जातिगत गाली-गलौज मामले में आरोपी ग्रामीण हुए बरी

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कोरिया जिले के तीन ग्रामीणों को राहत देते हुए एट्रोसिटी एक्ट के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाणपत्र अस्थायी था और केवल 6 माह की वैधता वाला था, इसलिए इस आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने रेकॉर्ड की जांच में पाया कि पीड़ित छोटेलाल किसी भी मान्य और स्थायी जाति प्रमाणपत्र को पेश नहीं कर पाया। ट्रायल कोर्ट में जो भी कागज़ दिए गए, वे अस्थायी प्रमाणपत्र थे और वैधता अवधि भी समाप्त हो चुकी थी। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध साबित करने के लिए वैध जाति प्रमाण अनिवार्य है, जो इस मामले में उपलब्ध नहीं था। मामला कोरिया जिले के सोनहत थाना क्षेत्र के ग्राम बोधर का है। प्रेमसाय राजवाड़े, ठाकुर प्रसाद राजवाड़े और धरमसाय के खिलाफ छोटेलाल ने 6 मार्च 2011 की घटना का हवाला देते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई थी। शिकायत में कहा गया था कि शाम करीब 6 बजे आरोपियों ने छोटेलाल के घर के पास आकर जातिगत गालियां दी, जान से मारने की धमकी दी और गांव छोड़ने को कहा। अभियोजन के मुताबिक छोटेलाल खैरवार (अनुसूचित जनजाति) समुदाय से है, जबकि आरोपियों का संबंध राजुआर जाति (पिछड़ा वर्ग) से है। गांव में हुए जनपद चुनाव में छोटेलाल की जीत और धरमसाय की हार के बाद दोनों पक्षों में तनाव बढ़ गया था।आरोपियों पर यह भी आरोप था कि उन्होंने राजुआर समुदाय की एक बैठक बुलाकर यह निर्णय लिया कि गांव का कोई भी व्यक्ति छोटेलाल से संपर्क रखेगा या उसके साथ सामान्य व्यवहार करेगा तो उसे 1,000 रुपये का जुर्माना देना होगा।पुलिस कार्रवाई नहीं करने पर छोटेलाल ने न्यायालय में परिवाद दायर किया, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने 2013 में तीनों को धारा 294 में एक माह कैद व 500 रुपये जुर्माना, धारा 506 में एक माह कैद व 500 रुपये जुर्माना तथा एट्रोसिटी एक्ट की धाराओं में 6 माह कैद व 500 रुपये अर्थदंड सुनाया था। सभी बिंदुओं की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रमाणपत्र की वैधता ही मामले का आधार थी, और वैध प्रमाणपत्र के बिना दोष सिद्ध नहीं होता। इस प्रकार तीनों ग्रामीणों को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया गया।