आत्महत्या :  बीमारी  या  हताशा 

�राशिद अर्शी�

हाल ही में प0 उ0 प्रदेश के एक ज़िले में एक ही दिन में आत्महत्याओं की दो ऐसी ह्रदयविदारक घटनाएं सामने आयीं, जिनमे कई मासूम बच्चो सहित महिलाओ की या तो जान चली गई या फिर वे ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहे थे। इन दोनो घटनाओ के पीछे पारिवारिक कलह, मुख्य कारण के रूप में उभर कर सामने आया। इस तरह की आत्महत्याओं की खबरे अक्सर ही सामने आती रही हैं। समाज में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या बताती है कि जैसे जैसे समाज आधुनिकता, उन्नति, प्रगर्ति, प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ रहा है। वैसे वैसे लोगों में असफलता और सफलता को लेकर सामाजिक कुंठा, हताशा, निराशा, आत्मविश्वास की कमी, अवसाद व हीनता बढ़ते चले जा रहे हैं। जो आत्महताओ का मुख्य कारण बनकर सामने आ रहे हैं। सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिहक, शारीरिक और शैक्षिक समस्याओ में उलझे लोग इन समस्याओ से संघर्ष करने की लम्बी प्रकिर्या की अपेक्षा, इन समस्याओ से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या को आसान रास्ता मानकर चुन रहे हैं।
विश्व स्वास्थ संगठन ( WHO ) के अनुसार दुनिया में प्रति वर्ष लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या कर रहें है। यानी प्रति 40 सेकेंड में एक आत्महत्या। दुखद बात ये है कि इन आत्महत्या करने वाले लोगो में अधिकतर की आयू 15 वर्ष से लेकर 29 वर्ष के बीच होती है। पूरी दुनिया में आत्महत्या के मामलो में भारत का 21 वां स्थान है।
विभिन्न समस्याओं के चलते भारत में प्रतिवर्ष 1 लाख से लेकर 1.50 लाख तक लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्योरो ( NCRB ) के अनुसार वर्ष 2017 में 129887 और वर्ष 2018 में 134516 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। यानी देश में प्रतिवर्ष आत्महत्याओं की दर में 3.6% का इज़ाफ़ा हुआ है। जो अत्यंत चिन्तितनीय है। बहुत सी ऐसी घटनाये भी होती हैं, जिनका कोई रिकार्ड नही मिल पाता। भारत में आत्महत्या की सर्वाधिक घटनाये महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटका में होती हैं। इन राज्यों में देश की कुल 50.9% घटनाएं घटित होती हैं। एन सी आर बी के अनुसार आत्महत्या के मामलो में पुरषों का अनुपात ज़्यादा है। भारत में आत्महत्याओं के कारणों में पारिवारिक मामलो की भागीदारी सर्वाधिक 27.6% के बाद 15% मामले बीमारी के कारण होते हैं। एक दुखद आंकड़ा ये है कि छात्र भी केरियर के दबाव, परीक्षाओं की असफलता, जबरन शैक्षिक कॅरियर थोपने व मानसिक अवसाद के चलते बड़ी संख्या में या तो आत्महत्याएं कर रहे हैं या फिर नशे का शिकार हो रहें हैं।
प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ जे पी शर्मा ( एम डी ) बताते हैं, कि आत्महत्याएं तीन तरह की होती हैं। न0 1 इम्पलसिव सुसाईड जिसमे व्यक्ति क्षणिक आवेग में आकर कोई घातक कदम उठाते हुए अपनी जीवनलीला समाप्त कर बैठता है। इन मामलो में पारिवारिक कलह, सामाजिक अपमान, प्रताड़ना आदि जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। न0 2 डिप्रेसिव सुसाईड जिसके अंतर्गत व्यक्ति मानसिक बीमारी या मानसिक परेशानी के चलते गहरे तनाव में आकर मानसिक रूप से अवसाद का शिकार हो जाता है। ऐसे मामलों में आर्थिक स्थिति, मानसिक स्थिति, अकादमिक परेशानी, व्यापारिक राजनीतिक सामाजिक असफलता, पारिवारिक कलह, विवाहोत्तर शारीरिक अक्षमता, दाम्पत्य जीवन, धोखा, एकांकी जीवन आदि शामिल है। न0 3 एक्सीडेंटल सुसाईड जिसके अंतर्गत व्यक्ति पागलपन, उत्तेजना या फिर अतिउत्साहित होकर कोई ऐसा कदम उठा लेता है जिसमे उसकी जान चली जाती है। ऐसे मामलो में असुरक्षित स्टंटबाजी, राइडिंग, सेल्फी आदि के मामले कहे जा सकते हैं।
अगर आपको लगता है कि आप किसी समस्या के चलते मानसिक रूप से परेशान हैं, और धीरे धीरे अवसाद या तनाव का शिकार हो रहें हैं, तो बिल्कुल भी एकाकी ना बनिये। आप तुरन्त अपनी समस्या को अपने किसी समझदार और अच्छे दोस्त या रिश्तेदार से साझा कीजिये। आप अपनी समस्या को जितना अधिक देर तक छुपाये रखेगे, उतना ही गहरे अवसाद और निराशा का शिकार होते रहेंगे। अंततः एक दिन वो समय भी आएगा, जब आप अपने जीवन से पूर्णतया निराश होकर आत्महत्या की ओर प्रेरित होने लगेंगें। बहुत से लोग अपनी इच्छाशक्ति के बलपर मानसिक तनाव या निराशा से उबर जाते हैं। परन्तु कई लोग काफी भावुक होते हैं या उनमे इच्छाशक्ति की कमी होती है या फिर आत्मविश्वास की कमी के कारण वे अपनी समस्याओं से उबर नही पाते और अवसाद में चले जाते हैं। ऐसे लोगो को बिना झिझक मनोचिकित्सक से अवश्य ही सलाह लेनी चाहिए। परिवार के लोगों को चाहिए कि वे ऐसे लोगो को एकांत में ना रहने दें, उन पर अपनी इच्छाएं ना थोपें, उनका उत्साह और विश्वास बढाएं और समस्याओं के निराकरण हेतू अपना योगदान दें। जीवन और उनसे जुड़े रिश्ते अनमोल होते हैं। एक बार कोई जब जुदा हो जाता है तो फिर नही मिलता।