पृथ्वीनाथ मंदिर में भीम ने स्थापित किया था शिवलिंग, यहां दर्शन मात्र से दूर होता है दुख

गोंडा।पृथ्वीनाथ भीमेश्वर महादेव अपने भक्तों की सुनते हैं,और सारे दुख व संकट को हर लेते हैं।जिसके चलते आसपास के जिले के लोगों सहित नेपाल राष्ट्र के बड़ी संख्या में शिवभक्त मुरादें मांगने आते हैं।बाबा भोलेनाथ का यहां साक्षात दर्शन होता है,उनके दर्शन मात्र से ही अलौकिक पूर्ण मिलता है।जनपद मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर खरगूपुर नगर पंचायत के पश्चिम दिशा में अवस्थित महाभारत कालीन पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर भारत एवं नेपाल के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है।धरातल से काफी ऊंचाई पर बने मंदिर में दुर्लभ काले कसौटी के पत्थर से निर्मित एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है।दुर्लभ काले पत्थर व विशाल शिवलिंग भक्तों के मन को मोह लेता है।महाशिवरात्रि, सावन सोमवार, मास शिवरात्रि, गंगा दशहरा, कजली तीज आदि पर्व पर विशाल मेले का आयोजन होता है।

भीम ने स्थापित किया था शिवलिंग

पृथ्वीनाथ में स्थापित शिवलिंग के प्रकट होने की कथा महाभारत में विस्तार से मिलता है। पंचारण्य क्षेत्र में अज्ञातवास के समय पांचो पांडव माता कुंती के साथ जंगल में भटकते हुए एकचक्रा नगरी में रहने लगे।उस समय जंगल में एक भयानक बकासुर उपनाम मधु दैत्य का आतंक था।जिससे पूरे क्षेत्र के वासी परेशान थे।दैत्य को प्रतिदिन नगरवासी बैलगाड़ी में पकवान लादकर एक आदमी के साथ भेजते दैत्य पकवान के साथ उस आदमी का भी भक्षण करता था।इसी क्रम में एक दिन एक विधवा ब्राह्मणी के इकलौते पुत्र का नंबर आया।पांचो पांडव इसी विधवा के घर में रहते थे।ब्राह्मणी ने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया,माता कुंती से उसकी पीड़ा नहीं देखी जा सकी।कुंती ने अपने पुत्र भीम को पकवान के साथ दैत्य के पास जाने की अनुमति दी।

मधु दैत्य को भीम ने मारा

भीम बैलगाड़ी पर बैठकर रास्ते में ही पूरे पकवान को खा गए।जंगल में राक्षस के पास पहुंचने पर क्रोधित राक्षस ने पकवान की मांग की।भीम ने उत्तर दिया कि उस पकवान को हम खा गए,दोनों में इस बात को लेकर युद्ध छिड़ गया और अंत में भीम ने उस असुर का वध कर उसकी लाश को नगर वासियों के सामने लाकर सब को दिखाया।ऐसी मान्यता है, कि भीम को ब्रह्म राक्षस के वध का पाप लगा।उस पाप से बचने के लिए उन्होंने भगवान शिव की स्थापना की।पांचो पांडव इस क्षेत्र में भिन्न-भिन्न जगहों पर भगवान शिव के लिंग की स्थापना किया।

19वीं सदी में चला पता

पृथ्वीनाथ मंदिर के विशाल शिवलिंग का पता 19वीं सदी में तब हुआ,जब गोंडा नरेश की सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिक पृथ्वी सिंह ने यहां पर अपना मकान बनवाना शुरू किया।निर्माण के दौरान कंकड़ पत्थर पड़ने पर मजदूरों ने टीले की खुदाई शुरू कर दिया।खुदाई के समय एक स्थान से खून का फव्वारा निकलने लगा।मजदूर घबराकर भाग गए।रात में सैनिक को सपने में शिवलिंग दिखाई पड़ा सैनिकों ने बाद में उस स्थान को साफ किया तो वहां विशालतम काले पत्थर का अरघे सहित शिवलिंग मिला।उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण हुआ और अब उसी सैनिक के नाम पर यह पृथ्वीनाथ मंदिर से जाना जाता है।प्रदेश सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित कर मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सुंदरीकरण कराया है। पुरातत्वविदों की मानें, तो पृथ्वी के अंदर 64 फीट गहराई तक कई खंडों में शिवलिंग मिलता है।मंदिर में पूजन अर्चन के लिए नेपाल व दक्षिण भारत से भी शिव भक्त आते हैं।ऐसी मान्यता है, कि यहां पूजन अर्चन से सारे पाप कट जाते हैं और मनोवांछित फल बाबा भोलेनाथ पूरा करते हैं।