मोहर्रम यजीद के जुल्म, अन्याय व अत्याचार के खिलाफ था कर्बला की जंग यजीद के 22 हजार फौज पर भारी पड़े थे, हुसैन के 72 साथी

कुशीनगर मोहर्रम का महीना इस्लानी कैलेंडर व इस्लामिक अरबी का नया वर्ष का पहला महीना है। इस्लामिक किताबों के मुताबिक इसी महीने में पैगम्बर मोहम्मद साहब भी खूब अल्लाह की इबादत करते थे तथा रोजे भी रखते - थे। इस माह के 10 वीं तारीख को इबादत करना अति महत्वपूर्ण बताया गया है। मोहर्रम की 10 वीं तारीख - का रोजा रखने का विशेष फायदा = और महत्त्व है, इसके अलावा यह भी जिक्र है कि इसी दिन अल्लाह के - नबी हजरत नूह (अ.) की किश्ती - को किनारा मिला था। ईस्लामिक - तारीखी किताबों व कैलेंडर के - मुताबिक 1380 साल पहले पैगम्बर - मोहम्मद साहब के नवासे इमाम - हुसैन के इसी माह के 10 वीं तारीख - को इराक स्थित कर्बला में सत्य, - न्याय व ईमान के लिये यजीद के अत्याचार व जुल्म के खिलाफ जंग - हुई थी। यह जंग पैग़म्बर मोहम्मद साहब के वफात (मृत्यु) के 50 वर्ष - बाद मक्का से दूर यजीद ने अपने को - खलीफा घोषित कर दिया। जो अब - सीरिया देश के नाम से जाना जाता - है। यजीद ने आवाम में अपना खौफ - पैदा करने के लिये उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया तथा लोगों को - गुलाम बनाने लगा यजीद अपने बाहुबल व फौज की ताकत के बल पर पुरे अरब पर कब्जा कर अपना हुकूमत करना चाहता था। जब यजीद की यह बात पैगम्बरे इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे व वारिश इमाम हुसैन के पास आयी तो इमाम हुसैन ने उसकी बात नही मानी और न ही उसके सामने घुटने टेके जिसके बाद उनके बीच जमकर मुकाबला हुआ। इसी दरमियान अपने परिवार व साथियों को महफूज रखने के लिये इमाम हुसैन मदीना से इराक कुफा के लिये कूच कर रहे थे कि रास्ते में ही तपती रेगिस्तान में कर्बला के पास यजीद व उसकी फ़ौज द्वारा उनको रोक दिया गया वह दूसरी मोहर्रम का दिन था जब तपती रेगिस्तान में उनके काफिले को रोका गया। हुसैन के काफिले को ऐसे जगह पर रोका गया जहाँ पानी का एक मात्र स्रोत फरात नदी ही बस था। उस नदी पर यजीद ने पानी के लिये रोक लगा दी ताकि हुसैन यजीद के सामने झुक जाय और उसकी बात स्वीकार कर ले पर लाख कोशिशों के बावजूद इमाम हुसैन ने यजीद के सामने झुके नहीं और आखिरी में जंग का ऐलान हुआ और उन पर हमला कर दिया गया। इस जंग में यजीद के पास 22 हजार से अधिक सैनिक थे। जबकि हुसैन के साथ मात्र 72 लोग थे। फिर भी हुसैन हिम्मत नहीं हारे और यजीद से मुकाबला जारी रखा। जंग में धीरे-धीरे इमाम हुसैन के सभी साथी शहीद हो गये। हुसैन अकेले जंग लड़ते रहे। यजीद के लिये हुसैन को हराना या मारना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन था सिर्फ हुसैन ही बचे थे। यह जंग एक दिन तक चली जंग के आखीरी वक्त हुसैन ने अपनी भी गर्दन शहीद करा दी। ऐसा कहा गया कि हुसैन जंग जीतने नही बल्कि न्याय, मानव हक के लिये कुवांन होकर एक मिशाल कायम करने आये थे। जिनको आज पूरी दुनिया न्याय हक व मान-सम्मान के लिये शहीद होने के रूप में जानतें है तथा उन्हें याद करतें है। आज मोहर्रम के इस तारीख को कर्बला की जंग व इमाम हुसैन की न्याय, हक व ईमान के लिये शहीद हो जाने के रूप में मनाया जाता है। इन दिनों में सुन्नी व शिया मुसलमानों द्वारा ताजिया प्रदर्शन, अखाड़ा, मातम सहित तमाम आडम्बरों को मनाया जाता हैजंग में प्यासों के तर्ज पर जगह- जगह पानी व शरबत पिलाया जाता है तथा 10 वीं मोहर्रम को ताजिया दफ़न करने की परंपरा बनाई गई।