रेलवे के घोटाले में घुस गयी है CBI, करोड़ों की हेराफेरी का है मामला, PDDU रेल मंडल में दूसरे के नाम पर मिली फर्जी फर्म

चंदौली । पंडित दीन दयाल उपाध्याय रेलवे जंक्शन और डीआरएम ऑफिस में सीबीआई का दखल जारी है। सीबीआई को एक के बाद एक नए मामले मिलते जा रहे हैं। इससे डीआरएम और जीएम ऑफिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं। साथ ही साथ कई संबंधित अधिकारियों के द्वारा मामले में ईमानदारी से काम न करने की बात सामने आ रही है।

मुगलसराय के रेलवे ऑफिस में सीबीआई जांच और प्रमोशन के नाम पर हुए लेनदेन का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अब एक और बड़ा घोटाला सामने आया है। इस बार मामला फर्जी फर्म बनाकर करोड़ों रुपये के वित्तीय लेनदेन का है, जिसमें गरीब सफाईकर्मियों के नाम का दुरुपयोग किया गया।

गया रेलवे स्टेशन पर आउटसोर्सिंग के तहत काम कर रहे सफाईकर्मियों को हाल ही में तब झटका लगा जब उन्हें करोड़ों रुपये के टैक्स चोरी का नोटिस थमा दिया गया। सफाईकर्मी छोटू राम और उमेश दास के नाम पर बनाए गए फर्जी फर्मों के जरिए कथित रूप से करोड़ों का लेनदेन किया गया और अब टैक्स बकाया की नोटिस उनके नाम पर आई है। छोटू राम पर 13 करोड़ और उमेश दास पर भी लगभग उतना ही टैक्स बकाया दिखाया गया है।

छोटू राम, निवासी तेलबिधा मुरलीहिल, थाना कोतवाली, जिला गया के खिलाफ धनबाद थाने में गंभीर धाराओं?धारा 409, 420, 465, 471, 120(बी) और 132(1)?के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। छोटू राम को पूछताछ के लिए 7 जून को बुलाया गया है।

हालांकि सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे मामले पर रेलवे के किसी अधिकारी की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। प्रशासन की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है।

जब अन्य सफाईकर्मियों को इस घोटाले की जानकारी हुई, तो बृहस्पतिवार को गया स्टेशन पर भारी संख्या में कर्मचारी एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन करने लगे। उनका कहना है कि उनके नाम और पहचान का गलत इस्तेमाल कर उन्हें कानूनी संकट में डाला गया है।

प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, वर्ष 2023-24 में सफाईकर्मियों के नाम पर कंपनियां रजिस्टर की गईं, जिनके जरिए करोड़ों के लेनदेन को अंजाम दिया गया। यह पूरा मामला एक सुनियोजित साजिश प्रतीत हो रहा है, जिसमें सफाईकर्मियों की पहचान का दुरुपयोग कर बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी की गई।

अब सफाईकर्मियों और मजदूर यूनियनों ने इस पूरे घोटाले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है ताकि सच्चाई सामने आ सके और निर्दोष कर्मचारियों को न्याय मिल सके।

यह मामला यह साफ दर्शाता है कि कैसे सिस्टम में बैठे कुछ लोग गरीबों की पहचान का इस्तेमाल कर अपने फायदे के लिए करोड़ों की हेराफेरी करने से नहीं चूकते। अब देखना यह है कि रेलवे प्रशासन कब तक चुप्पी साधे रहता है और कब इस गंभीर प्रकरण की निष्पक्ष जांच की दिशा में कदम उठाया जाता है।