मुहर्रम हिम्मत, ईमान और हक़ के लिए खड़े होने का सबक़ देता है ज़ैनब फ़ातिमा*

बरेली-: मुहर्रम मुसलमानों के मुक़द्दस महीनों में से एक है, यह इस्लामी साल का पहला महीना है और माहे रमज़ान के बाद दूसरा मुक़द्दस तरीन महीना है मुहर्रम उल हराम में क़र्बला की जंग में इस्लाम की बक़ा के लिए इमामे हुसैन रज़ि० अपने एहलो अयाल के साथ शहीद हुए। मुहर्रम की दस तारीख़ को यौमे आशूरा कहा जाता है और बहुत से मुसलमान इस दिन रोज़ा रखते हैं। यह इमामे हुसैन रज़ि० की क़ुर्बानियों की अक्कासी और ताज़ीम का वक़्त है। मुहर्रम के पहले दस दिनों में मुसलमान इमामे हुसैन रज़ि० की शहादत पर सोग मनाते हैं। यक़ीनन मुहर्रम उल हराम हिम्मत, ईमान और हक़ के लिए खड़े होने का सबक़ देता है। मुहर्रम का महीना हमें इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की क़ुर्बानियों को याद करने का है। जिन्होंने सच्चाई और इंसाफ़ की राह पर चलने के लिए अपनी जान की क़ुर्बानी दी। यह अल्लाह की इबादत करने और नेक काम करने का भी महीना है, इस महीने में अल्लाह से दुआएं मांगनी चाहिए, और ज़रूरतमन्दों की मदद भी करनी चाहिए। मुहर्रम का मुक़द्दस महीना हमें अपने अंदर बदलाव लाने और बेहतर इंसान बनने की सीख देता है मुहर्रम हमें सिखाता है कि मुश्किलों और मुसीबतों में सब्र से काम लेना चाहिए हमें हमेशा हक़ और इंसाफ़ के लिए जद्दोजहद करना चाहिए भले ही इसके लिए कितनी भी क़ुर्बानी देनी पड़े। मुहर्रम का मुक़द्दस महीना हमें हक़ और इंसाफ़ की राह पर चलने का सबक़ देता है और साथ ही यह सिखाता है कि अपने अक़ाइद पर डटे रहना चाहिए और नाइंसाफ़ी के लिए आवाज़ बुलंद करना चाहिए, यह महीना हमें सब्र, क़ुर्बानी और सच्चाई का दर्स देता है। हमें ईमान की रौशनी में इस्लामिक हिदायतों पर अमल करके अपनी ज़िन्दगी गुज़ारनी चाहिए।