राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा (NOPRUF) की आनलाइन बैठक सम्पन्न

राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा की ऑनलाइन बैठक सम्पन्न


राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा की ऑनलाइन बैठक में कर्मचारियों ने कहा कि अब पुनः आंदोलन को ऑनलाइन मोड पर ले जाने का वक़्त है। इस बार कर्मचारियों के साथ हो रहे पेंशन सम्बन्धी अन्याय को जनता के पास पहुंचाया जाएगा।
राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के कुमाऊँ मण्डल प्रभारी योगेश घिल्डियाल ने कहा कि ओपीएस में सरकारी तनख़्वाह की तरह ही पे कमीशन और डीए लागू होता है, वहीं एनपीएस में ये दोनों चीज़ें नदारद हैं. पे कमीशन जहां हर 10 साल में पेंशन को गुणात्मक रूप से बढ़ा देता है, वहीं डीए के चलते भी कुछेक प्रतिशत बढ़ौतरी हर छः महीने में हो जाती है. जबकि एनपीएस में पेंशन आपको इन पांच इंश्योरेंस कंपनीज़ में से एक से मिलनी है. वो क्यूं ही हर साल, छः महीने में आपके पैसे बढ़ाए।
महिला मोर्चा की गढ़वाल मण्डल प्रभारी रश्मि गौड़ ने कहा कि आज मै तो यही सोचती हूँ कि जब हम रिटायर होंगे, तब क्या होगा।क्योंकि पुरानी पेंशन तो बुढ़ापे का सहारा है।हम अपनी इज्जत से जी सकते है।किसी के आगे हाथ नही फैला सकते।जिन लोगो की पेंशन है वे स्वाभिमान से अपना जीवन यापन कर रहे है।चाहे उनकी सन्तान उन्हें दे या ना दे इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता है।इसलिए पुरानी पेंशन जरूरी है। मै अपने पिता श्री को देखती हूँ ।वो अपनी पेंशन के कारण स्वाभिमान से जीते है। आज भी वो 40000 रु पेंशन पाते है। माँ और पिताजी अपनी सारी जरुरतो को पूरा करते है और सम्मानपूर्वक जिंदगी जी रहें है।पुरानी पेंशन ही न्याय संगत हे।इसलिए हमे पुरानी पेंशन चाहिए और ले कर रहेंगे।पुरानी पेंशन के लिए लड़ेंगे और ले कर रहेंगे।बागेश्वर की जिला संयुक्त सचिव सोनिया गौरव ने कहा कि पुरानी पेंशन में कर्मचारी का शेयर कुछ नही होता है फिर भी कर्मचारी आवश्यकता पड़ने पर जी.पी.एफ. से धनराशि निकाल सकता है जबकि नई पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी का 10% शेयर होने के बावजूद भी हम अपनी आवश्यकतानुसार धनराशि नहीं निकाल सकते साथ ही सरकारी सेवा में अपने जीवन के लगभग 30 से 35 वर्ष देने के बाद भी बुढ़ापे में जब हम कोई कार्य करने योग्य नहीं रहते तब हमें 1000 से 1200 रूपये पेंशन स्वरूप दिए जाते हैं जो अत्यन्त दुर्भाग्य पूर्ण है |रुद्रप्रयाग के जिला मुख्य संरक्षक शंकर भट्ट ने कहा कि नई पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारी अपने अंशदान में से एक बार में केवल 25 प्रतिशत राशि निकाल सकता है, और फिर अगले 5 सालों तक उसमे से कोई राशि नहीं निकाल सकता है, एवं इससे पैसा निकालने की प्रक्रिया काफी जटिल है, इसके विपरीत gpf व्यवस्था के तहत कर्मचारी बहुत आसानी से अपने जमा का बड़ा हिस्सा किसी भी समय आवश्यक्ता पड़ने पर निकाल सकता है, नई पेंशन व्यवस्था के तहत सेवानिवृत होने पर कोषागार की आपको पेंशन देने की कोई गारंटी नहीं है, आपकी पेंशन आपके हिस्से के 40 प्रतिशत अंशदान से निर्धारित होगी,इस हेतु आपको एन्यूटी प्लान लेना पड़ेगा जो की बाजार आधारित है, और आपको इस पैसे पर tax भी देना होगा, जबकि gpf व्यवस्था के तहत कोषागार आपको पेंशन देने की गारंटी देता है।जिला उपाध्यक्ष रुद्रप्रयाग नीलम बिष्ट ने कहा कि पेंशन ,सरकारी कर्मचारियों की वह सम्पत्ति है, जिस पर उसी का पूर्ण अधिकार है।जो सेवा, समर्पण पश्चात उसे मिलता है और मिलना चाहिए। सवाल यही बनता है कि अगर यह कई दशक जीवन सेवा हेतु देने के पश्चात भी एक सरकारी कर्मचारी के लिए मान्य नहीं ,तो यह चंद वक्त के लिए विराजमान होने वालों के लिए क्यों, और अगर इसमें ही लाभ और देशहित है ,तो फिर इस(नवीन पेंशनयोजना) सुख से ये वंचित क्यों, हमारा आने वाला जीवन ,इसी पेंशन पर निर्भर है अतः यह हमें लौटाया जाय।हमारा हक हमें दे दिया।प्रांतीय महिला अध्यक्ष योगिता पंत ने कहा कि सरकारी कर्मचारी का सबसे बड़ा दुर्भाग्य नई पेंशन स्कीम है । एक कर्मचारी के बुढ़ापे की आस होती है ops। हम कर्मचारियों की सुरक्षा की लाठी होती है ops। पर दुर्भाग्य.... आख़िर क्यों छीना गया हमसे ये सुरक्षा कवच? हम सब सरकारी कर्मचारियों की अभिलाषा है कि आज रामनवमी को nps रूपी अंधकार को,छल को भस्म कर दिव्य ज्योति रूपी पुरानी पेंशन को सरकार अविलम्ब बहाल करे अन्यथा उत्तराखंड के 78,000 कर्मचारी आंदोलन हेतु मजबूर होंगे।
जिला अध्यक्ष उत्तरकाशी गुरुदेव रावत ने कहा कि पुरानी पेंशन बुढ़ापे का सबसे भरोसेमंद बेटा है जो हमे बुढ़ापे में आत्मनिर्भरता के साथ जीने को मजबूत करता है।हमे हमारी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।शर्म की बात है जिस देश मे एक देश एक विधान की बात बड़े बड़े मंचों से की जाती है और एक दिन का मंत्री विद्यायक पेंशन लेता है तथा 60 वर्ष तक सेवा देने वाला सरकारी सेवक टेंशन लेता है।महिला उपाध्यक्ष पौड़ी अवंतिका पोखरियाल ने कहा कि पुरानी पेंशन में जीपीएफ की सुविधा है, टैक्स फ्री है, मिनिमम पेंशन है वहीं एनपीएस में हमारा पैसा जबरदस्ती कटौती कर के शेयर बाजार जोखिम के अधीन लगाया जा रहा है जिसकी जानकारी किसी को भी ठीक से नहीं है । और एनपीएस के चलते कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति भी नहीं ले सकते क्योंकि वीआरएस लेने पर हमारा पैसा सीज़ हो जाएगा।जिला उपाध्यक्ष टिहरी राजीव उनियाल ने कहा कि पुरानी पेंशन में सेवा निवर्त होने के बाद कर्मचारी को किसी पर आश्रित रहने की आवश्यकता ही नही पड़ती जबकी nps में जो आज कार्मिकों को 1000 या 800rs पेंशन मिल रही है उस के लिए अपने बच्चों पर या वृद आश्रम पर निर्भर रहना होगा।शाखा महामंत्री श्रीनगर श्री मनोज भंडारी ने कहा कि हूबहू पुरानी पेंशन व्यवस्था होनी चाइए , जिसमे जी0पी0एफ0 व्यवस्था हो तथा सेवानिवृत्ति के पश्चात अंतिम अंतिम का 50% पेंशन के रूप मे मिल सके जिससे कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित हो सके lजिला उपाध्यक्ष उत्तरकाशी सरिता सेमवाल ने कहा कि नई पेंशन व्यवस्था में हम जीपीफ की तरह अपनी जमा धनराशि को निकाल नहीं सकते हैं, यदि हम इसे किसी तरह निकाल भी सके तो इस पर हमें इनकम टैक्स देना पड़ेगा।

प्रान्तीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ० डी० सी० पसबोला ने कहा कि पुरानी पेंशन व्यवस्था (OPS) का शेयर मार्केट से कोई संबंध नहीं था।पुरानी पेंशन में हर साल डीए जोड़ा जाता था।पुरानी पेंशन व्यवस्था में गारंटी थी कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा उसे पेंशन के तौर पर मिलेगा।अगर किसी की आखिरी सैलरी 50 हजार है तो उसे 25 हजार पेंशन मिलती थी। इसके अलावा हर साल मिलने वाला डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी।नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था।जीपीएफ एकाउंट में कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था।जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी। इसके विपरीत नई पेंशन व्यवस्था (NPS) वर्ष 2004 से लागू हुई न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस)न्यू पेंशन स्कीम एक म्यूचुअल फंड की तरह है।ये शेयर मार्केट पर आधारित व्यवस्था है।पुरानी पेंशन की तरह इसमेें पेंशन में हर साल डीए नहीं जोड़ा जाता। कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले। एनपीएस के तहत जो टोटल अमाउंट है, उसका 40 प्रतिशत शेयर मार्केट में लगाया जाता है। कर्मचारी या अधिकारी जिस दिन वह रिटायर होता है, उस दिन जैसा शेयर मार्केट होगा, उस हिसाब से उसे 60 प्रतिशत राशि मिलेगी. बाकी के 40 प्रतिशत के लिए उसे पेंशन प्लान लेना होगा।पेंशन प्लान के आधार पर उसकी पेंशन निर्धारित होगी।नई व्यवस्था में कर्मचारी का जीपीएफ एकाउंट बंद कर दिया गया है।

डॉ० पसबोला ने आगे स्पष्ट किया कि विरोध इन बातों पर है:

1 जनवरी 2004 को जब केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को खत्म कर नई व्यवस्था लागू की. एक बात साफ थी कि अगर राज्य चाहें तो इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं. मतलब व्यवस्था स्वैच्छिक थी. उत्तराखंड में इसे 1 अक्टूबर 2005 को लागू कर दिया. पश्चिम बंगाल में आज भी पुरानी व्यवस्था ये लागू है.
पुरानी पेंशन व्यवस्था नई व्यवस्था की तरह शेयर बाजार पर आश्रित नहीं है. लिहाजा उसमें जोखिम नहीं था.
न्यू पेंशन स्कीम लागू होने के 14 साल बाद भी यह व्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है.
नई स्कीम में कोई गारंटी नहीं है कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा ही उसे पेंशन के तौर पर मिले. क्योंकि शेयर बाजार से चीजें तय हो रही हैं.
नई व्यवस्था के तहत 10 प्रतिशत कर्मचारी और 10 प्रतिशत सरकार देती है. लेकिन जो सरकार का 10 प्रतिशत का बजट है, वही पूरा नहीं है.
मान लीजिए उत्तराखण्ड में मौजूदा समय में 2.5 लाख कर्मचारी है. अगर उनकी औसत सैलरी निकाली जाए तो वह 25 हजार के आसपास है. इस हिसाब से कर्मचारी का 2500 रुपए अंशदान है. लेकिन इतना ही अंशदान सरकार को भी करना है. मोटे तौर पर सरकार के ऊपर कई हजार करोड़ का भार आएगा. लेकिन सरकार के पास इसके लिए बजट ही नहीं है.
नई व्यवस्था के तहत मान लीजिए अगर किसी की पेंशन 2000 निर्धारित हो गई तो वह पेंशन उसे आजीवन मिलेगी. उसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होगा. पुरानी व्यवस्था में ऐसा नहीं था. उसमें हर साल डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी.
विरोध शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था को लेकर है. कर्मचारियों का कहना है कि मान लीजिए कि एक कर्मचारी एक लाख रुपये जमा करता है. जिस दिन वह रिटायर होता है उस दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपये मिलेंगे और बाकी 4 हजार में उसे किसी भी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी. इसमें कोई गारंटी नहीं है.
पहले जो व्यवस्था थी, उसमें नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था. उसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था. जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था और सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी. नई व्यवस्था में जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है.

जिला संगठन मंत्री चमोली अवधेश सेमवाल ने कहा कि देश में अन्याय का सबसे बड़ा उदाहरण नयी पेंशन योजना है। न्यू पेंशन स्कीम ( एनपीएस ) कर्मचारियों को रिटायरमेंट पर घाटे का सौदा बन रही है वर्षों की नौकरी के बाद सेवानिवृत्त होने पर हाथ आ रहे है खाली लिफाफे और कुछ के हाथों में महज 700 से 1100 रुपए की पेंशन । NPS में न्यून पेंशन प्राप्त होने के कारण आर्थिक संकट पैदा हो रहा है। देश भर में करोड़ों सरकारी कर्मचारी आश्रितों सदस्यों के सामने यह दृश्य उपस्थित हो गया है। जीवन के अमूल्य वर्षों को सरकारी सेवा में देने के बाद रिटायर होने पर प्रत्येक सरकारी कर्मचारी के लिए भी यह बेहद अपमानजनक स्थिति है।मंडलीय महासचिव नरेश कुमार भट्ट ने कहा कि पुरानी पेंशन योजना में शिक्षकों कर्मचारियों,अधिकारियों हेतु व्यवस्थानुसार सेवानिवृत्ति होने पर वेतनानुसार पेंशन तय हो जाती है व उस पर प्रत्येक छह माह में पेंशन वृद्धि व एरियर की व्यवस्था भी निश्चित हो जाती है। नई पेंशन योजना में कर्मचारी-हित को दरकिनार करते हुए बाजार-हित को अग्रणी मानते हुए उपर्युक्त सभी व्यवस्थाओं से वंचित कर दिया जाता है।जोकि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो जाती है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं कि कुछ शिक्षकों ,कर्मचारियों,अधिकारियों को 700,1300,1400 ₹ नई पेंशन बन पाई है lजिलाध्यक्ष टिहरी हिमांशु जगूड़ी ने कहा कि Ops में सब कुछ हमारे हाथ में होता था जबकि nps में बाजार के अधीन ।जैसे कोरोना से सुरक्षा भी हमारे हाथ में और असुरक्षा बाजार में। nps से छुटकारा केलिए हाथ बढ़ाना होगा और कोरोना से बचाव के लिए हाथ धोना होगा। जैसे बुढ़ापे का एक मात्र सहारा ops, वैसे मास्क जरूरी और 2गज की दूरी बस।प्रांतीय प्रेस सचिव डॉ. कमलेश कुमार मिश्र ने कहा कि पुरानी पेंशन व्यवस्था कर्मचारी को उसकी सेवाओं के बतौर संरक्षण प्रदान करती है, नई पेंशन योजना सिर्फ कर्मचारी का शोषण करती है, वर्तमान में कर्मचारी को उसका दशम भाग पेंशन भी प्राप्त नहीं हो पा रही है, जितना उसका मासिक अंशदान है, यह योजना केवल बाजार के लिए लाभकारी है,
कुमाऊं महिला उपाध्यक्ष रेणु डांगला ने कहा कि पेंशन जरूरी ही नहीं, जरूरत भी है।इसके बंद होने से कई वर्षों से सरकारी विभाग के लोग इसका नुकसान वर्तमान में रिटायर होने पर 700-800 आदि के रूप में झेल रहे हैं।अभी कोरोना से जिस तरह हालत के हैं। उसका सबसे ज्यादा असर आर्थिक स्थिति पर पड़ा है। सोचनीय विषय यह है कि अगर आगे भी यही हाल रहे तो हम पर आगे जाने क्या-2 और थोपा जा सकता है और शायद हमारे रिटायरमेंट तक हमारे हाथ 700-800(उदाहरण मात्र) भी न रहे।जिला उपाध्यक्ष अल्मोड़ा रजनी रावत ने कहा कि पुरानी पेंशन व्यवस्था मे कर्मचारी अपने अंशदान को अपनी आवश्यकता अनुसार बढ़ा व घटा सकता है, यह सुविधा नई पेंशन व्यवस्था मे नहीं है। जिला देहरादून उपाध्यक्ष (महिला) डॉ० शैलजा रोहिला ने एन पी एस को ऊंट के मुंह में जीरा बताया तो जिला हरिद्वार उपाध्यक्ष (महिला) डॉ० रक्षा रतूड़ी ने एन पी एस को कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया।