कलेक्टरों के भाईचारे की भेंट चढ़ी खनिज मद की जाँच

रसूख के फेरहिस्त में घोटाले के मगरमच्छ पर नहीं पहुंची आंच..!

उमरिया। स्वास्थ्य विभाग जिला उमरिया में वर्ष 2016-17 व 2017-18 में खनिज मद में हुए करोड़ो रूपये के घोटाले की जाँच कलेक्टरों के भाईचारे की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में कलेक्टर जिला उमरिया के पत्र क्रं. 10524/जि.पं०/2016 उमरिया दिनांक 19/12/2016 के द्वारा प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के तहत 60 प्रतिशत उच्च प्राथमिकता की कार्य योजना से स्वास्थ्य सुविधाओं में देखभाल हेतु दो करोड़ चौसठ लाख उन्सठ हजार रुपये की राशि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला उमरिया को प्रदाय की थी। इसी वित्तीय वर्ष 2017-18 में कलेक्टर जिला उमरिया के पत्र क्रं/1638/पी.एम.के.के.वाय./डी.एम.एफ./फा.क.-71/जि?पं०/2017 उमरिया दिनांक 21/06/ 2017 के द्वारा तत्कालीन कलेक्टर अभिषेक सिंह ने एक करोड़ अठहत्तर लाख रुपये की राशि नेत्र उपकरण, पैथालाजी उपकरण, रेडियोलाजी के उपकरण व अस्थिरोग सर्जरी उपकरण क्रय करने हेतु उपलब्ध कराई थी। जनस्वास्थ्य में व्यय की जाने वाली 4 करोड़ 4.2 लाख 59 हजार की यह राशि भ्रष्टाचारियों के संगठित गिरोह की भेंट चढ़ गई।

खनिज मद की राशि से हुआ होली का खेला! -

तत्कालीन सीएमएचओ डा. आर के सिंह तथा पी.एम.के.के.वाय. योजना के प्रभारी लिपिक कौशल प्रसाद साकेत नें खनिज मद की राशि से जमकर होली खेली है। सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाहे जाने पर कौशल साकेत द्वारा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय को संबधित जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। जो कि योजना में हुए व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है। राज्य सूचना आयोग के समक्ष जानकारी सहित उपस्थित होने हेतु दस्तावेजों की आवश्यकता होने एवं शासकीय कार्य को सुचारू रूप से जारी रखने को दृष्टिगत रखते हुए तत्कालीन सीएमएचओ राजेश श्रीवास्तव ने छः सदस्यीय दल का गठन कर कौशल साकेत के सीएमएचओ कार्यालय में स्थित कक्ष एवं जिला चिकित्सा तय उमरिया में आर.एन.टी.सी.पी. कार्यालय की अलमारियों का ताला तुड़वाया गया, लेकिन अलमारियों में खनिज क्षेत्र कल्याण योजना से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मिले।

एफआईआर कराने के दिए थे निर्देश -

राज्य सूचना आयोग को दस्तावेज उपलब्ध न कराए जाने पर सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला उमरिया को दस्तावेजों सहित गायब कर्मचारी कौशल प्रसाद साकेत के विरुद्ध एफ.आई.आर. कराने के निर्देश दिए थे। सूचना आयुक्त के आदेश के परिपालन में सीएमएचओ उमरिया द्वारा थाना प्रभारी कोतवाली उमरिया को पत्र लिखे जाने के बावजूद आज दिनांक तक कौशल प्रसाद साकेत के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज न होना इस बात का प्रमाण है, कि घोटाले में कोई रसूखदार व्यक्ति भी शामिल है जिसका कौशल साकेत के सिर पर हाथ है। और घोटाले का असली मगरमच्छ वही है।

एक मुश्त जारी राशि, नहीं हुआ भौतिक सत्यापन!-

सामान्यत: राशि आवंटित करने वाला विभाग कार्य की प्रगति के आधार पर किश्तों में राशि आवंटित करता है, किन्तु इस प्रकरण में तत्कालीन कलेक्टर अभिषेक सिंह ने प्रचलित प्रथा का पालन न करते हुए स्वास्थ्य विभाग जिला उमरिया को एक मुश्त राशि प्रदान की। तत्कालीन कलेक्टर अभिषेक सिंह ने क्रय की गई सामग्री का भौतिक सत्यापन कराने की भी जहमत नहीं उठाई। जबकि राशि आवंटित करने वाले अधिकारी का दायित्व होता है, कि वह अपने द्वारा आवंटित राशि का सदुपयोग सुनिश्चित करे।

भौतिक सत्यापन के लिए गठित हुई टीम -

अभिषेक सिंह के परवर्ती कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों को संज्ञान लेते हुए पत्र क्र./2601/पीएमकेकेवाय/जि.पं./नस्ती कृ. - 71/2020 उमरिया दिनांक 17/08/2020 के द्वारा पी.एम.के.के.वाय. योजना के तहत कृय की गई सामग्री का भौतिक सत्यापन करने हेतु चार सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसके सदस्य सुश्री नेहा सोनी तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) पाली अनुभाग पाली जिला उमरिया, अखिलेश कुमार पाण्डेय लेखाधिकारी जिला पंचायत उमरिया, सतेंद्र कुमार मिश्रा सहायक कोषालय अधिकारी जिला कोषालय उमरिया तथा राजीव लोचन पटेल सहायक सांख्यिकी अधिकारी जिला सांख्यिकी उमरिया थे।

भौतिक सत्यापन समिति की रिपोर्ट बनी घोटाले का साक्ष्य -

भौतिक सत्यापन समिति ने संजीव श्रीवास्तव तत्कालीन कलेक्टर जिला उमरिया के समक्ष प्रतिवेदन में लेख किया है, कि भौतिक सत्यापन के समय आटा रैफच 17.50 लाख रूपये मूल्य की, कागुलेशन एनालाइजर 12.24 लाख रु० मूल्य का, पैथालाजी केमिकल्स 74.11 लाख रू0 मूल्य के प्राप्त नहीं हुए। प्रशासकीय स्वीकृति में ओ.टी. टेबल 14 नग स्वीकृत थी। परंतु भौतिक सत्यापन के समय जिला चिकित्सालय में 2 ओ.टी. टेबिल ही पाई गई तथा स्टाक रजिस्टर में 6 ओ.टी. टेबिल जिले के अन्य स्वास्थ्य केंद्रों को आवंटित किए जाने का लेख किया गया। स्पष्ट है शेष 6 ओ.टी. टेबिल की राशि फर्जी बिल लगाकर निकाल ली गई। इसी प्रकार इकोकार्डियोग्राफी मशीन लागत 15 लाख रु०, पोर्टेबल एक्सरे मशीन 2.50 लाख रु०, वेंटीलेटर्स कुल लागत 35 लाख रु०, आई.सी.यू. टेबल लागत 0.25 लाख रु०, फ्लैक्स आटोक्लेव 0.67 लाख रु०, सेंट्रल आक्सीजन सप्लाई सिस्टम लागत 9.33 लाख रू, सेंट्रल सेक्शन सप्लाई सिस्टम लागत 10 लाख रु०, ए.बी.जी. मशीन लागत 8 लाख रू०, आटो इन्फ्यूजन पम्प लागत 3 लाख रु०, डिजिटल एक्सरे मशीन लागत 12 लाख रु०, एक्सरे मशीन विद बुकी टेबल लागत 6.40 लाख रु० अनुपलब्ध पाई गईं। कलेक्टर जिला उमरिया द्वारा जारी प्रशासकीय स्वीकृतियों के तहत क्रमश: 103.85 लाख रू0 तथा 102.15 लाख रु० कुल 206 लाख रुपये मूल्य की सामग्रियां भौतिक सत्यापन के दौरान अनुपलब्ध पाई गईं, किन्तु भौतिक सत्यापन समिति ने मात्र 100 लाख रू0 की राशि की वसूली की ही अनुशंसा की है।

अनाधिकृत फर्म को मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति का जिम्मा -

प्रशासकीय स्वीकृति में संपूर्ण राशि केवल उपकरण क्रय हेतु उपलब्ध कराई गई थी। प्रशासकीय स्वीकृति की शर्तों को दरकिनार करते हुए तत्कालीन सीएमएचओ डा. आर. के. सिंह तथा लिपिक कौशल साकेत नें विक्रम प्रिंटर्स उमरिया को 3 लाख 50 हजार 753 रुपये तथा इतनी ही राशि का भुगतान एक अन्य प्रिंटिंग प्रेस को किया गया। एम.पी.स्टेट कोआपरेटिव कन्ज्यूमर फेडरेशन लिमिटेड को 43 लाख 22 हजार 892 रू की राशि का भुगतान किया गया, जबकि यह संस्था मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति हेतु अधिकृत एजेंसी नहीं है।

सांठ-गांठ से लीपापोती का भरसक हुआ प्रयास -

कौशल साकेत के द्वारा भौतिक सत्यापन समिति के समक्ष निविदा संबंधी कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि बिना निविदा के मनमाने तरीके से क्रय प्रक्रिया संपन्न की गई। भौतिक सत्यापन समिति ने तत्कालीन कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव से प्रकरण की जाँच ई.ओ.डब्ल्यू. या लोकायुक्त से कराए जाने की अनुशंसा की थी। तत्कालीन कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने सचिव खनिज साधन विभाग भोपाल को ई.ओ.डब्ल्यू या लोकायुक्त की तुलना में आर्थिक अपराधों की जाँच करने में अधिक सक्षम मानते हुए अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रकरण उन्हें अंतरित करते हुए मामले पर लीपापोती का प्रयास किया है।

EOW या लोकायुक्त ने की जांच तो कलेक्टरों के गांठजोड़ का होगा खुलासा -

विदित हो कि पी.एम.के.के.वाय. योजना के तहत 10 लाख रूपये से अधिक राशि के प्रत्येक भुगतान के लिए कलेक्टर का अनुमोदन आवश्यक होता है। अपने समकक्ष पूर्ववर्ती कलेक्टर अभिषेक सिंह को संभावित जाँच से बचाने के लिए भाईचारा निभाते हुए तत्कालीन कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने मामले की जाँच ईओडब्ल्यू को नहीं सौंपी। यदि वर्ष 2016-17 व 2017-18 में पी.एम.के.के.वाय. योजना में हुए घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू या लोकायुक्त से कराई जाए तो अभिषेक सिंह, डा. आर. के. सिंह और कौशल साकेत के गठजोड़ के और भी कारनाये उजागर हो सकते हैं।