगर में लगभग 35 लाख पौधे रोपे जाने हैं और पौधारोपण के लिए तेज गति से कार्य किए जा रहे हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि पौधारोपण के बाद इनमें से कितने पौधे अपना अस्तित्व बचा पाएंगे। ऐसी भी आशंका जताई जा रही है कि पिछले वर्षों की तरह इस बार भी पौधरोपण अभियान कहीं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर सिर्फ कागजों में सिमटकर तो नहीं रह जाएगा।जनपद में पिछले एक दशक में हुए पौधारोपण अभियान की स्थिति तो यही बयां कर रही है कि इसमें शासकीय धन की काफी बर्बादी हुई है, जबकि मौके से पौधे नदारद हैं। सुरक्षा इंतजामों के बगैर पौधरोपण कार्यक्रम महज औपचारिकता तक ही सीमित रह जाते हैं। देखा जाए तो गत वर्षों में पौधरोपण तो व्यापक स्तर पर हुए लेकिन पौधों की सुरक्षा के लिए आने वाले बजट का बंदरबांट हो गया। इससे अधिकांश पौधे समुचित देखरेख के अभाव में नष्ट हो गए। हर साल यही प्रक्रिया परंपरागत रूप से सतत चल रही है। वनविभाग द्वारा पौधारोपण किया जाता है, अधिकारी फोटो खिंचवाते हैं , प्रकाशित करवा के वाहवाही लूटते हैं लेकिन फिर बाद में इन पौधों के रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है, जिससे पौधारोपण का औचित्य सार्थक सिद्ध नहीं हो पा रहा है। पौधरोपण के नाम पर होने वाली खानापूर्ति में बस सरकारी धन का दुरुपयोग ही हो रहा है।विभागीय अधिकारियों ने बडे़ बडे़ दावे कर पौधो को सुरक्षा व संरक्षण देने की बात कही थी। लेकिन मौके पर देखा जाए तो वहां पौधे नहीं हैं, जबकि अभियान के तहत हुए पौधारोपण के बाद इनकी सेटेलाइट के जरिए मोनिटरिंग होनी थी, लेकिन फिर भी यह अभियान कागजों में ही सिमटकर रह गया और जिम्मेदार अधिकारियों के दावे हवा हवाई ही साबित हुए हैं।पौधारोपण कार्यक्रम के तहत यदि पुराने आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो करोड़ों रुपये इस पर खर्च हुए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पौधों का कोई अता पता नहीं है। गत वर्ष लगभग 25 लाख पौधे वन विभाग द्वारा रोपे गए थे। लेकिन, ये पौधे कहां हैं,यह किसी को पता नहीं है।इस बार भी इस योजना के नाम पर फिर लाखो करोड़ों की धनराशि सरकारी खजाने से बाहर निकल जायेगी और बड़ा खेल जिम्मेदार विभाग करके डकार भी लेगे और अभियान भी कागजी बाजीगरी की भेंट चढ़ना तय है।यह एक अहम सवाल विभाग सहित जिम्मेदारो के समक्ष खड़ा हो गया है। जिसका परिणाम यह है कि पर्यावरण की स्थित बेहद दयनीय हो गयी है। इसी तरह इसके पूर्व के वर्षो के आंकड़ो पर नजर डाली जाये तो वृक्षारोपण के नाम पर केवल सरकारी धन की बंदरबांट ही नजर आयेगी और कागजी बाजीगरी का खेल कर अधिकारी अपनी पीठ भले थपथपा ले लेकिन सच यही है कि वृक्ष नजर नहीं आयेंगे। इस वर्ष भी पूर्व के वर्षो की तरह पूरे जोश और खरोश के साथ वृक्षारोपण अभियान की शुरूआत की जा रही है।