मुंगेली महिला बाल विकास विभाग से त्रस्त हितग्राही ने ली सूचना आयोग की शरण.. कठोर कार्यवाही की मांग को लेकर कलेक्टर से भी लगाई गुहार..

मुंगेली--मुंगेली जिले का महिला विकास विभाग इन दिनो से सुर्खियों में बना हुआ है जिसके पीछे की वजह जिले में हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका भर्ती में गड़बड़ी का मामला है। यही वजह है कि इस मामले में जिले के प्रभारी मंत्री लखनलाल देवांगन ने हाल ही में हुई समीक्षा बैठक में महिला एवं बाल विकास के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कलेक्टर के मार्गदर्शन में गड़बड़ियों को दुरूस्त करने के निर्देश दिए थे, उस मामले में अभी फैसला आना बांकी है, वहीं इस मामले की सुनवाई कलेक्टर के न्यायालय में चल रही है क्योंकि न्यायालय के माध्यम से ही कलेक्टर ने मामले का निराकरण करने की बात कही है और शिकायतकर्ताओं से, शिकायत से जुडे प्रमाणित दस्तावेज भी मांगे हैं लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों को शायद इस बात का डर है कि कहीं उनके द्वारा किया गया कारनामा बाहर न आ जाए, शायद इसी वजह से जानकारी देने में आनाकानी तो नहीं कर रहे हैं हद तो तब है जब अपील करने के बाद भी आवेदनकर्ताओं को जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। इसी से क्षुब्ध होकर आवेदनकर्ता अब सूचना आयोग की शरण ले रहे हैं। महिला बाल विकास विभाग से जवाब नहीं मिलने के कारण एक आवेदनकर्ता ने सूचना आयोग में शिकायत कर कठोर कार्यवाही की मांग की है।मामले का पूरा विवरण इस प्रकार है कि शिकायतकर्ता ने दिनांक 11.03.2024 को जनसूचना अधिकारी परियोजना अधिकारी एकीकृत बाल विकास परियोजना मुंगेली 02 जिला मुंगेली के पास आंगनबाड़ी भर्ती में चयन हुए अभ्यर्थी संगीता भास्कर पिता दारा सिंह द्वारा भर्ती हेतु आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेज अंकसूची, रोजगार पंजीयन, एवं जाति निवास सहित भर्ती की वरीयता सूची एवं नियुक्ति प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति सूचना का अधिकार के तहत मांगी थी। जिस पर उसे निर्धारित समयावधि पूरी हो जाने के बाद अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत जानकारी दिया जाना संभव नहीं है, कहते हुए पत्र जारी कर दिया गया। इस पर आवेदक का कहना था कि उसने जो सूचना मांगी है वह आंगनबाडी भर्ती में जो धांधली की गई है उसका खुलासा हो जाना उल्लेख किया है, उसने यह भी कहा है कि यही कारण है कि उसे सूचना नहीं दी जा रही है। शिकायत में उसने यह भी उल्लेख किया है कि उसके द्वारा मांगी गई सूचना में ऐसे दस्तावेज भी शामिल हैं जिनको सार्वजनिक करने पर भी, किसी की व्यक्तिगत गोपनीयता भंग नहीं होगी और न ही देश की एकता व अखंडता पर कोई दाग लगेगा। इसके बाद भी उसे सूचना नहीं दिया जाना विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है।*पूर्व में ऐसे ही मामलों पर दी गई है जानकारी*महिला बाल विकास विभाग द्वारा वर्तमान में जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका की भर्ती की गई उसमें अनियमितता होने संबंधी शिकायतों की एक लंबी फेहरिस्त है, इसके चलते क्षुब्ध अभ्यर्थियों द्वारा सूचना का अधिकार के तहत चयनित अभ्यर्थियों से संबंधित निजी जानकारी मांगी थी, जिस पर विभाग द्वारा उन्हे निर्विरोध जानकारी सौंप दी गई थी किन्तु कुछ मामले ऐसे हैं जिसमें विभाग द्वारा निजी जानकारी होने का हवाला देकर जानकारी नहीं देने के लिए अधिनियम के प्रावधानो का दुरूपयोग किया जा रहा है। एक जैसे ही दो आवेदन और दोनो आवेदनों में कार्यवाही भिन्न स्वरूपों में किया जाना, विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़ा कर रहा है।*सूचना का अधिकार कानून का बन रहा मजाक*मुंगेली में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सूचना का अधिकार कानून का केवल मजाक भर बनाया नहीं जा रहा, मजाक बनाने के साथ साथ इसकी खुलेआम धज्जियॉ उड़ाई जा रही है। प्रशासन को चाहिए कि यदि सरकारी तंत्र पर किसी मामले में अनियमितता का आरोप लग रहा है, तो उन आरोपों को सच्चा या फिर झूठा साबित करने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ दस्तावेजां का प्रति परीक्षण कराने के लिए तैयार रहें, इसीलिए वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया गया है, लेकिन जिन उद्देश्यों को लेकर इस कानून की स्थापना की गई है उसका दुरूपयोग कैसे किया जाता है, सरकारी तंत्र को इसकी बखूबी जानकारी है।*अपीलीय अधिकारी का भी है यही हाल*महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी जिन्हे जन सूचना अधिकारी भी कह सकते हैं सभी परियोजना में चाहे वह मुंगेली, लोरमी या पथरिया परियोजना से संबंधित हो, सभी का यही हाल है, सूचना का अधिकार के तहत जैसे जनसूचना अधिकारी जवाब नहीं दे रहे हैं ठीक वैसे ही कारनामे जिला कार्यालय में बैठे अपीलीय अधिकारी कर रहे हैं। इनके पास जो आवेदन अपील के माध्यम से पहुंच रहे हैं उस पर निर्धारित समावधि के बाद भी निराकरण करने की कार्यवाही नहीं की जा रही है। वहीं जानकारी पाने की जुगत में हितग्राही विभाग के चक्कर काट रहे हैं।*कैसे किया जा रहा कानून का दुरूपयोग....आईये समझते हैं..*सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 में स्पष्ट उल्लेखित है कि कुछ ऐसे विषय जिन पर मांगी गई सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे विषय देश हित में और किसी व्यक्ति के हित में होते हैं जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता। यदि इन विषयो से संबंधित सूचनाओं को दे दिया जाए तो समस्या खड़ी हो सकती है और देश की एकता अखंडता तथा किसी व्यक्ति के अधिकारों को क्षति हो सकती है।??जबकि इस मामले में जो जानकारी मांगी जा रही है उससे न तो देश की एकता, अखंडता की क्षति हो रही है और न ही किसी व्यक्ति के अधिकारों की। इस मामले में जानकारी उपलब्ध नहीं कराना विभाग को संदेह के दायरे में ला रहा है। वहीं शिकायतकर्ता ने इस मामले में कठोर कार्यवाही करने हेतु सूचना आयोग की शरण ली है।