उत्तर प्रदेशकी राजनीति में एक अहम ..."> उत्तर प्रदेशकी राजनीति में एक अहम ..."> उत्तर प्रदेशकी राजनीति में एक अहम ...">

भाजपा ने यूं ही नहीं ले लिया पंकज चौधरी को अध्यक्ष बनाने का फैसला

भाजपा नेउत्तर प्रदेशकी राजनीति में एक अहम रणनीतिक चाल चलते हुए महराजगंज से सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह फैसला केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं बल्कि सीधे तौर पर ओबीसी राजनीति, खासकर कुर्मी/पटेल वोटबैंक को साधने की कोशिश माना जा रहा है। यादवों के बाद ओबीसी वर्ग में कुर्मी समाज को सबसे बड़ा और प्रभावशाली वोट समूह माना जाता है ऐसे में भाजपा का यह दांव राज्य की राजनीति की दिशा बदलने वाला साबित हो सकता है।

कुर्मी आबादी और प्रभावशाली सीटों का गणित

देश में 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना न होने के कारण कुर्मी समाज की आबादी के आंकड़े अनुमान पर आधारित हैं। 2001 में यूपी सरकार की हुकुम सिंह कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में कुर्मी/पटेल समाज की हिस्सेदारी करीब 7.4% मानी गई थी। 2025 में यूपी की अनुमानित आबादी करीब 25 करोड़ होने के आधार पर कुर्मी समाज की संख्या 1.75 से 2 करोड़ के बीच आंकी जाती है। यही कारण है कि प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 128 सीटों पर कुर्मी वोटर प्रभावी भूमिका निभाते हैं, जबकि 48 से 50 सीटों पर वे निर्णायक स्थिति में रहते हैं।

विधानसभा से लोकसभा तक कुर्मी प्रतिनिधित्व

वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर नजर डालें तो यूपी विधानसभा में कुर्मी समाज के कुल 40 विधायक हैं। इनमें भाजपा के 27, समाजवादी पार्टी के 12 और कांग्रेस का एक विधायक शामिल है। विधान परिषद में कुर्मी समाज के 5 सदस्य हैं। वहीं, 80 लोकसभा सीटों में 11 सांसद कुर्मी समाज से आते हैं, जिनमें सपा के 7, भाजपा के 3 और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल शामिल हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि सत्ता और विपक्ष, दोनों के लिए कुर्मी समाज कितना अहम है।

अपना दल (एस) की सियासी ताकत पर सीधा असर

2014 से भाजपा और अपना दल (एस) का गठबंधन यूपी की राजनीति में मजबूती से चला है। इस गठजोड़ से अपना दल (एस) को पहचान और सत्ता में हिस्सेदारी मिली, तो भाजपा को कुर्मी वोटबैंक का लाभ। फिलहाल अपना दल (एस) के पास 12 विधायक, एक एमएलसी और एक लोकसभा सांसद हैं। पार्टी की पूरी राजनीति कुर्मी/पटेल समाज के इर्द-गिर्द घूमती रही है। ऐसे में भाजपा द्वारा पंकज चौधरी को आगे बढ़ाना अपना दल (एस) की बारगेनिंग पावर को कमजोर करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।