लॉकडाउन नहीं हटा तो 2 करोड़ से ज्यादा कपल नहीं कर पाएंगे कंडोम का उपयोग, 8 लाख बच्चों का होगा जन्म और 10 लाख गर्भपात की संभावना

लॉकडाउन नहीं हटा तो 2 करोड़ से ज्यादा कपल नहीं कर पाएंगे कंडोम का उपयोग, 8 लाख बच्चों का होगा जन्म और 10 लाख गर्भपात की संभावना

संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय

New Delhi: देश कोविड-19 महामारी की चपेट में है। इस समय गर्भ निरोधकों तक पहुंच स्थापित करना मुश्किल हो रहा है, जिसका असर बड़े पैमाने पर होने की संभावना है। यह जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।राष्ट्रव्यापी बंद की अवधि के दौरान गर्भ निरोधकों का उपयोग करने में देश के लाखों पुरुषों और महिलाएं सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।

बताया गया है कि अगर स्थिति सामान्य नहीं हुई, तो देश में 2.4 करोड़ से 2.7 करोड़ दंपति गर्भ निरोधकों का उपयोग नहीं कर पाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 20 लाख अनपेक्षित गर्भधारण होंगे। इसमें आठ लाख बच्चों का जन्म होने और 10 लाख गर्भपात होने की बात कही गई है। इसके अलावा एक लाख असुरक्षित गर्भपात और 2000 से अधिक मातृ मृत्यु की दर का अनुमान लगाया गया है।

फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज इंडिया (एफआरएचएस) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी. एस. चंद्रशेखर ने कहा, ?लाइव जन्म दर वास्तव में अधिक हो सकती है, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान गर्भपात कराना प्रभावित हुआ है। अनचाहा गर्भ धारण करने वाली महिलाएं अपनी गभार्वस्था के साथ बने रहने के लिए मजबूर हो सकती हैं, क्योंकि उनके पास गर्भपात कराने जैसी उतनी सुविधा नहीं होगी।?

स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के अनुसार, 2019 में सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा 35 लाख नसबंदी, 57 लाख आईयूसीडी, 18 लाख इंजेक्ट गर्भनिरोधक सेवाएं प्रदान की गईं। इसके अलावा देश में 4.1 करोड़ ओरल गर्भनिरोधक गोलियां, 25 लाख आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां और 32.2 करोड़ कंडोम उपलब्ध कराए गए।

भले ही चिकित्सा क्षेत्र में चिकित्सकों और रसायनज्ञों को लॉकडाउन से छूट दी गई है, लेकिन लोगों की आवाजाही पर अंकुश के कारण ऐसी सुविधाओं में कमी आई है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सलाह के अनुसार, सार्वजनिक सुविधाओं ने अगली सूचना तक नसबंदी और आईयूसीडी (अंतर-गभार्शय गर्भनिरोधक उपकरण) के प्रावधान को निलंबित कर दिया है।

लोगों की आवाजाही पर रोक लगाने के साथ ही गर्भ निरोधकों जैसे कि कंडोम, ओरल गर्भनिरोधक गोलियों और आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों की पहुंच को कठिन बना दिया है। यही वजह है कि लाखों महिलाएं अपनी मर्जी से गर्भनिरोधक जैसी पसंद से भी वंचित रह गईं हैं।

एफआरएचएस ने 2018 और 2019 में क्लिनिकल फैमिली प्लानिंग (एफपी) सेवाओं और गर्भ निरोधकों की बिक्री के डेटा का इस्तेमाल किया, ताकि परिवार नियोजन पर लॉकडाउन के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए नीति को संक्षिप्त रूप से जारी किया जा सके। यह पता चला है कि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ऑपरेशन द्वारा गर्भपात कराने जैसी सेवाओं की सीमित उपलब्धता और केमिस्ट के पास भी गर्भपात दवाओं की उपलब्धता के लिए तमाम बाधाएं उत्पन्न हुई है।

यह भी कहा गया है क अगर नीतिगत कदम नहीं उठाए गए तो भारत में जनसंख्या स्थिरीकरण और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों से समझौता करना होगा। चंद्रशेखर और एफआरएचएस में रिसर्च एंड डेटा एनालिटिक्स के प्रबंधक अंकुर सागर ने जोर दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि गर्भनिरोधक सेवाएं सामान्य होते ही उपलब्ध करा दी जाएं।