एम्स रायबरेली मे बाल शल्य चिकित्सा दिवस मनाया गया

रायबरेली।भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और उनके बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आज देशभर में 'बाल शल्य चिकित्सा दिवस' मनाया जा रहा है।यह दिन न केवल बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का है,बल्कि चिकित्सा जगत की उस विशेषज्ञता को सम्मान देने का भी है जिसने पिछले कुछ दशकों में लाखों बच्चों को नया जीवन दिया है। इस वर्ष की थीम हर बच्चे के लिए सुरक्षित और सुलभ सर्जरी के साथ,भारत अपने समृद्ध चिकित्सा इतिहास और आधुनिक उपलब्धियों को भी याद कर रहा है। एम्स रायबरेली के बाल शल्य चिकित्सा विभाग द्वारा संस्थान में इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।कार्यक्रम का उद्घाटन कार्यकारी निदेशक डॉ अमिता जैन ने किया।अपने स्वागत संभाषण में विभागाध्यक्ष डॉ सुनीता सिंह ने बताया कि हमें बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए। बच्चे के शरीर में किसी भी प्रकार की असामान्य गांठ या बनावट दिखने पर तुरंत विशेषज्ञ पेडियाट्रिक सर्जन से सलाह लें। सामान्य सर्जनों के बजाय बच्चों के विशेषज्ञ से ही इलाज कराएं क्योंकि बच्चों की शारीरिक संरचना और रिकवरी प्रक्रिया वयस्कों से भिन्न होती है। विभाग के अन्य संकाय सदस्य डॉ उमेश गुप्ता और डॉ दिव्या ने बताया कि सर्जरी की सलाह मिलने पर घबराएं नहीं, समय पर लिया गया निर्णय बच्चे को जीवनभर की अक्षमता से बचा सकता है।सर्जरी केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक बच्चे को उसका पूरा भविष्य वापस देने का माध्यम है।हमारा लक्ष्य केवल सर्वाइवल नहीं, बल्कि एक स्वस्थ और संपूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है।मुख्य अतिथि डॉ जैन ने अपने संबोधन में बताया कि ? बाल शल्य चिकित्सा दिवस' हमें याद दिलाता है कि स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच हर बच्चे का मौलिक अधिकार है।सरकार और समाज को मिलकर स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि सेव सर्जरी फॉर एवरी चाइल्ड' का लक्ष्य धरातल पर उतारा जा सके।कार्यक्रम में उप निदेशक (प्रशासन) कर्नल अखिलेश सिंह, वित्तीय सलाहकार कर्नल यू एन राय, अपर चिकित्सा अधीक्षक डॉ नीरज कुमार श्रीवास्तव, सामान्य शल्य चिकित्सा के अन्य संकाय, प्रोफेसर, अधिकारी और रोगी एवं उनके तीमारदार उपस्थित थे।प्राचीन भारत से आधुनिक युग तक का सफर बाल शल्य चिकित्सा की जड़ें भारत में अत्यंत प्राचीन हैं। महान चिकित्सक सुश्रुत के काल में भी बच्चों की सर्जरी के प्रमाण मिलते हैं।हालांकि आधुनिक काल में इसकी नींव 20वीं शताब्दी की शुरुआत में रखी गई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एनेस्थीसिया, एंटीबायोटिक्स और गहन देखभाल (आईसीयू) में हुई प्रगति ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी।

वैश्विक पहचान: 1963 में ब्रिटेन के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जरी ने इसे एक औपचारिक विशेषज्ञता के रूप में मान्यता दी।

भारतीय अग्रदूत: भारत में आधुनिक पीडियाट्रिक सर्जरी को डॉ.पी.के.सेन और डॉ.एस.एन.बोस जैसे दिग्गजों ने नई दिशा दी।वर्ष 1965 में 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक सर्जन्स' (आईएपी एस) का गठन एक मील का पत्थर साबित हुआ।

जीवित रहने की जंग से 'बेहतर जीवन' की ओर

आज पीडियाट्रिक सर्जरी केवल जान बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मुख्य फोकस बच्चे की 'क्वालिटी ऑफ लाइफ' (जीवन की गुणवत्ता) पर है। आधुनिक तकनीकों ने इसे और भी सटीक बना दिया है।

न्यूनतम आक्रामक और रोबोटिक सर्जरी: अब बच्चों के ऑपरेशन छोटे छेदों के माध्यम से होते हैं, जिससे दर्द कम और रिकवरी तेज होती है।

भ्रूण हस्तक्षेप: अब गर्भ के अंदर ही बच्चे की विकृतियों का इलाज करना संभव हो रहा है।

विशेषज्ञता के नए क्षेत्र: नियोनेटल (नवजात) सर्जरी, यूरोलॉजी और ऑन्कोलॉजी (कैंसर) में बच्चों के लिए विशेष उपचार उपलब्ध हैं।

चुनौतियां और भविष्य की राह

भारत में आज 1,800 से अधिक पीडियाट्रिक सर्जन हैं, जो प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के मेल से बच्चों का उपचार कर रहे हैं। हालांकि, विशेषज्ञ सर्जनों की संख्या को बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों तक इन सुविधाओं को पहुँचाने की चुनौती अब भी बरकरार है।

देश में विशेषज्ञों की भारी कमी:रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्तमान में बच्चों के विशेषज्ञ सर्जनों की संख्या जरूरत से काफी कम है।आदर्श रूप से प्रत्येक 3 लाख की आबादी पर एक पेडियाट्रिक सर्जन होना चाहिए, जिसके हिसाब से भारत को कम से कम 4000 सर्जनों की आवश्यकता है।हालांकि, वर्तमान में केवल 2000 के लगभग विशेषज्ञ ही कार्यरत हैं। यह अंतर देश के ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर चुनौती को दर्शाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सुरक्षित सर्जरी के लिए केवल सर्जन ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए समर्पित अस्पताल, विशेष उपकरण और प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ का होना भी अनिवार्य है।

बच्चों में सर्जिकल समस्याएं: लक्षण और प्रकार

बाल शल्य चिकित्सकों के अनुसार, बच्चों में सर्जरी की जरूरत वाली समस्याओं को दो श्रेणियों में बांटा गया है:

जन्मजात विकृतियां: इसमें स्पाइना बिफिडा (रीढ़ की हड्डी का दोष), शरीर के बाहरी अंगों में गांठ या फोड़ा, कटे हुए होंठ और तालु, तथा मलद्वार की जन्मजात असामान्यताएं शामिल हैं।

बाद में विकसित होने वाली समस्याएं: इसमें हर्निया, आंतों में रुकावट, अपेंडिक्स और लिवर में मवाद जैसी गंभीर स्थितियां शामिल हैं।

माता-पिता की जागरूकता ही पहला बचाव है

इस अवसर पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने माता-पिता और समुदाय से अपील की है कि वे बच्चों की सर्जिकल समस्याओं के प्रति सजग रहें। अक्सर जानकारी के अभाव में माता-पिता देरी कर देते हैं, जिससे समस्या जटिल हो जाती है।