ठंड का मौसम में योग और आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ रहने का सुनहरा अवसर : योगाचार्य संजय वस्त्रकार 


जैसे -जैसे शीत ऋतु अपने प्रभाव को गहराती है, ठंडी हवाएँ, कोहरा, धुंध और न्यून तापमान मनुष्य के शरीर तथा मन दोनों को गहराई से प्रभावित करते हैं तो प्रकृति हमें अंदर की ओर मुड़ने और आत्मचिंतन का संकेत देती है। । योगाचार्य संजय वस्त्रकार के अनुसार ठंड का मौसम शरीर के वात और कफ दोनों दोषों को बढ़ाता है, जिससे जोड़ों में जकड़न, खांसी-जुकाम, सुस्ती, मानसिक भारीपन, जल्दी थकावट, त्वचा में रुखापन, रक्तसंचार में कमी और प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने जैसी समस्याएँ बढ़ने लगती हैं। ऐसे में योग का नियमित अभ्यास शीत ऋतु में शरीर?मन को संतुलन देने का सबसे प्रभावी उपाय बन जाता है।
शीतऋतू में ठंड के कारण शरीर की रक्त वाहिनियाँ सिकुड़ जाती हैं, जिससे रक्तसंचार धीमा पड़ जाता है और शरीर में जकड़न एवं ऊर्जा की कमी महसूस होती है। इससे निपटने के लिए ऐसे योगासन अत्यंत प्रभावशाली हैं जो शरीर में गर्मी पैदा करें और रक्तप्रवाह को तेज करें। इनमे सूर्यनमस्कार के 12 आसनों के चक्र से शरीर का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। यह शरीर में ऊष्मा पैदा करके मांसपेशियों और जोड़ों की अकड़न दूर करता है, रक्तसंचार बढ़ाता है और पाचन अग्नि को प्रज्वलित रखता है।
ताड़ासन शरीर को स्थिरता देता है, कंधों और श्वास मार्ग को सक्रिय करता है।
भुजंगासन रीढ़ की लचीलापन बढ़ाता है और छाती क्षेत्र को खोलकर श्वास नलिकाओं को साफ रखता है।
मार्जरी-व्यग्रासन ठंड से प्रभावित रीढ़, कंधों और कमर को गर्म और लचीला बनाता है।
उष्ट्रासन फेफड़ों को खोलता है, जो ठंड में सिकुड़ जाते हैं। इससे श्वसन तंत्र मजबूत होता है और सर्दी-खाँसी से बचाव होता है।
पवनमुक्तासन पेट की गैस और कब्ज की समस्या को दूर करके पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है, जो ठंड में अक्सर सुस्त पड़ जाता है।
त्रिकोणासन के प्रकारांतर आसन पूरे शरीर में खिंचाव लाकर जकड़न दूर करते हैं, संतुलन बढ़ाते हैं और शरीर को सक्रिय रखते हैं।
प्राणायाम से ठंड और कोहरे के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हो सकती है और श्वसन संबंधी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। प्राणायाम के माध्यम से हम अपने फेफड़ों को शक्तिशाली बना सकते हैं। इनमे भस्त्रिका शरीर को त्वरित गति से गर्मी प्रदान करने वाला सबसे शक्तिशाली प्राणायाम है। यह चयापचय दर को बढ़ाता है और फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि करता है। कपालभाति प्राणायाम श्वसन मार्ग को साफ करने, कफ को हल्का करने और मस्तिष्क में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ाने में सहायक है। इससे मानसिक स्पष्टता और ऊर्जा मिलती है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, तंत्रिका तंत्र को शांत करने और हृदय गति को संतुलित रखने में मदद करता है। यह ठंड के तनाव को कम करने में अद्भुत कारगर है। सूर्यभेदी प्राणायाम ठंड के मौसम का सबसे महत्वपूर्ण प्राणायाम। दाहिनी नाड़ी (पिंगला) को सक्रिय कर शरीर में ऊष्मा पैदा करता है। भ्रामरी मानसिक तनाव कम कर मन को स्थिर रखता है।
ध्यान ठंड में धूप की कमी और लंबी रातें मन में उदासी और नकारात्मकता ला सकती हैं। ऐसे में, ध्यान वह सूरज है जो हमारे अंदर प्रकाश फैलाता है। प्रतिदिन 10-15 मिनट का ध्यान मन को स्थिर और भावनाओं को संतुलित रखता है। 'ओम' का उच्चारण करते हुए ध्यान करने से शरीर में कंपन पैदा होता है, जो गले और छाती के क्षेत्र में जमे कफ को ढीला करने में सहायक हो सकता है और मन को गहरी शांति प्रदान करता है।
शीत ऋतु में लाभकारी योगिक क्रियाएँ:
जलनेति ? नाक मार्ग को साफ कर साइनस संक्रमण व ठंड से सुरक्षा।
सुत्त नेति / रबर नेति ? गहरी सफाई, विशेषकर जिनको बार?बार जुकाम होता है।
त्राटक ? मानसिक स्थिरता बढ़ाता है, शीत ऋतु की मानसिक सुस्ती हटाता है।
कुंजल क्रिया ? पाचन तंत्र को मजबूत करता है, कफ विकारों को कम करता है।

योग के साथ-साथ आयुर्वेदिक जीवनशैली अपनाकर ठंड के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
स्वर्णिम काढ़ा: अदरक, तुलसी, काली मिर्च, लौंग और थोड़ी सी हल्दी डालकर बनाया गया काढ़ा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का राज है। इसमें गुड़ मिलाकर पीने से और भी लाभ मिलता है।
गर्म पानी के गरारे: रात को सोने से पहले गर्म पानी में हल्दी और सेंधा नमक डालकर गरारे करने से गले के संक्रमण और खाँसी में आराम मिलता है।
पथ्य-अपथ्य: ठंड के मौसम में ठंडे पेय, आइसक्रीम, दही खट्टा,अचार, अत्यधिक मीठा या तला हुआ भोजन और बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। इसके बजाय गर्म, ताजा बना भोजन, सूप,गर्म दूध , मूंगफली, खजूर, गुड़, घी, बाजरा?रोटी, मेथी, अदरक, लहसुन, हर्बल टी का सेवन लाभदायक रहता है। सूरज की धूप में बैठना स्वास्थ्य को अतिरिक्त सुरक्षा देता है।
ठंड का मौसम प्रकृति का दिया हुआ एक अवसर है?अपने अंदर के सूर्य को जगाने का। यह समय बाहरी गतिविधियों से विराम लेकर आत्मिक ऊर्जा को संचित करने का है। योग और आयुर्वेद की सरल प्रथाएँ इस मौसम को न सिर्फ निरोगी बना सकती हैं, बल्कि इसे आनंद, शांति और आत्म-विकास का एक सुनहरा दौर भी बना सकती हैं। इसलिए, जब बाहर कोहरा छाया हो और ठंड की खामोशी हो, तो अपनी योग मैट बिछाएं और अपने शरीर के भीतर छिपी गर्मी और चेतना को जगाएं।

लेखक: संजय वस्त्रकार
(यह लेखक के निजी विचार है)