इसे कहते हैं जननेता: जब डॉ. सतीश पूनिया के 'अंदाज' ने सिस्टम को जगाया

राजनीति में पद महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है नेता का 'इकबाल' और काम करवाने का उनका अंदाज। आज श्रीगंगानगर के सर्किट हाउस में जो वाकया हुआ, वह इस बात का सटीक उदाहरण है कि अगर नेतृत्व में इच्छाशक्ति हो, तो प्रशासनिक मशीनरी को कैसे सक्रिय किया जाता है।

आज सर्किट हाउस में बीजेपी के वरिष्ठ नेता डॉ. सतीश पूनिया से मिलने के लिए आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष पहुंचे। लोगों की समस्या सीधी और बुनियादी थी?सड़क पर पसरा गंदा पानी। यह एक ऐसी समस्या है जिससे आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। डॉ. पूनिया ने न केवल धैर्यपूर्वक उनकी बात सुनी, बल्कि तत्काल समाधान की दिशा में कदम भी उठाया।

​समस्या सुनने के बाद डॉ. पूनिया ने मौके से ही एडीएम (ADM) को फोन मिलाया। उन्होंने केवल निर्देश नहीं दिए, बल्कि अपनी बात को उस वजन के साथ रखा, जो एक जननेता की पहचान होती है। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट शब्दों में कहा कि समस्या का समाधान तुरंत होना चाहिए।

​इस बातचीत का सबसे अहम हिस्सा वह चेतावनी थी, जिसने वहां मौजूद हर व्यक्ति का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा:अगर आपसे ये काम नहीं हुआ, तो मैं जयपुर से आकर इस काम को करवा दूंगा।

​यह वाक्य महज एक धमकी नहीं, बल्कि प्रशासन के लिए एक सीधा संदेश था कि जनहित के मुद्दों पर कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

​काम करवाने का 'स्टाइल' और सिस्टम की समझ....

​इस पूरे घटनाक्रम पर अगर गौर करें, तो एक बात साफ है?काम करवाने के अपने-अपने स्टाइल होते हैं। डॉ. पूनिया का यह अंदाज बताता है कि वे सिस्टम की नब्ज को पहचानते हैं।

​अक्सर देखा जाता है कि अधिकारी फाइलों और प्रक्रियाओं का हवाला देते हैं, लेकिन जब कोई कद्दावर नेता अपने विशिष्ट अंदाज में बात करता है, तो प्रशासन भी समझ जाता है कि मामला कितना गंभीर है। अधिकारी नेता के कहने के लहजे (Tone) से ही भांप लेते हैं कि यह सिर्फ एक औपचारिक कॉल' है या सख्त निर्देश'।

​डॉ. पूनिया ने एडीएम से जिस तरह बात की, उसने यह साफ कर दिया कि जनता की परेशानी को टालना अब संभव नहीं होगा।

​लोकतंत्र में जनता को ऐसे ही नेताओं की दरकार होती है जो अपनी ताकत का इस्तेमाल आम आदमी की राह आसान करने के लिए करें। आज का यह संवाद यह साबित करता है कि जब नेता की नीयत साफ हो और अंदाज सख्त हो, तो सिस्टम को काम करना ही पड़ता है। इसे ही कहते हैं असली नेता।