त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ने की थी सिद्धेश्वर महादेव की स्थापना। इस सिद्धि स्थान पर रुद्राभिषेक कराने का अलग ही है महत्व ।

सीतापुर/ जनपद मुख्यालय से पैंतीस किमी की दूरी पर स्थित आशुतोष शिव की तपस्थली वाला अति पुनीत अरण्य क्षेत्र जो जगत जननी लिंग धारिणी मां ललिता देवी ही नहीं अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्या का केंद्र बिंदु होने के साथ-साथ वेद पुराणों की जननी के रूप में भी विश्व विख्यात है । इस पुनीत तीर्थ स्थल से कलकल निनाद करती हुई बहने वाली आदि गंगा गोमती नदी के किनारे दशाश्वमेध-घाट के समीप सुरम्य वातावरण में सिद्धेश्वर महादेव का अति प्राचीन सिद्ध स्थान है इस स्थान पर स्थापित शिवलिंग की स्थापना त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ने की थी आज भी यह पौराणिक स्थल हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हुआ बना है ।प्राप्त जानकारी के अनुसार नैमिषारण्य के दक्षिण आदि गंगा गोमती के किनारे दशाश्वमेध घाट के समीप प्राचीन सिद्धेश्वर महादेव का स्थान अपने वजूद में एक अविस्मरणीय गाथा संजोएं हुए है। ज्ञातव्य हो कि हो कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी ने अपने चौदह वर्षीय वनवास काल के दौरान रावण वध के उपरांत अयोध्या वापस आए जहां उनका राज्याभिषेक हुआ। लोकपवाद के भय से उन्होंने अपनी पत्नी सीता जी का परित्याग गर्भावस्था के दौरान कर दिया जिनको उनके अनुज लक्ष्मण बाल्मिक आश्रम के समीप जंगल में छोड़ आए थे तदुपरान्त भगवान राम ने अपने कुल गुरु वशिष्ठ से कहा कि जिस सीता के लिए हमने समुद्र में सेतु का निर्माण करके रावण जैसे वीर ब्राह्मण का समूलसंघार कर दिया परंतु लोकापवाद के भय से हमें उसी सीता का गर्भावस्था के दौरान परित्याग करने पर मजबूर होना पड़ा मेरे द्वारा हुए इस पाप कृत्य से मुझे मुक्त कैसे मिलेगी जिस पर गुरु वशिष्ठ ने कहा हे राघव आपकी इस समस्या का निदान मेरे पास नहीं है इसका तो निदान नैमिषारण्य तीर्थ में चलने वाली ऋषि मुनियों की धर्म संसद से ही प्राप्त होगा जिस पर भगवान रामचंद्र अपने कुल गुरु के साथ अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्थली नैमिषारण्य तीर्थ आकर यहां की धर्म संसद में अपनी बात कहकर समस्या निदान करने की याचना की तब ऋषि मुनियों ने विचार विमर्श कर उन्हें बताया कि आप इस परम पवित्र भूमि पर अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करें तो आपके द्वारा किए गए पाप कर्म से मुक्ति मिल सकती है लेकिन ऋषि मुनियों ने यह भी कहा कि यज्ञ का अनुष्ठान सपत्नीक के ही संपन्न होगा। लेकिन धर्मपत्नी न होने के कारण समस्या ज्यों की त्यों ही बनी रही तदुपरांत ऋषि मुनियों के ही विचारों प्रांत सीता जी की स्वर्णमयी प्रतिमा का निर्माण करा कर नैमिषारण्य तीर्थ के गोमती तट पर भगवान रामचंद्र द्वारा आशुतोष शिव सिद्धेश्वर महादेव के रूप में स्थापना कर पूजन अर्चन के बाद ऋषि मुनियों एवं धर्माचार्यों ने अश्वमेध यज्ञ संपन्न कराया भगवान रामचंद्र जी का यह दसवां अश्वमेध यज्ञ था इसीलिए इस स्थान का नाम दशाश्वमेध घाट रखा गया वर्तमान में सिद्धेश्वर महादेव का अति प्राचीन सिद्ध स्थान हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है मान्यता यह भी है कि सिद्धेश्वर महादेव के स्थान पर भक्तों द्वारा की गई कामना तीन से पांच माह के अंदर अवश्य पूरी हो जाती है इस स्थान पर रुद्राभिषेक करने का एक अलग ही महत्व बताया जाता है श्री सिद्धेश्वर महादेव के समीप ही श्री सीताराम जी का भव्य दरबार आज भी मौजूद है इस दरबार में परम भक्त वीर हनुमान की दक्षिण मुखी प्रतिमा विराजमान है जो हाथों में धनुष बाण ढाल तलवार लेकर प्रभु राम व भक्तों के परिवार की रक्षा हेतु तत्पर जान पड़ती है यह अपने आप में विलक्षण है धर्मालंबियों का कहना है कि इस स्थान पर सच्चे मन से की गई पूजा स्वयं स्वीकार होती है वर्तमान समय में आशुतोष शिव के अति प्रिय पावन श्रावण मास में इस सिद्ध स्थान पर कांवड़ियों और शिव भक्तों का ताता लगा रहता है जिनके बोल बम के नारों से पूरा आरण्य क्षेत्र गुंजायमान होता रहता है।