"तालदेवरी की सुबह और आज़ादी का 78वां सूरज"

समीर खूंटे की कलम से:-सुबह का समय। सूरज अभी क्षितिज से झांक ही रहा था। आसमान के एक कोने में हल्की-सी सुनहरी रेखा चमकने लगी थी, मानो रात की चादर को धीरे-धीरे हटाकर कोई अदृश्य हाथ दिन की शुरुआत का संकेत दे रहा हो। गाँव तालदेवरी की हवा में आज कुछ अलग ही मिठास थी। हल्की-हल्की उमस, पसीने की गंध और खेतों से उठती मिट्टी की महक ? सब मिलकर एक अद्भुत सुगंध बना रहे थे। यह सिर्फ एक साधारण सुबह नहीं थी, यह आज़ादी के 78वें स्वतंत्रता दिवस की सुबह थी।

गाँव के खेतों में धान की बालियाँ हवा के हल्के झोंकों में झूम रही थीं। लगता था जैसे वे भी देशभक्ति के गीतों की लय पर नृत्य कर रही हों। पास की नहर से पानी का कल-कल बहना, और किनारे बैठी चिड़ियों की चहचहाहट ? मानो प्रकृति खुद आज के दिन के लिए संगीत तैयार कर रही हो। कहीं दूर से बच्चों की हंसी की आवाज़ आ रही थी; वे शायद आज के झंडा-रोहण समारोह की तैयारी में लगे थे।

गाँव का हृदय ? पंचायत भवन

तालदेवरी का पंचायत भवन आज किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था। रंग-बिरंगी झालरें, फूलों की मालाएँ, और बीच में गर्व से खड़ा भारत का तिरंगा ? हर देखने वाले की आँखों में चमक भर रहा था। गाँव के बुज़ुर्ग, किसान, व्यापारी, महिलाएँ, बच्चे ? सब एक-एक करके यहाँ इकट्ठा हो रहे थे। उनके चेहरों पर थकान नहीं, बल्कि उम्मीद और गर्व की रेखाएँ साफ झलक रही थीं।

ध्वजारोहण के इस गरिमामयी क्षण के साक्षी बने ग्राम पंचायत के सभी जनप्रतिनिधि ?

सरपंच श्रीमती सीमा सोनवानी,

उपसरपंच श्री मुनीराम साहू,

वहीं विशिष्ट अतिथि के तौर पर पंचगण श्रीमती प्रीति साहू, श्री श्रीराम साहू, श्रीमती मुनिया बाई यादव, श्रीमती मंजूलता राजपूत, श्रीमती सावित्री बाई मनहर, श्रीमती शुकवारा बाई खुंटे, श्रीमती रमा देवी साहू, श्रीमती कशिश देवी मनहर, श्री कलेश्वर खुंटे, श्री हरबचन खुंटे, श्री रथराम खुंटे, श्री जयपाल साहू, श्रीमती पूजा आजाद, श्रीमती मोहर बाई मनहर, श्रीमती बद्रिका खुंटे, श्री गनपत कुरें, श्रीमती जानकी बाई साहू और श्री परस राम दिवाकर, समाज सेवक महेश बंजारे, समीर खूंटे (क्राईम रिपोर्ट)

इन सबकी उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि पंचायत की एकता ही गाँव की असली ताकत है।

ध्वजारोहण ? एक पवित्र क्षण

जब सरपंच श्रीमती सीमा सोनवानी ने तिरंगे को फहराया, तो उसकी फड़फड़ाहट की आवाज़ गाँव के दिल की धड़कन जैसी लगी। राष्ट्रगान शुरू हुआ, और हर कोई सीना तानकर खड़ा हो गया। उन 52 सेकंड में न समय का अहसास रहा, न उमस का ? बस तिरंगे के साथ दिल भी लहराने लगे। बच्चों के चेहरों पर गर्व, बुज़ुर्गों की आँखों में आँसू, और किसानों के माथे पर पसीना ? यह सब मिलकर आज़ादी का असली अर्थ बता रहे थे।

समीर खूंटे की कलम से

सुबह का समय। सूरज अभी क्षितिज से झांक ही रहा था। आसमान के एक कोने में हल्की-सी सुनहरी रेखा चमकने लगी थी, मानो रात की चादर को धीरे-धीरे हटाकर कोई अदृश्य हाथ दिन की शुरुआत का संकेत दे रहा हो। गाँव तालदेवरी की हवा में आज कुछ अलग ही मिठास थी। हल्की-हल्की उमस, पसीने की गंध और खेतों से उठती मिट्टी की महक ? सब मिलकर एक अद्भुत सुगंध बना रहे थे। यह सिर्फ एक साधारण सुबह नहीं थी, यह आज़ादी के 78वें स्वतंत्रता दिवस की सुबह थी।

गाँव के खेतों में धान की बालियाँ हवा के हल्के झोंकों में झूम रही थीं। लगता था जैसे वे भी देशभक्ति के गीतों की लय पर नृत्य कर रही हों। पास की नहर से पानी का कल-कल बहना, और किनारे बैठी चिड़ियों की चहचहाहट ? मानो प्रकृति खुद आज के दिन के लिए संगीत तैयार कर रही हो। कहीं दूर से बच्चों की हंसी की आवाज़ आ रही थी; वे शायद आज के झंडा-रोहण समारोह की तैयारी में लगे थे।

गाँव का हृदय ? पंचायत भवन

तालदेवरी का पंचायत भवन आज किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था। रंग-बिरंगी झालरें, फूलों की मालाएँ, और बीच में गर्व से खड़ा भारत का तिरंगा ? हर देखने वाले की आँखों में चमक भर रहा था। गाँव के बुज़ुर्ग, किसान, व्यापारी, महिलाएँ, बच्चे ? सब एक-एक करके यहाँ इकट्ठा हो रहे थे। उनके चेहरों पर थकान नहीं, बल्कि उम्मीद और गर्व की रेखाएँ साफ झलक रही थीं।

ध्वजारोहण के इस गरिमामयी क्षण के साक्षी बने ग्राम पंचायत के सभी जनप्रतिनिधि ?
सरपंच श्रीमती सीमा सोनवानी,
उपसरपंच श्री मुनीराम साहू,
और पंचगण श्रीमती प्रीति साहू, श्री श्रीराम साहू, श्रीमती मुनिया बाई यादव, श्रीमती मंजूलता राजपूत, श्रीमती सावित्री बाई मनहर, श्रीमती शुकवारा बाई खुंटे, श्रीमती रमा देवी साहू, श्रीमती कशिश देवी मनहर, श्री कलेश्वर खुंटे, श्री हरबचन खुंटे, श्री रथराम खुंटे, श्री जयपाल साहू, श्रीमती पूजा आजाद, श्रीमती मोहर बाई मनहर, श्रीमती बद्रिका खुंटे, श्री गनपत कुरें, श्रीमती जानकी बाई साहू और श्री परस राम दिवाकर

इन सबकी उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि पंचायत की एकता ही गाँव की असली ताकत है।

ध्वजारोहण ? एक पवित्र क्षण

जब सरपंच श्रीमती सीमा सोनवानी ने तिरंगे को फहराया, तो उसकी फड़फड़ाहट की आवाज़ गाँव के दिल की धड़कन जैसी लगी। राष्ट्रगान शुरू हुआ, और हर कोई सीना तानकर खड़ा हो गया। उन 52 सेकंड में न समय का अहसास रहा, न उमस का ? बस तिरंगे के साथ दिल भी लहराने लगे। बच्चों के चेहरों पर गर्व, बुज़ुर्गों की आँखों में आँसू, और किसानों के माथे पर पसीना ? यह सब मिलकर आज़ादी का असली अर्थ बता रहे थे।

स्कूलों की भागीदारी ? नन्हों के सपनों का मंच

आज का समारोह सिर्फ ध्वजारोहण तक सीमित नहीं था। पंचायत भवन के पास ही शासकीय प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित थे।

मुख्य आकर्षण रहा ? कक्षा 6वीं में पढ़ने वाली रागिनी मनहर, अनन्या मनहर, तमन्ना खूंटे, चित्रलेखा पटेल और चंचल खूंटे का छत्तीसगढ़ी राजकीय गीत पर शानदार नृत्य। उनकी नन्ही टोलियाँ, रंग-बिरंगे परिधानों में, जब ताल से ताल मिलाकर नृत्य कर रही थीं, तो लगा मानो तिरंगा खुद उनके पांवों के साथ नाच रहा हो। दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया। यह पल सिर्फ मनोरंजन नहीं था, यह गाँव की अगली पीढ़ी के सपनों और संस्कारों का सजीव चित्र था।

किसान और व्यापारी ? गाँव की रीढ़

तालदेवरी के किसान आज सुबह भी अपने खेतों में गए थे, क्योंकि फसल को समय की परवाह होती है। लेकिन आज उन्होंने काम जल्दी निपटाया, ताकि समारोह में शामिल हो सकें। उनके चेहरे पर यह गर्व साफ था कि वे अन्नदाता होने के साथ देशभक्ति के भी सच्चे प्रहरी हैं।
गाँव के व्यापारी भी अपनी दुकानें समय से पहले बंद कर, हाथों में तिरंगा लिए पंचायत भवन पहुंचे। यह नजारा बताता था कि देशभक्ति न तो खेत तक सीमित है, न दुकान तक ? यह पूरे गाँव की साँसों में बसी है।

प्रकृति का आशीर्वाद और चुनौतियाँ

78वें स्वतंत्रता दिवस की यह सुबह उमस भरी जरूर थी, लेकिन आसमान में बादलों की पतली परतें उम्मीद दे रही थीं कि बरसात अभी बाकी है। खेतों में लहराते धान और नहरों में बहता जल, गाँव की समृद्धि के प्रतीक थे। चिड़ियों की चहचहाहट और उगते सूरज की रोशनी ने मानो पूरे तालदेवरी को एक सुनहरी चादर में लपेट दिया हो।

लेकिन उमस की तपिश ने हमें यह भी याद दिलाया कि आज़ादी सिर्फ जश्न नहीं, जिम्मेदारी भी है ? मौसम की चुनौतियों, किसानों की समस्याओं और गाँव की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी।

भावनाओं की डोर

एक संपादकीय लिखते वक्त कलम कई बार रुकती है, लेकिन आज मेरी कलम इसलिए रुक रही है क्योंकि दिल भर आता है। जब देखता हूँ कि तालदेवरी के बच्चे तिरंगे के नीचे हंस रहे हैं, किसान सीना ताने खड़े हैं, व्यापारी ताली बजा रहे हैं, और बुज़ुर्ग गर्व से मुस्कुरा रहे हैं ? तो लगता है, यही है असली भारत।

आज़ादी के 78 साल बाद भी तालदेवरी की मिट्टी में वही खुशबू है, जो शायद 15 अगस्त 1947 की सुबह में रही होगी।

आख़िरी शब्द

आज तालदेवरी ने यह साबित कर दिया कि देशभक्ति किसी शहर की संपत्ति नहीं, यह गाँव की आत्मा है।
यहाँ का उगता सूरज, लहराते धान, नहर का बहता जल, और लोगों की एकता ? सब मिलकर एक संदेश देते हैं:
"आज़ादी का असली जश्न तब है, जब हम सब एक साथ खड़े हों ? चाहे खेत में हों, दुकान में हों या स्कूल में।"

तिरंगे की छांव में खड़े होकर तालदेवरी ने यह वादा किया है कि आने वाले सालों में भी यह एकता, यह प्रेम, और यह गर्व कभी कम नहीं होगा।
और मैं, समीर खूंटे, इस संपादकीय को लिखते हुए सिर्फ इतना कह सकता हूँ ?
"तालदेवरी, तू सच में भारत की धड़कन है।"

स्कूलों की भागीदारी ? नन्हों के सपनों का मंच

आज का समारोह सिर्फ ध्वजारोहण तक सीमित नहीं था। पंचायत भवन के पास ही शासकीय प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित

मुख्य आकर्षण रहा ? कक्षा 6वीं में पढ़ने वाली रागिनी मनहर, अनन्या मनहर, तमन्ना खूंटे, चित्रलेखा पटेल और चंचल खूंटे का छत्तीसगढ़ी राजकीय गीत पर शानदार नृत्य कर सभी आगंतुक दर्शकों का मन मोह लिया। उनकी नन्ही टोलियाँ, रंग-बिरंगे परिधानों में, जब ताल से ताल मिलाकर नृत्य कर रही थीं, तो लगा मानो तिरंगा खुद उनके पांवों के साथ नाच रहा हो। दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया। यह पल सिर्फ मनोरंजन नहीं था, यह गाँव की अगली पीढ़ी के सपनों और संस्कारों का सजीव चित्र था।

किसान और व्यापारी ? गाँव की रीढ़

तालदेवरी के किसान आज सुबह भी अपने खेतों में गए थे, क्योंकि फसल को समय की परवाह होती है। लेकिन आज उन्होंने काम जल्दी निपटाया, ताकि समारोह में शामिल हो सकें। उनके चेहरे पर यह गर्व साफ था कि वे अन्नदाता होने के साथ देशभक्ति के भी सच्चे प्रहरी हैं।

गाँव के व्यापारी भी अपनी दुकानें समय से पहले बंद कर, हाथों में तिरंगा लिए पंचायत भवन पहुंचे। यह नजारा बताता था कि देशभक्ति न तो खेत तक सीमित है, न दुकान तक ? यह पूरे गाँव की साँसों में बसी है।

प्रकृति का आशीर्वाद और चुनौतियाँ

78वें स्वतंत्रता दिवस की यह सुबह उमस भरी जरूर थी, लेकिन आसमान में बादलों की पतली परतें उम्मीद दे रही थीं कि बरसात अभी बाकी है। खेतों में लहराते धान और नहरों में बहता जल, गाँव की समृद्धि के प्रतीक थे। चिड़ियों की चहचहाहट और उगते सूरज की रोशनी ने मानो पूरे तालदेवरी को एक सुनहरी चादर में लपेट दिया हो।

लेकिन उमस की तपिश ने हमें यह भी याद दिलाया कि आज़ादी सिर्फ जश्न नहीं, जिम्मेदारी भी है ? मौसम की चुनौतियों, किसानों की समस्याओं और गाँव की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी।

भावनाओं की डोर

एक संपादकीय लिखते वक्त कलम कई बार रुकती है, लेकिन आज मेरी कलम इसलिए रुक रही है क्योंकि दिल भर आता है। जब देखता हूँ कि तालदेवरी के बच्चे तिरंगे के नीचे हंस रहे हैं, किसान सीना ताने खड़े हैं, व्यापारी ताली बजा रहे हैं, और बुज़ुर्ग गर्व से मुस्कुरा रहे हैं ? तो लगता है, यही है असली भारत।

आज़ादी के 78 साल बाद भी तालदेवरी की मिट्टी में वही खुशबू है, जो शायद 15 अगस्त 1947 की सुबह में रही होगी।

आख़िरी शब्द

आज तालदेवरी ने यह साबित कर दिया कि देशभक्ति किसी शहर की संपत्ति नहीं, यह गाँव की आत्मा है।

यहाँ का उगता सूरज, लहराते धान, नहर का बहता जल, और लोगों की एकता ? सब मिलकर एक संदेश देते हैं:

"आज़ादी का असली जश्न तब है, जब हम सब एक साथ खड़े हों ? चाहे खेत में हों, दुकान में हों या स्कूल में।"

तिरंगे की छांव में खड़े होकर तालदेवरी ने यह वादा किया है कि आने वाले सालों में भी यह एकता, यह प्रेम, और यह गर्व कभी कम नहीं होगा।

और मैं, समीर खूंटे, इस संपादकीय को लिखते हुए सिर्फ इतना कह सकता हूँ ?

"तालदेवरी, तू सच में भारत की धड़कन है।"