*“अब सांसद से ही मुकदमा लिखवा लो”– थाने की गुंडागर्दी या सिस्टम की गिरावट..?*

*?अब सांसद से ही मुकदमा लिखवा लो? ? थाने की गुंडागर्दी या सिस्टम की गिरावट?*

*जाओ, अब फर्रुखाबाद सांसद ही ढूंढेंगे तुम्हारी भैंस।*

*एटा/अलीगंज (राजा का रामपुर):*

*यह मामला* न केवल पुलिस प्रशासन की *संवेदनहीनता* को *उजागर करता* है, बल्कि यह भी *सवाल खड़ा* करता है कि आम आदमी की आवाज कितनी कमजोर हो चुकी है। *अलीगंज सर्किल* के *राजा का रामपुर थाने में* जब *एक पीड़ित भैंस चोरी* की *शिकायत* लेकर गया और *पुलिस* ने *उसकी* बात *सुनने* के *बजाय भगा दिया,* तो यह कर्तव्यहीनता नहीं, *सीधे-सीधे लोकतंत्र की अवमानना है।*

और जब *सांसद* द्वारा *हस्तक्षेप* के *बाद भी कोतवाल* या *दरोगा यह कहे कि* ?अब *सांसद* से ही *मुकदमा* लिखवा लो?, *अब* फर्रुखाबाद *सांसद* मुकेश राजपूत ही *ढूंढेंगे तुम्हारी भैंस*
तो *यह पुलिस व्यवस्था* की *अकड़, अहंकार* और जवाबदेही से पूरी तरह विमुख होने का *जीवंत उदाहरण बन जाता है।*

यह *घटना बताती* है कि थानों में *आमजन* के लिए *न्याय* की *उम्मीद* अब *सिर्फ रसूखदारों* की *सिफारिशों* पर *टिकी* रह गई है। *क्या अब* किसी *थाने में FIR दर्ज* करवाने के लिए *सांसद* या *मंत्री* की *सिफारिश अनिवार्य हो गई है?*
यदि एक *जनप्रतिनिधि* के *हस्तक्षेप* के *बाद* भी *न्याय* न मिले, तो पीड़ित आखिर कहां जाए?

इस मामले की *निष्पक्ष जांच होनी चाहिए* और *ऐसे कोतवाल* पर *न सिर्फ अनुशासनात्मक कार्रवाई* होनी चाहिए, *बल्कि यह भी सुनिश्चित* किया जाना चाहिए कि *थानों* में *आम आदमी* की शिकायत को प्राथमिकता के साथ *गंभीरता से लिया जाए।*
जिस *पुलिस* को *जनता की सुरक्षा* और *न्याय* का *प्रहरी समझा* जाता है, *वही* अगर *मज़ाक उड़ाने* लगे, तो फिर *आम नागरिक जाए तो जाए कहाँ?*

जहाँ *शिकायतकर्ता* को *न्याय* नहीं, *उपहास मिलता* है। *ऐसे मामलों* में सिर्फ *विभागीय चेतावनी नहीं,* कड़ी *अनुशासनात्मक कार्रवाई* की *ज़रूरत* है। *नहीं* तो *जनता* का *कानून* और *व्यवस्था* से *विश्वास पूरी तरह टूट जाएगा।*

*रिपोर्ट: रमेश जादौन एटा।*