पेड़ तो दिखते नहीं, ताड़ी कहां से टपक रही हुजूर

पेड़ तो दिखते नहीं, ताड़ी कहां से टपक रही हुजूर

ताड़ी ऐसी टपक रही है मानो स्वर्ग से अमृत धारा बह रही है

ताड़ी के शौकीनों जरा संभल के कही केमिकल और नशीली दवाओं का कॉकटेल ना हो जाए, अगली बार गिलास उठाएं तो जरा सोच ले__ये ताड़ी पेड़ से टपकी है या किसी केमिकल कारखाने का करिश्मा है

अंबेडकरनगर
जिले में ताड़ और खजूर के पेड़ नाममात्र ही नजर आते हैं, लेकिन इन पेड़ों के नाम पर ताड़ी की अविरल धारा प्रवाहित हो रही है। हैरत की बात है कि इन पेड़ों की संख्या में भी कमी या वृद्धि नहीं आ रही। ऐसे में विभाग ठेकेदारों को पुरानी संख्या के आधार पर लाइसेंस जारी कर राजस्व बटोर रहा, वहीं यह धंधा करने वाले लोग मालामाल हो रहे। विभाग के मुताबिक अकबरपुर व टांडा आबकारी क्षेत्र में ताड़ के कुल 3362 व खजूर के 3835 पेड़ हैं। यह गणना 5 वर्ष पुरानी है,इनसे निकलने वाली ताड़ी की बिक्री के लिए लाइसेंस जारी किया गया है। इनके जरिए दुकानों का संचालन किया जा रहा है। अकबरपुर क्षेत्र के एक दुकानदार द्वारा साढ़े तीन सौ ताड़ व खजूर का पेड़ अपने अधीन होना दर्शाया गया है। इसी तरह ज्यादातर लाइसेंसियों ने डेढ़ से दो सौ तक पेड़ होने के दावे किए हैं। इसी आधार पर विभाग इनसे राजस्व वसूलकर लाइसेंस प्रदान कर रहा है। हैरत की बात है कि जिन पेड़ों को दर्शाकर विभाग लाइसेंस जारी कर रहा है, उनकी माकूल गणना तक की व्यवस्था नहीं है। कारण कुछ पेड़ हर साल नष्ट होते होंगे तो शायद कुछ लगाए भी जाते होंगे। ऐसे में ताड़ी के धंधे के पीछे झोल ही झोल नजर आता है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि ताड़ी की जितनी बिक्री है उसके लिए न तो इतने पेड़ हैं और न ही जो पेड़ हैं उनसे निकासी ही हो पा रही है। कारण ताड़ व खजूर के पेड़ में ताड़ी निकालने के लिए लभनी (ताड़ी निकालने के बर्तन और पाइप) तक नजर नहीं आती। ऐसे में इस बात की आशंका प्रबल है कि दुकानदार बनावटी ताड़ी तैयार कर बिक्री कर रहे हैं। इसमें घातक केमिकल व कुछ नशीली दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में इसका सेवन करने वाले लोग गाहे-बगाहे जान तक गंवा रहे हैं। इतना ही नहीं प्राप्त जानकारी के अनुसार लाइसेंस के सापेक्ष दर्जनों उप दुकानें भी अवैध रूप से संचालित की जा रही हैं। विभाग इस पर शिकंजा नहीं कस पा रहा। जिला आबकारी अधिकारी का कहना है कि पेड़ों की गणना निरीक्षकों के जिम्मे है। चौबीस घंटे में एक पेड़ से चार से दस लीटर तक ताड़ी रोजाना निकलती है। आबकारी निरीक्षक से वार्ता करने का प्रयास किया गया परंतु आबकारी निरीक्षक का फोन नॉट रीचेबल बताता रहा सबसे बड़ी विडंबना सरकारी अफसरों को बीएसएनल नंबर ही प्रोवाइड कराया जाता है चाहे वह थाने का हो चाहे किसी भी जिम्मेदार उच्च अधिकारी का हो उनको बीएसएनल नंबर ही प्राप्त होता है और लगभग सभी लोगों को कॉल करने के प्राय बाद यही उत्तर सुनाई देता है की फोन कवरेज क्षेत्र से बाहर है या तो फोन स्विच ऑफ है।