कर्ज में डूबे 30 परसेंट से अधिक अस्पताल हुए बंद

(कुछ अस्पताल रजिस्ट्रेशन के रिनुअल कराने तक बंदी की कगार पर होंगे)

कानपुर (मुकेश कुमार).आपको बता दें कि कोरोना काल में जहां अस्पताल में लोग मरीज को नहीं ले रहे थे। उनसे दूर भाग रहे थे आज उसका ठीक विपरीत हो रहा है। आज अस्पतालों में मरीज है नहीं और अस्पताल संचालक मरीज ढूंढ रहे हैं। और प्राइवेट अस्पताल नई नई स्कीम के तहत मरीजों को लुभावने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।अस्पताल के पीआरओ को अपनी नौकरी बचाना अब कठिन हो गया है। मरीज न होने की वजह से अस्पताल के खर्चे तक निकलना मुश्किल हो गया। स्टाफ एवं अन्य खर्चों को पूरे करने के लिए अस्पताल संचालक कर्ज में डूब चुके हैं। जिस तरह से कल्याणपुर, नौबस्ता, पनकी, सचेंडी, रामादेवी के 30% से अधिक अस्पताल घाटे में चले गए और अस्पताल संचालक को मजबूरन अस्पताल बंद करना पड़ा। और ताले लग गए। आपको बता दें कि आज भी कानपुर शहर में 75% अस्पताल बिना मानक के जिनके पास न तो फायर की एनओसी है न ही स्वास्थ्य विभाग का किसी प्रकार का रजिस्ट्रेशन है । अस्पताल धड़ल्ले से चला रहे हैं। प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी मार्च-अप्रैल में अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन होंगे ।जिनमें मानक पूरे न होने की वजह से अस्पताल का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाएगा ।जिससे 85% अस्पताल बंदी की कगार पर होंगे।आपको बता दें कि जिस प्रकार मरीजों की जागरूकता और विश्वास सरकारी अस्पतालों में बढी है। मरीजों की यह जागरूकता प्राइवेट अस्पतालों को बंदी की कगार पर पहुंचा दी है। मरीजों का रुझान सरकारी अस्पतालों में अधिक बड़ा और डॉ भी सरकारी अस्पतालों में समय से बैठने लगे हैं। और मरीज को अच्छा इलाज दे रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में फीस अधिक होने के कारण मरीज अब सरकारी अस्पताल में जाने लगे हैं। और सरकारी अस्पतालों में उन्हें उचित इलाज भी मिल रहा है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य विभाग देख रहे बृजेश पाठक बहुत सख्त है। जिनकी सख्ती के चलते स्वास्थ्य विभाग के सरकारी क्षेत्र में काम तेजी से हो रहा डॉक्टर मरीजों को देख रहे हैं ।अच्छी दवा दे रहे हैं। सरकारी अस्पतालो में स्वास्थ्य विभाग द्वारा अब अच्छी व्यवस्था देखने को मिल रही है।प्राइवेट अस्पतालों के बेड अब एकदम सुनसान हो गए हैं 50% से अधिक अस्पताल संचालक कर्ज में डूबे हुए हैं ।उन्हें अस्पताल चलाने में आगे कुछ भविष्य नही दिख रहा है। जिसके चलते अस्पताल बंदी की कगार पर है।अब आगे क्या होता है निजी अस्पतालों का भविष्य कहा दिख रहा वह भी अमर स्तंभ अखबार की ख़बर के माध्यम से जल्द आपके सामने प्रकाशित करेंगे। खबर लिखने के दौरान एक बात आपको जरूर बता दे रहें की एक महाशय जानवरों के डॉक्टर थे और नौबस्ता के तौद्धकपुर क्षेत्र में अस्पताल खोले थे। एक साल इंसान के डॉक्टर बनने के बाद अस्पताल बंद कर सेट अप का सारा सामान बेचकर दोबारा जानवरों के प्रति अपना रुझान बढ़ा लिए है। और जानवरो के फिर से डॉक्टर बन गए हैं।