नशा आपको नर्क की ओर ले जाता है, लेकिन स्वर्ग का छलावा देकर। – डोनाल्ड लिन फ्रॉस्ट

नशा आपको नर्क की ओर ले जाता है, लेकिन स्वर्ग का छलावा देकर। डोनाल्ड लिन फ्रॉस्ट

26 जून को "मादक द्रव्यों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर आइए हम इस भयावह समस्या की गंभीरता और इसके द्वारा मानवता को पहुँचाए जा रहे नुकसान को समझने का प्रयास करें। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 26 जून को यह दिवस इसलिए मनाया जाता है, ताकि लोगों में जागरूकता फैलाई जा सके, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके और एक नशामुक्त विश्व के निर्माण के लिए हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता को दोहराया जा सके।

मादक द्रव्यों के दुरुपयोग की समस्या कितनी गंभीर है?

मादक द्रव्यों का दुरुपयोग अब कोई सीमांत समस्या नहीं रह गया है, यह एक वैश्विक महामारी बन चुका है। UNODC कार्यालय के अनुसार, वर्ष 2021 में लगभग 296 मिलियन (29.6 करोड़) लोगों ने दुनिया भर में नशीली दवाओं का सेवन किया, जो पिछले दशक की तुलना में 23% की चौंकाने वाली वृद्धि को दर्शाता है। इसके अलावा, 39 मिलियन (3.9 करोड़) से अधिक लोग 'नशीली दवाओं के दुरुपयोग विकार' से पीड़ित हैं। मादक द्रव्यों का दुरुपयोग समाज को अस्थिर कर रहा है, संगठित अपराध को बढ़ावा दे रहा है और मानव जीवन व गरिमा पर भारी कीमत थोप रहा है। दुनिया भर में नशीली दवाओं का व्यापार, जिसकी सालाना कीमत अरबों डॉलर में आंकी जाती है, केवल एक आपराधिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय आपदा बन चुका है।

भारत, अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, एक ओर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान तथा दूसरी ओर म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के बीच, नशीले पदार्थों के लिए एक पारगमन मार्ग (ट्रांजिट कॉरिडोर) और उपभोक्ता बाजार के रूप में उभर रहा है। 2019 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन में सामने आया कि, लगभग 2.06% भारतीय जनसंख्या नशीले पदार्थों का सेवन करती है। लगभग 8.5 लाख लोग इंजेक्शन के माध्यम से नशा करते हैं। गांजा, शराब, हेरोइन और सिंथेटिक ड्रग्स का प्रयोग विशेष रूप से किशोरों और युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है। भारत में नशे की लत किसी विशिष्ट वर्ग या भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, यह महानगरों, सीमा से लगे राज्यों और ग्रामीण क्षेत्रों तक फैली हुई है। हालाँकि भारत में NDPS अधिनियम जैसे कड़े कानून और NCB, RPF तथा राज्य पुलिस जैसी एजेंसियों द्वारा सक्रिय कार्रवाई जारी है, लेकिन नशा तस्करी नई तकनीकों और मार्गों के माध्यम से खुद को लगातार ढाल रही है। इसलिए, सक्रिय प्रवर्तन, पुनर्वास और व्यापक जन-जागरूकता के माध्यम से एक सतत राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता है, ताकि इस सामाजिक बुराई को जड़ से समाप्त किया जा सके।

पंजाब और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मणिपुर, मिज़ोरम और नागालैंड नशीले पदार्थों का उत्पादन करने वाले देशों से लगी असुरक्षित सीमाओं (porous borders) के कारण अत्यंत संवेदनशील हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और गोवा जैसे शहरी केंद्रों में मनोरंजनात्मक नशे (Recreational Drug Use) का चलन तेज़ी से बढ़ा है, विशेषकर नाइटलाइफ सर्किट और कॉलेज परिसरों में।

सबसे अधिक प्रभावित कौन हैं ?

1.युवा और छात्र यह सबसे संवेदनशील वर्ग है। इन्हें अक्सर साथियों के दबाव, जिज्ञासा, या तनाव के कारण निशाना बनाया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों और हॉस्टलों में नशे की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।

2.शहरी कामकाजी वर्ग तनाव, अकेलापन और जीवनशैली से जुड़ी आदतों के कारण युवाओं में नशीले पदार्थों का सेवन बढ़ रहा है।

3.झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले और सड़क पर रहने वाले बच्चे गरीबी, अपराध और देखरेख की कमी इन्हें नशा तस्करों और गिरोहों का आसान शिकार बना देती है।

4.किसान और सीमा पर बसे ग्रामीण कुछ क्षेत्रों में आर्थिक तंगी के चलते नशीले पौधों की खेती या तस्करी को जीविका का साधन बना लिया जाता है।

5.महिलाएं और परिवार यह वर्ग अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि कई महिलाएं खुद नशे की शिकार होती हैं या नशे की गिरफ्त में आए परिजनों के कारण पीड़ित रहती हैं। इससे घरेलू हिंसा और सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न होती है।

6.कैदी वर्ग जेलों में बंद कई लोग नशा करने वाले या छोटे स्तर के तस्कर होते हैं। जेलों के भीतर नशे का सेवन भी एक उभरती हुई गंभीर समस्या बन चुका है।

मादक द्रव्यों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी को नियंत्रित करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

मादक द्रव्यों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी को नियंत्रित करना कई जटिल चुनौतियों से भरा हुआ कार्य है। इनमें सबसे बड़ी समस्या है नशीले पदार्थों के तस्करों का विशाल और लगातार बदलता हुआ नेटवर्क, जो उन्नत तकनीक, एन्क्रिप्टेड संचार प्रणाली और बार-बार बदलते तस्करी मार्गों का उपयोग करके सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी से बच निकलता है। भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत की स्थिति ऐसे देशों के निकट होने के कारण जहाँ नशीले पदार्थों का उत्पादन और परिवहन होता है उसे एक प्राकृतिक पारगमन केंद्र (ट्रांजिट हब) बना देती है। सीमा और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी प्रभावी निगरानी और कानून प्रवर्तन में बाधा उत्पन्न करती है। इसके अतिरिक्त, नशे की लत के प्रति जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक के कारण पीड़ित व्यक्ति मदद लेने से हिचकते हैं, जिससे उपचार और पुनर्वास की प्रक्रिया बाधित होती है। आजकल सिंथेटिक और डिजाइनर ड्रग्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है, जिन्हें पहचानना और नियंत्रित करना कठिन होता है। यह एक नई और खतरनाक चुनौती के रूप में उभर रही है। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है एक समन्वित प्रयास, जिसमें कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा क्षेत्र और सामुदायिक भागीदारी सक्रिय रूप से सम्मिलित हों ताकि नशीले पदार्थों की आपूर्ति और मांग, दोनों को प्रभावी रूप से कम किया जा सके।

भारत में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी को नियंत्रित करने के लिए कानूनी एवं संस्थागत ढांचा:

भारत में मादक द्रव्यों के दुरुपयोग और अवैध तस्करी से निपटने के लिए एक सशक्त कानूनी और संस्थागत ढांचा मौजूद है। देश नशीली दवाओं और मादक पदार्थों के प्रति 'शून्य सहनशीलता' (Zero Tolerance) की नीति अपनाता है, और इसके कानून अंतरराष्ट्रीय संधियों एवं समझौतों के अनुरूप हैं। भारत का प्रमुख कानूनी और संस्थागत ढांचा निम्नलिखित है

1.मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act): यह अधिनियम भारत में मादक द्रव्यों और मन:प्रभावी पदार्थों के नियंत्रण, विनियमन और प्रतिबंध का प्रमुख कानून है। इसके अंतर्गत

  • निषेध: यह अधिनियम उत्पादन, निर्माण, स्वामित्व, बिक्री, खरीद, परिवहन, गोदाम में रखना, उपयोग, सेवन, आयात और निर्यात को निषिद्ध करता है, जब तक कि वह चिकित्सकीय या वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए न हो।
  • कठोर दंड: नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों के लिए कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें सख्त कारावास से लेकर दोहराए गए अपराधों या बड़े तस्करों के लिए मृत्युदंड तक शामिल है।
  • संपत्ति की जब्ती: ड्रग तस्करी से अर्जित संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है।
  • विशेष अदालतें: त्वरित न्याय के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जा सकती है।
  • पुनर्वास की सुविधा: कुछ विशेष परिस्थितियों में नशा पीड़ितों के पुनर्वास और उपचार की व्यवस्था भी की गई है।

2.मादक द्रव्यों और मन:प्रभावी पदार्थों की अवैध तस्करी की रोकथाम अधिनियम, 1988: यह अधिनियम NDPS अधिनियम को अनुपूरक करता है और संदिग्ध व्यक्तियों की निवारक गिरफ्तारी (Preventive Detention) की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य तस्करी की योजना बनाने वालों और संगठित गिरोहों पर पहले से ही कार्रवाई करना है।

3. संस्थाएं और प्रवर्तन एजेंसियां (Institutions and Enforcement Agencies)

  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB): गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत यह सर्वोच्च एजेंसी है जो पूरे भारत में नशा नियंत्रण कानून के प्रवर्तन, समन्वय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का कार्य करती है।
  • राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI): यह एजेंसी बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से होने वाली नशीली दवाओं की तस्करी को रोकती है।
  • केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (CBN): यह अवैध अफीम की खेती को नियंत्रित करता है और उसके दुरुपयोग को रोकता है।
  • राज्य पुलिस एवं आबकारी विभाग: ये स्थानीय स्तर पर छापेमारी, जब्ती और गिरफ्तारी जैसे कार्यों को अंजाम देते हैं।
  • रेलवे सुरक्षा बल (RPF) और राजकीय रेलवे पुलिस (GRP): ये एजेंसियां रेलवे नेटवर्क के माध्यम से होने वाली ड्रग्स की तस्करी पर निगरानी रखती हैं।
  • सीमा सुरक्षा बल (BSF) और भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard): ये बल सीमा और तटीय क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय तस्करी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नशा तस्करों द्वारा रेलवे का उपयोग और इससे उत्पन्न चुनौतियाँ:

नशा तस्कर भारत में फैले विशाल और सुलभ रेलवे नेटवर्क का अक्सर दुरुपयोग करते हैं ताकि वे नशीले पदार्थों को राज्यों और क्षेत्रों के बीच आसानी से पहुंचा सकें। रेलवे एक ऐसा माध्यम है जो कम लागत, कम संदेह और बड़ी मात्रा में परिवहन की सुविधा प्रदान करता है, जिससे हर यात्री या माल की निगरानी करना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बेहद कठिन हो जाता है। ट्रेनों की संख्या, उनकी लगातार आवाजाही, यात्रियों की भारी भीड़ और खुले प्लेटफॉर्म तस्करों को यह अवसर देते हैं कि वे ड्रग्स को सामान, पार्सल या मानव वाहकों के माध्यम से छुपाकर ले जा सकें। अनारक्षित डिब्बे, स्लीपर कोच और पार्सल वैन इस कार्य के लिए अक्सर सबसे ज़्यादा दुरुपयोग किए जाते हैं। इसके अलावा, तस्कर बार-बार अपना मार्ग और ट्रेनों को बदलते रहते हैं ताकि वे चेक किये जाने से बच सकें। ये सभी कारक रेलवे के माध्यम से होने वाली नशा तस्करी को एक गंभीर चिंता का विषय बनाते हैं, जिससे निपटने के लिए ज़रूरी है: मजबूत खुफिया तंत्र, एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय, स्कैनर और सीसीटीवी जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग, और रेलवे सुरक्षा बल (RPF) व राजकीय रेलवे पुलिस (GRP) द्वारा बढ़ी हुई गश्त। इन प्रयासों से ही रेलवे मार्गों पर नशीले पदार्थों की तस्करी पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो सकेगा।

मादक द्रव्यों के परिवहन को रोकने में रेलवे सुरक्षा बल (RPF) की भूमिका

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) भारतीय रेलवे के माध्यम से होने वाली अवैध मादक द्रव्यों की तस्करी को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारतीय रेलवे का व्यापक नेटवर्क और प्रतिदिन भारी मात्रा में यात्री व माल ढुलाई के कारण यह तस्करों के लिए ड्रग्स को गुप्त रूप से स्थानांतरित करने का एक पसंदीदा माध्यम बन चुका है। इस खतरे का सामना करने के लिए RPF द्वारा निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं: ट्रेनों और स्टेशनों की नियमित जांच, संदिग्ध यात्रियों, पार्सलों और सामानों की तलाशी, तस्करी के लिए पहचाने गए मार्गों और व्यक्तियों पर कड़ी निगरानी। RPF, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), राजकीय रेलवे पुलिस (GRP) और राज्य पुलिस जैसी एजेंसियों के साथ मिलकर खुफिया जानकारी साझा करता है तथा संयुक्त छापेमारी और अभियानों का संचालन करता है। इसके अतिरिक्त, RPF CCTV निगरानी, स्निफर डॉग्स और अपनी आसूचना इकाईयों की सहायता से अवैध गतिविधियों पर नजर रखता है। विधिक कार्रवाई के साथ-साथ RPF यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों के बीच नशा तस्करी के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने का भी कार्य करता है। इन प्रयासों के माध्यम से RPF ड्रग्स नेटवर्क को तोड़ने और रेलवे प्रणाली को सुरक्षित व नशा-मुक्त बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहा है।

नशा तस्करों के विरुद्ध रेलवे सुरक्षा बल (RPF) द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम:

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने रेलवे नेटवर्क के माध्यम से होने वाली मादक द्रव्यों की तस्करी को रोकने के लिए कई सक्रिय और प्रभावी कदम उठाए हैं। RPF ट्रेनों, प्लेटफार्मों और पार्सल कार्यालयों पर नियमित और आकस्मिक (सप्राइज़) जांच अभियान चलाकर नशीली दवाओं और मन:प्रभावी पदार्थों (NDPS) की आवाजाही का पता लगाने का प्रयास करता है। RPF ने उच्च जोखिम वाले स्टेशनों और संवेदनशील रेल मार्गों पर विशेष निगरानी दलों और डॉग स्क्वॉड की तैनाती की है। बल नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), राजकीय रेलवे पुलिस (GRP) और राज्य की मादक द्रव्य विरोधी इकाइयों के साथ मिलकर संयुक्त अभियान और खुफिया जानकारी के आधार पर छापेमारी करता है। बेहतर निगरानी के लिए RPF द्वारा CCTV मॉनिटरिंग सिस्टम, हैंडहेल्ड स्कैनर और बॉडी-वॉर्न कैमरा जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग लगातार बढ़ाया जा रहा है। RPF ड्रग्स की जब्ती का पूरा रिकॉर्ड रखता है, दोहरे अपराधियों (repeat offenders) पर नजर रखता है, और NDPS कानूनों एवं संबंधित मामलों के संचालन के लिए अपने कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण भी प्रदान करता है। इसके अलावा, RPF यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों को मादक द्रव्यों की तस्करी के खतरों और कानूनी परिणामों के बारे में शिक्षित करने हेतु जन-जागरूकता अभियान भी चलाता है। इन समन्वित प्रयासों के परिणामस्वरूप भारतीय रेलवे में ड्रग्स से संबंधित अपराधों की पहचान और रोकथाम में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है।

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) के प्रयासों का प्रभाव:

वर्ष 2024 मादक द्रव्यों के विरुद्ध चलाए गए अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हुआ।ऑपरेशन नारकोस के तहत ₹227.55 करोड़ की अब तक की सबसे बड़ी ड्रग्स जब्ती और 1,388 गिरफ्तारियों के साथ यह वर्ष सख्त प्रवर्तन और खुफिया आधारित कार्रवाई का प्रतीक बना। वहीं, वर्ष 2025 के जनवरी से अप्रैल तक के आंकड़े पहले ही ₹68.41 करोड़ मूल्य की जब्ती को दर्शा रहे हैं, जो यह साबित करता है कि RPF लगातार सक्रिय है और मादक द्रव्यों की तस्करी को रोकने के अपने मिशन में प्रभावी रूप से जुटी हुई है।

हर साल भारत के रेलवे नेटवर्क में सैकड़ों नशा तस्करों को गिरफ्तार किया जाता है।करोड़ों रुपये मूल्य के मादक पदार्थों की बड़ी मात्रा में जब्ती की जाती है।बढ़ती सतर्कता और समय पर हस्तक्षेप के कारण रेलवे परिसर यात्रियों के लिए पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित बन गए हैं।

रेलवे सुरक्षा बल (RPF) का समाज के लिए संदेश:

मादक द्रव्यों का दुरुपयोग और अवैध तस्करी न केवल व्यक्तिगत जीवन को नष्ट करते हैं, बल्कि हमारे समाज की सुरक्षा और भविष्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करते हैं। रेलवे सुरक्षा बल इस बात के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है कि हमारे रेलवे नेटवर्क को नशे और अपराध के शिकंजे से मुक्त रखा जाए। लेकिन यह लड़ाई केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बल पर नहीं जीती जा सकती इसमें हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। सतर्क रहें, संदिग्ध गतिविधियों की सूचना दें, और हमारे साथ मिलकर भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और नशा-मुक्त वातावरण बनाने में योगदान दें। आइए, हम सब मिलकर नशे के खिलाफ एकजुट हों, और अपने युवाओं, परिवारों और राष्ट्र की रक्षा करें। साथ मिलकर हम इस खतरे को रोक सकते हैं, और एक स्वस्थ, सुरक्षित और सशक्त भारत का निर्माण कर सकते हैं।

"एक निर्णय आपके सारे सपनों को बर्बाद कर सकता है नशे को ना कहें।"