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डूंगरपुर-बांसवाड़ा-उदयपुर के साहित्यकारों द्वारा वागड़ी काव्य गोष्ठी का किया आयोजन

"उकरता पाणी मयं कौण हाथ नाकें। कैनेक जुवै टाडू़ं अर कैनेक ककुनूं" - दिनेश प्रजापति

संवाददाता - संतोष व्यास

डूंगरपुर। डाइट डूंगरपुर में वागडी भाषा कार्यशाला के समापन के बाद वरिष्ठ साहित्यकार इतिहासकार घनश्याम सिंह प्यासा की अध्यक्षता एवं वरिष्ठ साहित्यकार उपेंद्र अणु ऋषभदेव, वरिष्ठ साहित्यकार कलाकार दिनेश पंचाल डूंगरपुर के मुख्य आतिथ्य में वागडी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें सभी वागड़ी के रचनाधर्मियों ने अपना वागड़ी काव्य पाठ प्रस्तुत किया।

वरिष्ठ साहित्यकार के प्रेमी ने सुंदरकांड का वागड़ी अनुवाद "अणगण जबरंँ है, जोर मयं तगडं है, प्रस्तुत कर गोष्ठी को राममय बना दिया। रमेश चंद्र चौबीसा ने "शिवजी हो जटाधारी, नादिया नी असवारी। डीलै भसमी रमाडी, म्हारा भोला नाथ है।।" घनाक्षरी प्रस्तुत कर सबका श्रावण शिवमय कर दिया। गोपाल सेवक नै "माथा ना परेवा नुं टपकुं पोग मयं पड़ी नै, कै मारा भोळा भाई, पेट ना खाडा नी करी लीदी भराई" प्रस्तुत कर मेहनत की महिमा बताई। दिनेश प्रजापति नै "उकरता पाणी मयं कौण हाथ नाकें। जोइनै'ज हाथ कांपै, कैनेक जुवै टाडू़ं अर कैनेक जुवै ककुनूं। पण पाणी तो पाणी है।" में स्वार्थ में मानवीय स्वभाव को दर्शाया। मनिषा पंडया नै "रौटली खांड नाखी नै, बिडू वाळी नै ज्यारे खाता था। ई दाडा भी आपडा हूं रूपिळा जाता था।" बचपन की याद दिला दी। अंजलि पंड्या नै "नानो सो थोडोक सायलों दिखीनें मंझील हमजी जावा वारो। पौगं थकी वाट मापी नै मन मयं विश्वास भरो।" को प्रस्तुत किया। प्रतिज्ञा भट्ट नै "जय वागड़, जय वागड़ी" में वागड़ और वागड़ी का गुणगान किया। जितेन्द्र मेघवाल नै "ज्यारे रे थकी तने जोई है, जोवा हिकी ग़्यो हूं। नजरें एवी मली है, नज़र लड़ाववा हिकी ग़्यो हूं।" प्रस्तुत कर माहौल को खुशनुमा कर दिया। उपेन्द्र अणु ने "पण सैतरा नै भी, आपणै फाटा व्हेवा नौ गुमान है। जारै जारै भी वैना माथै बईमानी नी थीगड़ी लागै, तारै तारै व्हो आपणै आप नै, बोड़ीगामा नौ हीरो हमजी फरै, को सुना कर आज की युवा पीढ़ी के आधुनिक फैशन के ढकोसले पर व्यंग किया।

वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश पंचाल ने गोष्ठी में अपनी बात रखते हुए कहा कि जब मातृभाषा में काव्य पाठ किया जाता है तब बहुत कर्णप्रिय लगता है। कानों में रागिनियां घुलने लगती है। काव्य गोष्ठी के अध्यक्ष घनश्याम सिंह प्यासा नें "सब ए मानैं _के, घाटी मंय बैठा गदेड़ा ने बाप पण कैह्वू पड़े, कैम के गरज बापड़ी है, सुनाकर बताया कि विशेष परिस्थितियों में झुकना भी जरूरी है। काव्य गोष्ठी का संचालन दिनेश प्रजापति और आभार अंजलि पंड्या ने किया।