1931 की जातिगत जनगणना में ब्राह्मण नहीं, ये जातियां थीं सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी — 2027 की जनगणना से पहले उठे पुराने आंकड़ों पर सवाल

🔴 **CitiUpdate विशेष समाचार रिपोर्ट**

🗓️ 8 जून 2025 | रिपोर्टर: समीर खूंटे

📍 जांजगीर-चांपा / नई दिल्ली

### 1931 की जातिगत जनगणना में ब्राह्मण नहीं, ये जातियां थीं सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी ? 2027 की जनगणना से पहले उठे पुराने आंकड़ों पर सवाल

देशभर में जातिगत जनगणना की तैयारियों के बीच 1931 की आखिरी जातिगत जनगणना के आंकड़े एक बार फिर सुर्खियों में हैं। 94 साल पहले हुई उस ऐतिहासिक गणना ने कई ऐसी सच्चाइयाँ सामने रखी थीं जो आज भी चौंकाती हैं।

अब जब सरकार ने ऐलान कर दिया है कि 1 मार्च 2027 से पूरे देश में जातिगत जनगणना शुरू की जाएगी, तो यह जानना जरूरी हो गया है कि 1931 में किस जाति की शिक्षा और सामाजिक स्थिति कैसी थी।

### 📌 कौन था सबसे पढ़ा-लिखा? सच्चाई कुछ और ही थी...

1931 की जनगणना के मुताबिक, जिस ब्राह्मण समुदाय को पारंपरिक रूप से सबसे साक्षर माना जाता है, वह देशभर में पांचवें नंबर पर था। सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे जातीय समूह थे:

* वैद्य (पश्चिम बंगाल):

➤ पुरुष साक्षरता: 78%

➤ महिला साक्षरता: 48.6%

* नायर (केरल):

➤ पुरुष: 60.2%

➤ महिला: 27.6%

* कायस्थ (महाराष्ट्र, बिहार आदि):

➤ पुरुष: 60.7%

➤ महिला: 19.1%

* खत्री (पंजाब):

➤ पुरुष: 45%

➤ महिला: 12.6%

* ब्राह्मण (राष्ट्रीय औसत):

➤ पुरुष: 43.7%

➤ महिला: 9.6%

(हालांकि, बॉम्बे प्रांत में पुरुष 78.8% और महिलाएं 23.1% साक्षर थीं)

### 🧑?🌾 पिछड़े वर्ग और दलित समुदाय की स्थिति

* कुर्मी (OBC):

➤ पुरुष साक्षरता: 12.6%

➤ महिला: 1.2%

* तेली (OBC):

➤ पुरुष: 11.4%

➤ महिला: 0.6%

* महार (SC, डॉ. अंबेडकर का समुदाय):

➤ पुरुष: 4.4%

➤ महिला: 0.4%

* यादव:

➤ पुरुष: 3.9%

➤ महिला: 0.2%

### 📍उत्तर और दक्षिण भारत में शिक्षा का अंतर

1931 के आंकड़ों से साफ था कि दक्षिण भारत के समुदायों में साक्षरता ज्यादा थी।

धार्मिक शिक्षा से अधिक आधुनिक शिक्षा की ओर झुकाव के कारण, केरल, मद्रास और मैसूर जैसे राज्यों में साक्षरता बेहतर रही।

उत्तर भारत के ब्राह्मणों और राजपूतों में धार्मिक पठन-पाठन ही मुख्यधारा में था, आधुनिक शिक्षा पीछे रही।

### 🗓️ 2027 की जाति जनगणना: एक नया अध्याय

95 साल बाद एक बार फिर देश अब जातिगत आंकड़ों को दर्ज करने जा रहा है।

हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में यह प्रक्रिया अक्टूबर 2026 से ही शुरू होगी।

जनगणना में केवल जाति नहीं, बल्कि शिक्षा, रोजगार, आय और सामाजिक स्थिति को भी महत्व दिया जाएगा।

### 🧭 यह आंकड़े क्यों मायने रखते हैं?

1931 की जनगणना से यह बात उजागर हुई कि शिक्षा केवल किसी जाति के पारंपरिक दर्जे से तय नहीं होती। बल्कि अवसर, सामाजिक परिस्थितियाँ और जागरूकता बड़ी भूमिका निभाती हैं। अब 2027 की जनगणना में यह देखना रोचक होगा कि क्या पिछली स्थिति में सुधार हुआ है या असमानता अब भी कायम है।

🖊️ "गिनती सिर्फ सिरों की नहीं, हालात की होनी चाहिए ? तभी देश को असली दिशा मिलेगी।"

📢 CitiUpdate विशेष संवाददाता समीर खूंटे की रिपोर्ट...✍️