शो पीस बना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तरकुलवा, डाक्टर नदारत, कंपाउंडरों के भरोसे ईलाज, मरीजों को रेफर करना ही बहादुरी इमरजेंसी सेवाएं ध्वस्त

"इलाज की दौड़ में मौत"? पूर्वांचल के सरकारी अस्पतालों की हकीकत। इमरजेंसी में डॉक्टर गायब, कंपाउंडर कर रहे इलाज, बिना काम किए ले रहे सरकारी वेतन, हा यही स्थिति है नव सृजित नगर पंचायत तरकुलवा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के हालात, यहा इलाज नहीं रेफर किया जाता है। कुल मिलकर स्वास्थ्य सुविधाओं का पूर्णतः अकाल है। और जन प्रतिनिधि भी, इन गैर जिम्मेदार स्वास्थ्य कर्मचारी और डाक्टरों पर नकेल कसने में विफल है।

तरकुलवा नगर पंचायत के सरकारी अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। जब कभी कोई इमरजेंसी आती है, तो लोग तरकुलवा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की ओर एक उम्मीद के साथ मरीज को लेकर भागते हैं ? लेकिन वहाँ या तो डॉक्टर गायब होते हैं, या सिर्फ पट्टी बाँधकर औपचारिकता पूरी कर दी जाती है और मरीज को देवरिया मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया जाता है। जहां पहुंचने के लिए 1 घंटे लगते हैं और आज के ट्रैफिक के अनुसार 1 घंटे से ज्यादा भी लग जाता है। तो क्या सरकार ये लाखों करोड़ों खर्च करके तरकुलवा नगर पंचायत का सीएचसी केवल रेफरल ट्रीटमेंट देने के लिए बनाया गया है? इस "रेफर के खेल में न जाने कितनी ज़िंदगियाँ सड़क पर ही दम तोड़ देती हैं जो इन स्वस्थ्य कर्मियो और डाक्टरों द्वारा बचायी जा सकती हैं।

यह अस्पताल केवल सर्दी-खांसी या अन्य सामान्य बिमारी से बचाव मात्र के लिए ही बना है? इसका उत्तर कौन देगा? लाखों के वेतन के बदले ये लापरवाह कर्मचारी करते क्या है? डाक्टरों द्वारा दवाओं और जांच के नाम पर कमीशनखोरी पाताल तक जड़ जमा चुकी है।

रेंडमली जांच करके मरीजों का बयान दर्ज करके इन कमीशन खोरों पर आवश्यक कार्यवाही होनी चाहिए, और दोषियों को दण्डित किया जाना चाहिए...

ग्रामीण जनता में सरकार की कार्य प्रणाली पर भयंकर आक्रोश है, स्वास्थ्य विभाग ने अपने कार्य प्रणाली में सुधार नही किया तो, जन आक्रोश बृहद आंदोलन में बदल सकता है।