वत्साचार्य जी महाराज ने किया ‘अहिल्या उद्धार कथा’ का भावपूर्ण गान — रामकथा में श्रद्धा, करुणा और मोक्ष का संदेश।

अयोध्या, 22 अक्टूबर 2025 (संवाददाता अतुल पति त्रिपाठी)

आज श्री शिवधाम काशी जन कल्याण सेवा ट्रस्ट अयोध्या के तत्वावधान मे चल रही श्रीरामकथा महोत्सव की पावन श्रृंखला में भक्तों ने एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव का रसास्वादन किया। कथा के प्रथम दिन मंचासीन परम पूज्य श्री वत्साचार्य जी महाराज (डॉ. अशोक पांडेय) ? पीठाधीश, शिवधाम काशी मंदिर, अयोध्या ? ने अपने अमृतमय कंठ से ?अहिल्या उद्धार कथा? का दिव्य गान प्रस्तुत किया।
कथा की आरंभिक वेला-सुबह से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी थी। मंदिर की वायु में घंटा-घड़ियालों की ध्वनि, शंखनाद और वैदिक मंत्रों की गूंज से एक अद्भुत दिव्यता व्याप्त थी। श्रीरामचरितमानस के दोहों और चौपाइयों का मधुर पाठ वातावरण को भक्ति में डुबो रहा था। ठीक दोपहर 2 बजे जब श्री वत्साचार्य जी महाराज ने मंच ग्रहण किया, तो पूरा परिसर ?जय श्रीराम? के जयघोष से गूंज उठा।
कथा का विषय ? ?अहिल्या उद्धार?
महाराज श्री ने अपने प्रवचन का आरंभ करते हुए कहा ?
?अहिल्या केवल एक स्त्री नहीं, वह समाज में उपेक्षित आत्माओं का प्रतीक हैं। राम का चरण जहाँ पड़ता है, वहाँ केवल उद्धार नहीं, पुनर्जन्म होता है।? महाराज जी ने तुलसीदासजी के ?रामचरितमानस? के बालकाण्ड का प्रसंग लेकर अहिल्या के पत्थर बन जाने की कथा का मार्मिक वर्णन किया। उनके मुख से जब यह पंक्तियाँ निकलीं ??परसत पद पावन शोक ..।?
तो पूरा वातावरण भक्ति-भाव में डूब गया।
अहिल्या का प्रतीकात्मक अर्थ-
श्री वत्साचार्य जी ने गहन दार्शनिक दृष्टि से अहिल्या प्रसंग का अर्थ स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अहिल्या केवल पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि हर उस आत्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं जो किसी न किसी कारण से पत्थरवत हो चुकी है ? जिसमें संवेदना, श्रद्धा या प्रेम का प्रवाह रुक गया हो। ?जब मनुष्य के जीवन में सत्य, धर्म और मर्यादा के रूप में राम आते हैं, तभी उसका उद्धार संभव होता है,?
महाराज जी ने कहा।उन्होंने बताया कि अहिल्या का उद्धार केवल स्पर्श से नहीं, बल्कि राम के करुणामय दर्शन से हुआ ? जो यह सिखाता है कि परमात्मा की कृपा के बिना कोई उद्धार संभव नहीं।
श्रोताओं की भावविह्वल प्रतिक्रिया-
महाराज जी के भावपूर्ण गान के दौरान अनेक श्रद्धालुओं की आँखें नम हो गईं। कथा के साथ भजन कीर्तन का ऐसा संगम हुआ कि पूरा शिवधाम परिसर भक्ति रस में झूम उठा। भक्तों ने सामूहिक रूप से ?सीताराम जय जय सीताराम? का जाप किया। कथा के पश्चात जब महाराज जी ने सबको आशीर्वचन दिया, तो वातावरण में शांति और संतोष की अनुभूति थी।
धर्म, समाज और नारी गौरव पर संदेश-
श्री वत्साचार्य जी ने समाज को यह भी संदेश दिया कि ? ?अहिल्या की तरह आज भी समाज में अनेक आत्माएँ तिरस्कृत हैं। यदि हम सब ?राम? के आदर्शों को अपनाएँ, तो किसी का भी उद्धार असंभव नहीं।?
उन्होंने कहा कि स्त्री शक्ति का सम्मान ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है। राम ने अहिल्या को पुनः प्रतिष्ठा देकर समाज को यह सिखाया कि क्षमा, करुणा और सम्मान ही धर्म की नींव हैं।
समापन में आध्यात्मिक प्रेरणा-
कथा का समापन करते हुए महाराज जी ने कहा ??जब तक हृदय में अहंकार और संशय हैं, तब तक जीवन पत्थरवत है। जैसे राम ने अहिल्या को स्पर्श से जीवन दिया, वैसे ही यदि हम राम के नाम का स्पर्श अपने अंतःकरण में करें, तो हमारा भी उद्धार हो जाएगा। उनके इन वचनों पर पूरा पंडाल ?जय जय श्रीराम? के घोष से गूंज उठा।
आयोजक मंडल का धन्यवाद ज्ञापन-
कार्यक्रम के अंत में शिवधाम सेवा समिति के प्रमुख आचार्यगणों ने श्री वात्साचार्य जी महाराज का अभिनंदन किया और उन्हें पुष्पमालाएँ अर्पित कीं। समिति के सचिव ने बताया कि यह कथा श्रृंखला पूरे सप्ताह चलेगी और प्रत्येक दिन श्री वात्साचार्य जी महाराज विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन करेंगे।
आज की कथा ने यह संदेश दिया कि भगवान राम केवल मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं, बल्कि करुणा के सागर हैं ? जो हर जीवात्मा के भीतर सुप्त चेतना को जागृत करते हैं।
अहिल्या उद्धार का प्रसंग केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन के पत्थर जैसे क्षणों में भक्ति का स्पर्श देने वाली प्रेरणा है।
श्री वात्साचार्य जी महाराज के शब्दों में ?
?राम का नाम जपना ही आत्मा का उद्धार है। जो इसे अपनाता है, वही सच्चे अर्थों में मुक्त होता है।?