कोरबा की रात का चीखता सच — प्लास्टर चढ़े हाथ से मौत दौड़ाता रहा नशे में धुत युवक, मासूम बच्ची नाली में गिरी, सड़क पर बिछी चीत्कारें

कोरबा, 3 जुलाई 2025।रात लगभग 10 बजे का समय। गर्मी के बीच राहतभरी बारिश के बाद शहर की सड़कों पर जीवन सामान्य रूप से बह रहा था। लोग अपने-अपने कामकाज से लौट रहे थे। कुछ दुकानों पर चाय की चुस्कियाँ चल रही थीं, कुछ लोग घर पहुँचने की जल्दी में थे। लेकिन इस सामान्य सी लगती रात को एक नशे में धुत्त युवक की रफ्तार ने एक भयावह और रूह कंपा देने वाली कहानी में तब्दील कर दिया।

शुरुआत: एक गूंजता धमाका और फिर सन्नाटा

आईटीआई चौक से बुधवारी बाजार की ओर जाने वाली वीआईपी रोड पर अचानक तेज़ रफ्तार से आती एकस्विफ्ट कार ने सन्नाटे को चीरते हुए पहले एक TVS चैम्प को उड़ा दिया। उस बाइक पर दो लोग सवार थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि बाइक हवा में उछलकर कुछ मीटर दूर जा गिरी और सवार लोग सड़क पर दूर तक घसीटते चले गए।

लेकिन यह सिर्फ शुरुआत थी। कार चालक, जो कि बुरी तरह नशे में था और जिसका एक हाथ प्लास्टर से बंधा हुआ था, स्टेयरिंग से नियंत्रण खो बैठा। कुछ ही सेकंड बाद उसने एक यामाहा बाइक को ठोकर मारी, जिसमें सवार युवक के दोनों पैर कुचल गए। यह हादसा इतनी तेजी से हुआ कि लोग कुछ समझ भी नहीं पाए और तब तक कार एक साइकिल सवार को भी कुचलती हुई आगे निकल गई।

अगली टक्कर: मासूम के साथ बर्बरता की पराकाष्ठा

सरस्वती शिशु मंदिर के पास एक और बाइक पर एक 6 साल की मासूम बच्ची अपने परिजन के साथ सवार थी। कार ने उन्हें भी जोरदार टक्कर मारी। हादसे के तुरंत बाद बच्ची घटनास्थल से लापता हो गई। आसपास खड़े लोगों का दिल दहल गया बच्ची कहाँ गई? यह सवाल हर किसी के चेहरे पर था।

करीब 30 मिनट की तलाशी के बाद, वह मासूम बच्ची स्कूल के पास एक गहरी नाली में गिरी हुई मिली। चेहरे पर खून, कपड़े गीले और शरीर में खरोंचें यह दृश्य देखने वाले हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं। कई लोगों की आंखों से आंसू अपने आप निकल आए। उस छोटी सी बच्ची की चुप्पी, उस हादसे की सबसे चीखती हुई तस्वीर थी।

घटनास्थल बना युद्ध का मैदान: लोगों का गुस्सा भड़का

सड़क पर चीखते घायलों की आवाज़ें, गिरती बाइकें, टूटे हुए हेलमेट, और नाली में पड़ी मासूम बच्ची इन सबने लोगों का दिल दहला दिया। कुछ ही मिनटों में घटनास्थल पर भीड़ जमा हो गई। भीड़ ने जब देखा कि कार चला रहा युवक नशे में चूर है और उसके हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है, तो लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।

चालक राहुल यादव, जो कि ढोढ़ीपारा का निवासी है और सीएसईबी कर्मचारी बताया गया है, को लोगों ने खींचकर गाड़ी से बाहर निकाला और पीटना शुरू कर दिया। पुलिस जब मौके पर पहुंची, तो उसे भीड़ से बचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।

लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकीजब पुलिस की गाड़ी में उसे ले जाया जा रहा था, लोगों ने पीछा किया, और जब जाम की वजह से गाड़ी रुकी, तो लोगों ने आरोपी को फिर गाड़ी से बाहर खींच लिया और जमकर पीटा।

भीड़ का सवाल ? अगर हमारी बच्ची नहीं मिलती तो?

घटनास्थल पर मौजूद एक महिला ने रोते हुए कहा

"उस मासूम को अगर हम समय पर न ढूंढते, तो उसका क्या होता? कौन जिम्मेदार होता?"

एक बुजुर्ग बोले

"हमने ऐसी गाड़ियाँ देखी हैं, रफ्तार देखी है, लेकिन इस हद तक लापरवाह? प्लास्टर लगे हाथ से कार चलाना, वो भी शराब पीकर?"

बच्ची के परिजन, जो अभी भी सदमे में थे, ने सिर्फ इतना कहा

"हम चुप थे, लेकिन आज भगवान ने एक बार फिर सिखाया कि सड़क पर कोई सुरक्षित नहीं।"

आखिर कब जागेगा सिस्टम?

राहुल यादव जैसे व्यक्तियों के लिए शायद ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ एक कागज़ भर होता है। वह सरकारी कर्मचारी है, उसके पास पहचान है, लेकिन क्या उससे ज़िम्मेदारी भी जुड़ी नहीं थी

प्लास्टर चढ़ा हाथ और शराब के नशे में व्यक्ति को किसने गाड़ी चलाने दिया?

कार नंबर (CG12 BE 2806) पहले से कई बार तेज़ रफ्तार के मामलों में देखी गई थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

पुलिस की कार्रवाई और प्रशासन की चुप्पी

सिविल लाइन पुलिस और सीएसईबी पुलिस सहायता केंद्र की टीम ने राहुल यादव को पकड़कर सिविल लाइन थाना ले जाया। लेकिन सवाल ये उठता है कि ?

क्या सिर्फ थाने ले जाना पर्याप्त है?

इस दुर्घटना में चार लोग गंभीर रूप से घायल हैं, एक मासूम बच्ची नाली में पड़ी मिली, और कई जानें बाल-बाल बचीं। फिर क्या यह हादसा BNS (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 106 (उद्देश्यपूर्वक गंभीर लापरवाही से जान जोखिम में डालना), 113 (जानबूझकर क्षति पहुँचाना), और 281 (नशे में वाहन चलाना) जैसे गंभीर अपराध नहीं बनते?

मासूमियत की मिट्टी में सिसकती सड़कें

उस रात वीआईपी रोड सिर्फ काले तारकोल की सड़क नहीं रही। वो एक मौन श्मशान बन चुकी थी, जहाँ मासूमियत, जिम्मेदारी, और कानून तीनों का मज़ाक उड़ाया गया।

जो बच्ची नाली से निकाली गई, वह पूरे शहर की आत्मा की चीख बन गई है। उसकी चुप्पी पूछ रही है ?

"क्या अब हम सड़क पर चल भी नहीं सकते?"

"क्या अब बच्चे भी सुरक्षित नहीं?"

अंतिम पंक्तियाँ: ये सिर्फ हादसा नहीं था, ये एक सामाजिक आत्महत्या थी

हम हादसों को आंकड़ों में गिनते हैं, लेकिन हर हादसे के पीछे एक परिवार टूटता है, एक माँ रोती है, एक मासूम डर से सहम जाता है, और एक समाज शर्मसार होता है।

राहुल यादव जैसे लोग सिर्फ शराबी या लापरवाह नहीं ये समाज की नींव को चाटते दीमक हैं।

कोरबा प्रशासन और छत्तीसगढ़ शासन को अब आंखें खोलनी होंगी। ये हादसे अब सामान्य नहीं रह गए। ये संकेत हैं हमारे व्यवस्था की, हमारे संस्कारों की, और हमारे ज़मीर की परीक्षा का।

📍 CitiUpdate के लिए ? समीर खूंटे

हादसे थम सकते हैं, अगर इरादे मजबूत हों। लेकिन अगर कानून भी नशे में हो, तो फिर सड़कें कब्रिस्तान बनती रहेंगी