गाँव के संकटमोचन झोलाछाप डॉक्टर कहलायेंगे "ग्रामीण चिकित्सक"

रायपुर छत्तीसगढ़: कोरोना संकट से पूरे भारत में हाहाकार मचा हुआ है. छत्तीसगढ़ भी इस संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है. राज्य डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है.
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के अनुसार देश मे कुल 11 लाख डॉक्टर पंजीकृत है. इनमें से सरकारी अस्पतालों में लगभग 1.2 लाख डॉक्टर है. शेष डॉक्टर निजी अस्पतालों में कार्यरत हैं अथवा अपनी निजी प्रैक्टिस करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में डॉक्टरों की भारी कमी है और फिलहाल देश में 11,082 की आबादी पर मात्र एक डॉक्टर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के अनुसार, यह अनुपात प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. इस लिहाज से देखें तो यह अनुपात तय मानकों के मुकाबले 11 गुना कम है.

बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी हालात कोई बहुत अच्छे नहीं हैं. इन राज्यों में प्रति बीस हजार जनसँख्या में एक डॉक्टर का अनुपात है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य स्थिति:

डॉक्टरों की कमी होने का नतीजा यह है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में ग्रामीण इलाकों की हालत बहुत खराब है. इन इलाकों में झोलाछाप डॉक्टरों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है. पिछले काफ़ी लंबे वक़्त से इन्हें 'झोला छाप डॉक्टर' कह कर बुलाया जाता रहा है, क्योंकि इनके पास शासन द्वारा मान्य मेडिकल डिग्री नहीं होती है. लेकिन ऐसे कई मेडिकल प्रैक्टिशनर्स पूरे राज्य के तमाम गाँवों में एलोपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं की मिली-जुली डोज़ से लोगों का 'इलाज' कर रहे हैं.


साल 2020 में बिहार सरकार ने इस तरह के लगभग 20 हज़ार झोला छाप डॉक्टरों को एनआईओएस (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) के साथ मिलकर ट्रेनिंग दिलवाई. इसके बाद इन्हें कम्युनिटी हेल्थ सर्टिफ़िकेट कोर्स पूरा करने का प्रमाणपत्र दिलवाया गया.

सरकार ने ग्रामीण चिकित्सक का दर्जा देकर इन 'झोला छाप' डॉक्टरों को अपग्रेड कर दिया. गाँवों में बग़ैर मेडिकल डिग्री के लोगों का इलाज करने वालों को मीडिया झोलाछाप डॉक्टर ही कहता रहा है.


मरीज और बड़े हॉस्पिटल के बीच की कड़ी

सामान्यतः ग्रामीण चिकित्सक जिन्हें झोलाछाप डॉक्टर कहते है वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों में गम्भीर मरीज और बड़े हॉस्पिटल के बीच की कड़ी होते है। ये झोलाछाप डॉक्टर ही है जो आपके एक फोन पर आपके घर जा कर आपका इलाज करता है, ये झोलाछाप (ग्रामीण चिकित्सक)ही है जो गम्भीर मर्ज के उपचार के लिए मरीज और बड़े हॉस्पिटल की कड़ी बनते है। ये आपातकालीन दुर्घटना/हृदयाघात जैसे गम्भीर मरीजों को प्राथमिक चिकित्सा मुहैया करवाकर समय रहते बड़े हॉस्पिटल में एडमिट करवाते है।


क्या कहना है ग्रामीण चिकित्सकों का :

बक़ौल ग्रामीण चिकित्सक- गांव में लोग बहुत इज्जत देते हैं. डॉक्टर साहब कहकर बुलाते हैं. लेकिन सरकार ने झोलाछाप नाम दे दिया. दुःख तो होता है, लेकिन क्या कर सकते हैं. उनके मुताबिक फिलहाल वो मरीजों को छोटे मर्ज अनुसार दवा देते हैं. गंभीर मरीज को पीएचसी/हॉस्पिटल में जाने की सलाह देते हैं. कहते हैं, हमलोग फीस नहीं लेते हैं, दवाई का पैसा ही केवल लेते हैं. उसमें भी गांव-घर में कई बार लोग पूरा पैसा दे भी नहीं पाते हैं. उनका कहना है कि हम जानते है कि हम एमबीबीएस डिग्रीधारी डॉक्टर नही है किंतु हमारी डिग्री अनुसार झोलाछाप डॉक्टर के बजाय ग्रामीण चिकित्सक कहें, तो ज्यादा अच्छा लगेगा.
वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में सेवारत अधिकांश ग्रामीण चिकित्सक आयुर्वेद कोर्स, नेचुरोपैथी कोर्स,CMS Diploma, alternative medicine,EHSM डिप्लोमाधारी व कई वरिष्ठ ग्रामीण चिकित्सक शासकीय/प्राइवेट हॉस्पिटल/नर्सिंगहोम से 5 से 10 वर्षो का प्रशिक्षण प्राप्त है ।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन प्रशासन के द्वारा चलाए गए स्वास्थ्य मितानिन योजना में मितानिनो को स्वास्थ एवं मलेरिया विषय के अन्तर्गत प्रशिक्षण उपरांत स्वास्थ्य सेवा कार्य में लगाया गया है जिसके तहत मितानिन शासन की दवाई मरीजों को दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ शासन को चाहिए कि ऐसा ही प्रशिक्षण उपरांत इन डॉक्टरों को भी ग्रामीण चिकित्सक का दर्जा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टीस करने का अधिकार दिया जाए।


कानून क्या कहता है:

इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956, दिल्ली मेडिकल काउंसिल एक्ट 1997, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 में कहा गया है कि केवल एक रजिस्टर्ड डॉक्टर ही एलोपैथिक दवा लिख सकता है।

भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 कहता है कि भारतीय चिकित्सा पद्धति के अभ्यासी के अलावा कोई भी व्यक्ति जो किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता रखता है और किसी राज्य रजिस्टर या भारतीय चिकित्सा के केंद्रीय रजिस्टर में नामांकित है, भारतीय में मेडिकल और किसी भी राज्य में मरीजों के लिए दवा लिखेगा।

इंडियन मेडिकल काउंसिल (प्रोफेशनल कंडक्ट, एटिक्विटी एंड एथिक्स) रेगुलेशन 2002 के मुताबिक किसी भी मरीज का इलाज वही कर सकते हैं जो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया या फिर स्टेट मेडिकल काउंसिल से रजिस्टर्ड हों. इसका उल्लंघन करने पर 1000 रुपए का फाइन और अधिकतम एक साल की जेल है. लेकिन आईपीसी के मुताबिक चूंकि यह नॉन कॉग्निजेबल ऑफेंस है, इसलिए ऐसे लोगों को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाती है.

झोलाछाप डॉक्टर कहना बंद करे:

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में अपनी सेवा दे रहे ग्रामीण चिकित्सकों की सेवा को नकारा नही जा सकता है। इस कोविड महामारी में जहां सामान्य जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है अस्पतालों में कोरोना ईलाज के लिए लंबी लंबी लाइने लगी हुई है, वहीं ग्रामीण चिकित्सक अपनी जान चोखिम में डालकर सुदूर गांवों तक अपनी सेवाएं देकर ग्रामीण लोगों को स्वास्थ्य लाभ दे रहे है। सम्भवतः यही कारण है कि ग्रामीण अंचलों में कोरोना महामारी का प्रकोप ज्यादा नही देखा गया है अन्यथा यह महामारी ग्रामीण क्षेत्रों में एक विकराल रूप ले लेती। अगर झोलाछाप डॉक्टर एक दिन का हड़ताल कर दें तो यहां सैंकड़ों की मौत हो जाएगी. ग्रामीण स्वास्थ्य को वही संभाले हुए हैं.
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि महामारी के इस विकट परिस्थिति में ये झोलाछाप ग्रामीण जनता के संकटमोचक हैं या लोगों की जान से खेलने वाले कानूनी तौर पर गुनहगार?


छत्तीसगढ़ शासन को चाहिए कि वह भी बिहार/झारखंड राज्य सरकार अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे चिकित्सक वर्ग के लिए अध्यादेश लाएं और प्रशिक्षण उपरांत इन्हें ग्रामीण चिकित्सक का दर्जा दिया जाए और झोलाछाप डॉक्टर नाम के अभिशाप से मुक्त किया जाए।