वादों से कैसे होगा किसान व कृषि कल्याण

किसानों की जमीनी हकीकत को ध्यान में रख उनकी भलाई करने की जरूरत

दावों में सच्चाई होती एक तो किसान आत्महत्या के लिए नही होते विवश...?

सरकारें किसानों की दशा सुधारने का दम तो भरती हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। किसान हितैषी होने का दावा सभी दल करके सत्ता में आते हैं मगर सरकार बनते ही किसान कल्याण योजनाएं हाशिए पर चली जाती हैं। सभी दलों की योजनाओं में किसानों का नाम तो है मगर किसान केवल वोट बैंक बनकर रह गया है। किसानों को केवल वादों का झुनझुना हर चुनाव में पकड़ाया जाता है।दशकों से किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है।विगत तीन वर्षों में काफी किसानों द्वारा आत्महत्या करना दुखदायी खबर है। एक ओर सरकार दावा करती है कि किसानों को कम कीमत पर बीज खाद उपलब्ध करा रही है सिंचाई का प्रबंध कर रही और बैंकों से कम ब्याज पर कर्ज दिला रही है। समय से खाद बीज उपलब्ध कराने में सरकारें नाकाम रही या दलाल हर जगह हावी रहें। मगर अगर उन दावों में सच्चाई होती तो उन किसान आत्महत्या करने के लिए विवश नहीं होते।कभी बाढ़ कभी सूखा और कभी बेमौसम बरसात किसानों की मेहनत पर पानी फेर देती है।फसल बीमा योजना भी उनके नुकसान का सही भरपाई नहीं कर रहा है।सब कुछ सही रहा और पैदावार अच्छी हुई तब भी उन्हें अपनी उपज की सही कीमत नहीं मिल पाता है। जिस तरह से क्रय केंद्र में किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए मेहनत जुगाड करना पड़ता वो किसी से छुपा नहीं। अनेकों किसानों को खुले बाजार में अपनी उपज को औने पौने दाम में बेचना पड़ता है। जंगली जानवर और निराश्रित गोवंशो का समूह जिस तरह से खेतों में धमाचौकड़ी मचाता है अनेकों किसानों ने खेती त्यागकर अन्य कामों में आजीविका तलाशना शुरू किया है। कहने को तो हर ब्लॉक में गौशाला है मगर उनकी दुर्दशा और व्यवस्थाएं किसी से छुपी नहीं हैं। एक तरफ अनेकों किसानों ने खेतों में ही अपना आशियाना बना रखा है सर्द रातों में रात रात भर जागकर परिवार से दूर रहकर अपनी फसलों की निगरानी करते हैं फिर भी फसल सुरक्षा की गारंटी नहीं है कि किधर से फसलों को या उनको कोई जानवरों का झुंड आकर नुकसान पहुंचा दे। आज जिस अनुपात में महंगाई बढ़ रही है उस अनुपात में गन्ने व अनाजों की कीमतें नहीं बढ़ रही है इसीलिए आज किसान कृषि कार्य छोड़ कर रोजी रोटी की तलाश में दूसरे शहरों में भटक रहे हैं।किसानों को जमीनी हकीकत को ध्यान में रख कर उनकी भलाई के लिए योजना बनानी चाहिए। जनप्रतिनिधि और सरकारों को किसानों को वोट बैंक न समझकर उनके हितों में योजनाएं बनाकर जमीन सच्चाई को भी गौर करना होगा।