ऑनलाइन राधा अष्टमी पर्व एवं गणेश जी के जन्म और विवाह पर परिचर्चा

ब्यूरो- बालोद डौंडीलोहारा पीयूष कुमार मन जब अंधकार से घिर जाता है तो उसे दूर करने हेतु सत्संग के प्रकाश की आवश्यकता होती है परंतु कोरोना के काल में इस सत्संग रूपी प्रकाश का अभाव है, इस भीषण महामारी में भी पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा इस सत्संग के प्रकाश से सभी को प्रकाशित किया जा रहा है, जो कि उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में ऑनलाइन सत्संग के द्वारा संचालित किया जा रहा है प्रतिदिन की भांति आज भी 26 अगस्त को ऑनलाइन सत्संग का अद्भुत आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 श्री संत राम बालक दास जी द्वारा किया गया
आज राधा अष्टमी का अद्भुत दिन है, इसमें संत श्री राम बालक दास जी ने ग्रुप में सभी को राधा अष्टमी की बधाइयां प्रेषित की और सभी ने बाबा जी को भी शुभकामनाएं प्रेषित की, आज के पावन दिन में त्रिभुवन सौंदर्य स्वामिनी, ब्रजराज बिहारिणी, श्री कृष्ण प्रिया राधा रानी के रूप चरित्र गुणगान आज ग्रुप में बाबा जी ने किया उन्होंने श्री राधा रानी के अति मधुर भजन सभी को सुनाया जिसमें सभी कृष्ण और राधा रानी की लीलाओं में मग्न हो गए
एक बार रास बिहार स्थली पर श्री कृष्ण विराजमान होते हैं, और उनके बाम भाग पर राधारानी विराजित है दिव्य छवि जिसका दर्शन कर तीनो लोक अभिभूत हो जाते हैं, उसे देख नारद जी भी दर्शन को आतुर हो वहां पहुंचे और उनके अद्भुत रूप को प्रणाम कर उनके चरणों में पड़ कर उनसे हाथ जोड़कर बोले, प्रभु आपका यह स्वरूप आने वाले कलयुग को भी प्रभावित करेगा जब पवित्र प्रेम निस्वार्थ प्रेम का अभाव होगा, वहां आप दोनों के प्रेम को याद करके लोग प्रेम की परिभाषा को समझेंगे, लेकिन आप दोनों की प्रेम के बीच में एक छोटी सी बात समझ नहीं आती उस रहस्य को जानने की जिज्ञासा है प्रभु, भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उनसे उस रहस्य को उद्धृत करने को कहा, तब नारदजी बोले हे प्रभु बांसुरी जिसके कारण आपकी छबि की गुना बढ़ती है इसके बारे में बतावें
तब श्री कृष्ण प्रेम पूर्वक राधा रानी के और देखते हुए बोले नारद जी बंशी प्रतीक है एक सच्चे हृदय का बंशी प्रतीक है निस्वार्थ प्रेम का यह बंसी प्रतीक है योग्य पात्र का क्योंकि यह मेरे बहुत अधिक निकट है जो मुझे अति प्रिय है हर क्षण मेरे संग है
बंसी अंदर से खाली है मेरा प्रिय मेरा प्रेमी वही हो सकता है जो बिल्कुल खाली हो दूसरी बात बंसी में छिद्र है बंसी में छल नहीं है दिखावा नहीं है परंतु इसमें जो छिद्र है वह मधुर स्वर को उत्पन्न करता है स्वर वे जो सबको आनंद देता है सब के दुख को दूर करता है इसीलिए बंसी मुझे बहुत अधिक प्रिय है
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने प्रश्न किया कि क्या राधा जी का जन्म गोपी छाया रूप में हुआ था, इस विषय को स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि शास्त्रों में कहीं-कहीं राधा रानी का वर्णन मिलता है, परंतु भागवत में कहीं भी राधा जी का वर्णन नहीं है, राधा शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई यह अभी भी अज्ञात है उस पर शोध चल रहा है, परंतु शास्त्रों में एक गोपी ऐसी थी जो श्री कृष्ण के अति निकट थी का वर्णन अवश्य है
रिचा बहन घोठिया ने बाबाजी से भगवान श्री गणेश के जन्म और उनके विवाह का प्रसंग सुनाने की जिज्ञासा की
बाबा जी ने बताया कि कहते हैं माता पार्वती के द्वारा गाय के गोबर से गणेश जी के निर्मित होने की कथा मिलती है, हम गोबर के गणेश जी की प्रतिमा का स्थापना भी अपनी पूजन में करते हैं, जो की अधिक उचित लगता है, की माता ने गोबर के गणेश में ही प्राण फुके और उनको बालक रूप में जन्म दिया, और कैलाश में शिव गणों में श्री गणेश ऐसे गण हुए जो केवल माता के आज्ञाकारी हुए तब सर्वविदित है कि उनका युद्ध भोले शंकर से हुआ और शिव ने उनका मुख धड़ से अलग कर दिया, कुछ धर्म विरोधी लोग गलत प्रचार करके हमारे धर्म को प्रसारित करते हुए कहते हैं कि शिव जी ने अपने बालक को जीवन देने हेतु एक बाल हाथी का शीश धड़ से अलग कर दिया ओर एक हथिनी माता को अपने पुत्र से दूर कर दिया ऐसा कभी हो नहीं हो सकता शिव जो संकल्प मात्र से विनाश भी कर सकते हो सृष्टि का निर्माण भी कर सकते हैं वह किसी माता को उसके पुत्र से कैसे अलग कर सकते हैं यह केवल हमारे धर्म को गलत प्रचारित करने के लिए किया गया, भगवान शिव ने संकल्प लेकर बाल गज का मुख देकर श्री गणेश में दोबारा प्राण फूकें इस प्रकार श्री गणेश जी का जन्म हुआ
विवाह प्रसंग को स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि जैसा की ज्ञात है कि गणेश जी का मुख गजमुख था और परशुराम जी से युद्ध में उनका एक दांत भी टूट चुका था एक तो गजमुख ऊपर से एकदंत ऐसे में कोई भी पिता अपनी पुत्री का विवाह उनसे कैसे कर पाता, इस परेशानी में श्री गणेश अत्यंत परेशान, उनका विवाह कैसे हो तब उन्होंने अपने वाहन मूषक को बुलाया और बोले जब तक हमारा विवाह नहीं होगा तब तक किसी का भी विवाह नहीं हो सकता मूषक जी को तो लड्डू खाने से मतलब, जब भी किसी देवी-देवताओं के यहां विवाह होता वह श्री गणेश की खबर लाते और श्री गणेश अपनी मूषक सेना को वहां भेजकर पूरी तरह से विघ्न डाल देते इस प्रकार श्री गणेश विघ्नकर्ता रूप में प्रचलित हुए, तब सभी देवी देवता परेशान होकर माता पार्वती के पास गए और अपनी समस्या को उनके समक्ष रखा तब माता मुस्कुराई और बोली के हे देवगण मेरे भी पुत्र की उम्र विवाह योग्य हो चुकी है मेरे पुत्र का विवाह हो जाता है तो उसके बाद जिनका भी विवाह होगा उसमें किसी भी तरह का विघ्न ना आए श्री गणेश का पूजन सर्वप्रथम होगा, अतः आप सभी इसके विवाह के हेतु प्रयास रत हों सभी ने श्री गणेश जी की विवाह की तैयारियां शुरू की तब ब्रह्माजी के मानस पुत्री रिद्धि सिद्धि के साथ श्री गणेश जी का विवाह हुआ और तभी से श्री गणेश जी का पूजन रिद्धि सिद्धि के साथ की जाती है और उनके साथ ही उनको अपने घर में स्थापित किया जाता है तथा उनके पुत्र शुभ लाभ की भी स्थापना की जाती है
संतोष श्रीवास जी पौलमी ने गणेश जी की आरती में अंधन को आंख देत कोढ़ीन को काया बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया के वाक्य को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से की बाबा जी ने बताया कि यह आरती श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित है जैसा की ज्ञात है कि भगवान श्री गणेश बुद्धि के देवता है, जो भी व्यक्ति लोभ मोह माया में जब अंधा हो जाता है तो भगवान श्री गणेश उसको सद बुद्धि प्रदान करते हैं इस प्रकार यहां अंधन को आंख देत से संबंधित है
प्रकार आज का सत्संग ज्ञान पूर्ण रहा
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम