प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर की भूमि मिजोरम अब भारतीय रेलवे के मानचित्र पर

प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर की भूमि मिजोरम अब भारतीय रेलवे के मानचित्र पर

बैराबी-सैरांग रेल लाइन की सफलता के साथ आइज़ोल रेल नेटवर्क से जुड़ा

पूर्वोत्तर भारत का सुंदर और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध राज्य मिज़ोरम अब भारत के राष्ट्रीय रेलवे मानचित्र पर गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करने जा रहा है। ?लैंड ऑफ द हिल पीपल? के रूप में प्रसिद्ध मिज़ोरम, जो म्यांमार, बांग्लादेश और त्रिपुरा, असम तथा मणिपुर जैसे भारतीय राज्यों की सीमाओं से घिरा हुआ है, अब पहली बार सीधे रेल नेटवर्क से जुड़ गया है। इसकी राजधानी आइज़ोल को राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ने वाली बैराबी-सैरांग नई रेल लाइन का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है, जो राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत 29 नवम्बर 2014 को हुई थी जब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बैराबी से सैरांग तक नई रेल लाइन का उद्घाटन वर्चुअल माध्यम से किया था। इसके पश्चात 27 मई 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा बैराबी और सिलचर के बीच पहली यात्री ट्रेन को वर्चुअली रवाना किया गया। 21 मार्च 2016 को पहली ब्रॉड गेज मालगाड़ी बैराबी स्टेशन पर पहुंची, जो 42 वैगनों में चावल लेकर आई थी। इसके बाद 1 मई 2025 को सैरांग (आइज़ोल के निकट) तक पहली बार ट्रेन का सफल ट्रायल रन हुआ, जिसमें पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (निर्माण) के महाप्रबंधक की उपस्थिति रही। इसके साथ ही रेल संरक्षा आयुक्त (CRS) द्वारा अंतिम खंड ? होर्टोकी से सैरांग का निरीक्षण पूरा किया गया, जिससे 51.38 किलोमीटर लंबी इस रेल परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ और आइज़ोल पहली बार भारत के रेल नेटवर्क से सीधे जुड़ गया।

यह मिज़ोरम को भारत के उन चार पूर्वोत्तर राज्यों की सूची में शामिल करता है, जिनकी राजधानी सीधे रेलवे से जुड़ी हुई है। इस परियोजना की कुल लागत लगभग ₹8071 करोड़ है और यह चार खंडों में पूरी की गई है: बैराबी?होर्टोकी (16.72 किमी), होर्टोकी?कांवपुई (9.71 किमी), कांवपुई?मुआलखांग (12.11 किमी) और मुआलखांग?सैरांग (12.84 किमी)। इस परियोजना के अंतर्गत 48 सुरंगें (कुल लंबाई: 12,853 मीटर), 55 बड़े पुल, 87 छोटे पुल, 5 रोड ओवर ब्रिज और 6 रोड अंडर ब्रिज का निर्माण किया गया है। इसमें पुल संख्या 196 विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसकी ऊंचाई 114 मीटर है- जो कुतुब मीनार से 42 मीटर अधिक है।

इस परियोजना की एक अनूठी विशेषता यह है कि इसमें मिज़ोरम की समृद्ध संस्कृति और परंपरा को रेल संरचना में सम्मिलित किया गया है। बैराबी-सैरांग रेल मार्ग की सुरंगों को मिज़ो संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले सुंदर भित्तिचित्रों से सजाया गया है, जिससे रेल यात्रा केवल परिवहन का माध्यम नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक अनुभव बन जाती है। यह न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा बल्कि स्थानीय कला को भी नई पहचान दिलाएगा।

रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से यह परियोजना पूर्वोत्तर क्षेत्र में कनेक्टिविटी को मजबूत बनाती है। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों और तकनीकी चुनौतियों को पार कर यह परियोजना न केवल माल और यात्री परिवहन को सुलभ बनाएगी, बल्कि इससे परिवहन लागत में कमी आएगी, पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा, स्थानीय व्यापार एवं रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे तथा पूर्वोत्तर राज्यों के बीच संपर्क और एकजुटता को बल मिलेगा। मिज़ोरम जैसे राज्य के लिए यह परियोजना विकास के द्वार खोलेगी और इसे देश की मुख्यधारा से और सशक्त रूप से जोड़ेगी।

बैराबी-सैरांग रेल लाइन केवल एक आधारभूत संरचना परियोजना नहीं, बल्कि यह समावेशी विकास, सांस्कृतिक गर्व और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। मिज़ोरम अब रेल के माध्यम से पूरे भारत का स्वागत करने के लिए तैयार है।

इस परियोजना के अंतर्गत ईलेक्ट्रिफिकेशन का कार्य प्रगति पर है जो शीघ्र ही पूर्ण होने की संभावना है। साथ ही सैरांग से म्यांमार के समीप हिबिचुआ तक 223 किमी के सर्वे को मंजूरी मिल चुकी है और शीघ्र ही सर्वेक्षण कार्य प्रारम्भ हो जाएगा।

बैराबी-सैरांग रेल लाइन परियोजना के शुरू होने से इस क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे। वर्तमान समय में यह क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं की कमी, संसाधनों की दुर्लभता और कमजोर सड़क नेटवर्क के कारण विकास से काफी पीछे रह गया है। जीवन यापन की लागत यहाँ अत्यधिक है क्योंकि आवश्यक वस्तुएँ अन्य राज्यों या दूर-दराज़ के इलाकों से आयात करनी पड़ती हैं, जिससे उनकी कीमतों में वृद्धि हो जाती है। परिवहन साधनों की कमी और कठिन भूगोल के कारण आम लोगों को दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

बैराबी-सैरांग रेल परियोजना के चालू हो जाने से इस क्षेत्र में माल और यात्री परिवहन दोनों में सुगमता आएगी। रेलमार्ग द्वारा संसाधनों की आवाजाही तेज, सुलभ और सस्ती हो जाएगी, जिससे वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी। नतीजतन, उपभोक्ता वस्तुओं के दामों में कमी आएगी और जीवन यापन की लागत में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिलेगी। स्थानीय व्यवसायों को भी इसका लाभ मिलेगा क्योंकि वे अब बाहरी बाज़ारों तक अपने उत्पाद आसानी से पहुँचा सकेंगे।

इसके अतिरिक्त, यह रेल लाइन बैराबी से होकर राज्य की राजधानी आइज़ोल तक जाने वाले पर्यटकों के लिए एक नया और सुविधाजनक मार्ग प्रदान करेगी। मिज़ोरम की प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विविधता और शांत वातावरण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं, किंतु आज तक सीमित कनेक्टिविटी के कारण इस क्षेत्र का पर्यटन संभावनाओं के अनुरूप विकसित नहीं हो पाया है। रेल सेवा शुरू होने से देश के अन्य हिस्सों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नया प्रोत्साहन मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

यह क्षेत्र भारत का सीमावर्ती क्षेत्र है, जो सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय सेना के लिए यहाँ त्वरित पहुँच एक रणनीतिक आवश्यकता है। रेल कनेक्टिविटी उपलब्ध होने से सैन्य बलों और आवश्यक सामग्री को शीघ्र और प्रभावी ढंग से स्थानांतरित किया जा सकेगा। किसी आपातकालीन परिस्थिति में यह रेलमार्ग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत एवं बचाव कार्य भी अधिक तेज़ी से संभव हो पाएंगे।

अब यह स्टेट कैपिटल कनेक्टिविटी का कार्य सिक्किम, त्रिपुरा, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और असम इन पाँच राज्यों में पूर्ण हो चुका है। नागालैंड, मणिपुर और मेघालय में कार्य प्रगति पर है।