अगर लंका के चाची के कचौड़ी आ पहलवान के लस्सी के तरह चकिया के शमशेर ब्रिज के आसपास से भी हट जात अतिक्रमण त इहां भी जाम से मिल जात मुक्ति

संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय

चकिया। शासन द्वारा प्रदेश में लगातार अतिक्रमण को लेकर गांव से लेकर शहर तक अभियान चलाया जा रहा है। सरकारी जगह पर कब्जा करने वाले अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर जमीन और रास्तों को अतिक्रमण मुक्त करने की कवायद जारी है। शहर हो या गांव हो हर जगह वर्तमान में भी तमाम ऐसी जमीन है जो कि अतिक्रमण कार्यों के कब्जे में है। लेकिन वही कुछ ऐसी जगह है जहां अगर शासन और प्रशासन का बुलडोजर चल जाता है तो उसके तमाम फोटो वीडियो और तस्वीर सोशल मीडिया के माध्यम से देश और प्रदेश तक वायरल हो जाती हैं। इसके बाद विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरने की भी कोशिश करता है।

जी हां आज हम आपको एक ऐसी खबर के बारे में बताएंगे जो की प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से रक्षा मंत्री के गृह नगर चकिया तक की याद दिलाएगा। यह सब को पता है कि अभी 2 दिन पूर्व वही वाराणसी के लंका क्षेत्र में प्रशासन का बुलडोजर गरजा है, जहां रविदास गेट के ठीक सामने चाचा की कचौड़ी के नाम से मशहूर दादी की दुकान और पहलवान लस्सी के नाम से मशहूर मनोज पहलवान की दुकान को भी जमीदोज कर दिया गया, जिसकी चर्चा अब पूरे प्रदेश में हो रही है।
चकिया नगर में भी बनारस के उन दोनों दुकानों की चर्चा कम नहीं है, इसी क्रम में गुरुवार की सुबह-सुबह नगर के एक प्रसिद्ध तिराहे के चाय की अड्डी पर पहुंचे ही थे कि लोग बनारस के चाचा की कचौड़ी और पहलवान के लस्सी के दुकान का तार चकिया नगर से जोड़ते हुए गवई भाषा में तमाम चर्चाएं कर रहे थे, उसी में से एक लोगों ने दवाई भाषा में ही चर्चा करते हुए बोल पड़े कि अगर लंका के चाचा के कचौड़ी आ पहलवान के लस्सी के तरफ चकिया के शमशेर ब्रिज पर भी कुछ दुकान टूट जयीतीन त अतिक्रमण भी हट जात आ ईहां के लोगन के भी जाम से मुक्ति मिल जात, इसके बाद एक लोग ने उनकी बातों का कट करते हुए बोल पड़े कि अरे उधर त पक्का निर्माण शुरू हो गयल ह लेकिन तब्बो कोई ध्यान देवै वाला ना ह,तब तक एक लोग और बोल पड़े कि एतना सकरा ह रोज जाम लगैला नेता से लेके, एम्बुलेंस से लेके, प्रशासन क भी गाड़ी जाम में फंस जाले, लेकिन तब पर भी कोई एह तरफ ध्यानै नाही देत हव,इसी भाषा में लोग आपस में बातचीत करते हुए सत्ता पक्ष के नेताओं और राजनेताओं को भी कोसते रहे।

लोगों ने उसी भाषा में यह भी कहा कि चकिया में एतना नेता हउवन लेकिन कोई ए तरफ ध्यानै ना न देही,काहे से कि नेतन के त वोट लेवय के ह,एसे उ एहर ध्यानै नाही दिहैं।काहे से कि अगर नेतन के वजह से पुल पर से अतिक्रमण हटै लगी त नेतन क वोट बैंक खराब हो जाई।एसे कवनों नेता हाथै ना लगयीहैं।इस बात पर कई लोगों ने सहमति जताई। लोगों ने कहा कि चाहे सत्ता पक्ष क नेता हों या विपक्ष क नेता हों कोई भी अईसन ना ह जे अतिक्रमण मुक्त कराके पुले पर क जगह चौड़ा करा सकै।

*प्रतिदिन लगता है शमशेर ब्रिज पर जाम*
चकिया नगर में सबसे मुख्य मार्ग शमशेर ब्रिज जिस तरफ से प्रतिदिन सैकड़ों लोग गुजरते हैं।और बजार में भीड़भाड़ की वजह से ही वाहनों का तांता लग जाता है।और प्रतिदिन घंटों घंटों तक जाम लग जाता है। फिलहाल तो एक महीने से ज्यादा दिन से स्कूल बंद चल रहे थे तो स्कूली बच्चों को तो थोड़ा राहत है। लेकिन आम जनता और राहगीर उसी में जूझते रहते हैं। हालांकि फिर से स्कूल खुलने के बाद स्कूली बच्चों को वही जहमत झेलनी पड़ती है। लेकिन जाम लगने के बावजूद भी प्रशासन ध्यान नहीं देता है।और कभी कभार होमगार्डों की ड्यूटी लगाकर खानापूर्ति करता है।जिससे लोगों को तमाम कठिनाइयों को झेलना पड़ता है।

*कुछ साल पहले जाम के कारण हो गयी थी मासूम की मौत, बच्चों को गोद में लेकर दौड़ी थी मां*
आपको बता दें कि चकिया नगर के शमशेर ब्रिज पर लगने वाले भीषण जाम के कारण लोगों को कभी कभार अपनी जान तक गवानी पड़ जाती है। कुछ वर्षों पूर्व नगर के शमशेर ब्रिज से लेकर गांधी पार्क तक भीषण जाम लगा हुआ था चकिया क्षेत्र के एक गांव की महिला एंबुलेंस के सहारे अपने बीमार बच्चों को लेकर अस्पताल जा रही थी तभी वह जाम में फंस गई लेकिन मां की ममता को भीषण जाम ही नहीं रोक सका और वह एंबुलेंस से उतरकर अपने बीमार बच्चों को लेकर गोद में ही जम के बीच से ही दौड़ती हुई निकल पड़ी लेकिन ईश्वर के आगे मां की ममता हार चुकी थी जब वह अस्पताल पहुंची तो डॉक्टरों ने उसके बच्चे को मृत घोषित कर दिया था। इसके बाद वह दहाड़े मार मार कर रो रही थी। लेकिन उसे मौत के बाद भी स्थानीय प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कोई सुधि नहीं ली थी जिससे कि शमशेर ब्रिज पर लगने वाले भीषण जाम से लोगों को निजात मिल सके।

*तत्कालीन सपा सरकार में अतिक्रमण मुक्त हुआ था शमशेर ब्रिज*
आपको बताते चलें कि वर्तमान में जो स्थिति शमशेर ब्रिज पर जाम की रहती है उससे कहीं बद से बदतर स्थिति कुछ वर्षों पूर्व हुआ करती थी। जब शमशेर ब्रिज पर दोनों पटरिया पर सोनकर समाज के लोगों द्वारा सब्जियों की दुकान लगाकर अतिक्रमण किया जाता था। लेकिन उसे समय भी कोई नेता और प्रशासन ध्यान नहीं दिया था। लेकिन तत्कालीन सपा सरकार में कुछ लोगों ने गुपचुप तरीके से चकिया की तत्कालीन विधायिका पूनम सोनकर से इसकी शिकायत की थी। इसके बाद पूनम सोनकर ने इसको संज्ञान में लेते हुए स्थानीय प्रशासन का निर्देशित किया था। विधायक का आदेश मिलने के बाद एक्शन मूड में आई कोतवाली पुलिस ने उस समय दलबल के साथ पहुंचकर दोनों पटरिया को अतिक्रमण मुक्त कराया था और चेतावनी दी थी। इसके बाद सोनकर समाज के लोगों ने शमशेर ब्रिज की पटरिया को तो छोड़ दिया लेकिन आज भी शमशेर ब्रिज से लेकर गांधी पार्क तक दोनों तरफ पटरिया पर उनका कब्जा जारी रहता है। और ठेले खांचे लगाकर वह अपनी सब्जियों को बेच पाते हैं।

*जाम से लोगों को मिल जाए मुक्ति तो दूर हो जाए सबसे बड़ी समस्या*
आपको बताते चले कि अगर चकिया के शमशेर ब्रिज से लेकर आसपास चंद्रावती नाले के किनारे बसकर अतिक्रमण करने वाले लोगों से अगर वह जगह अतिक्रमण मुक्त कराकर सड़क चौड़ीकरण करा दिया जाए तो उसे मार्ग से गुजरने वाले सैकड़ो राहगीरों एम्बुलेंस वाहन चालकों सभी को नगर में लगने वाले भीषण और बड़े जाम से मुक्ति मिल जाएगी। और नगर की बड़ी समस्या हल हो जाएगी।