बाघ विहीन जंगल की राह पर चल पड़े रहीम..!, यही रहा रवैया तो छिन सकता है टाइगर स्टेट का दर्जा

कई राज लिए ख़ाक हुई सोलो के मौत की गुत्थी सुलझाने में पार्क प्रबंधन हो रहा नाकामियाब

उमरिया।भारत में सर्वाधिक बाघों के घनत्व का दर्जा प्राप्त करने वाला टाइगर रिजर्व बाँधवगढ़ बाघों का कब्रगाह बनता जा रहा है। भारी भरकम बजट के साथ ही एनटीसीए के कड़क दिशा निर्देशों के बाद भी वन्यप्राणियों के लिए प्रबंधन बेहतर विकल्प तैयार नहीं कर पा रहा है। शायद यही वजह है कि बाघों के सम्राज्य का दम भरने वाला बाँधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघ अब सुरक्षित नहीं है, और इसका अंदेशा लगातार हुए बाघ और बाघ शावकों के मौत से लगाया जा सकता है। विगत दिनों पहले बांधवगढ़ में प्रसिद्ध बाघिन T42 सोलो और उसी के साथ एक शावक के शव मिलने की खबर जैसे ही प्रकाश में आई मानो वन्यप्रेमियों को एक न सिर्फ गहरा सदमा लगा बल्कि सोलो के तीन अन्य बाघ शावकों के लापता होने से वन्यप्रेमी और आम जन चिंतित भी है। बीते दिनों हुए इस घटना की पोल कहीं लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले कलमकार न खोल दें इस भय से पार्क प्रबंधन ने उपरोक्त घटना में लीपापोती के उद्देश्य से आनन-फानन में प्रबंधन द्वारा ऊपर का आदेश बताते हुए घटना के दौरान घटना स्थल में कवरेज के लिए मीडिया को रोक दिया गया और न ही कोई वीडियो य फोटो लेने दिया गया जबकि सूत्रों के अनुसार अभी तक न पार्क प्रबंधन और उसकी टीम बाघों के मौत का सही कारण तलाश पाई है और न ही उसके तीन अन्य शावको का पता लगा पाया है, जबकि प्रबंधन एक शावक को देखने का दम जरूर भर रहा है। ऐसे में लचर व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे बाघों के रक्षकों के ऊपर ही अब वन्यप्रेमी प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं जिसकी चर्चा बाँधवगढ़ से लेकर एनटीसीए के कार्यालय में तो हो ही रही है साथ ही देश-प्रदेश की राजधानी में भी लगातार टाइगर स्टेट में हुई बाघों और शावकों की मौत ने चर्चा छेड़ दी है की बाघों की नगरी में बाघ सुरक्षित नहीं हैं।

हर मौत का एक ही जवाब प्रबंधन के पास..!

T42 बाघिन सहित एक शावक के मरने के बाद प्रबंधन द्वारा मीडिया पर किए गए ऐसे कृत्य पर न सिर्फ वन्यजीव प्रेमी व जन नागरिक भी प्रश्न चिन्ह लगा रहे है वहीं सूत्रों की माने तो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के कार्यकाल में जितने भी बाघों की मृत्यु हुई किसी भी बाघों के रिपोर्ट का खुलासा आज तक नहीं हुआ और न ही विसरा जांच का पता चल सका मामला कुछ दिनों तक गर्म रहा बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया वहीं बताया गया कि कई घटनाओं में तो प्रबंधन के पास एक ही जवाब टेरिटोरियल फाइटिंग रहता है। सूत्रों की माने तो इसके पूर्व का भी बाघों के मृत्यु के संबंध में सभी रिकॉर्ड केवल कागजों में सिमट कर रह गए हैं।

जानकारी के बाद मुंह मोड़ लेता है प्रबंधन :

जिम्मेदार प्रबंधन को कई बार वाइल्डलाइफ संबंधित वन भूमि अतिक्रमण व पर्यटन क्षेत्र में हो रहे वन्य प्राणियों का शोषण के संबंध में जानकारी दी गई किंतु कोई भी कार्यवाही पार्क के मुखिया द्वारा नहीं की गई साथ ही सूत्रों का यह भी कहना है कि क्षेत्र संचालक के साथ कुछ ऐसे लोगों को उनके वाहन में व साथ में बैठना उठना देखा गया है जिनके ऊपर कई तरह के आरोप भी पूर्व में लग चुके हैं लेकिन साहब का याराना है कि उनसे छूट नहीं पा रहा है.

निगरानी में लगे हाथीयों पर शंका :

वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि वर्ष 2010 में प्रबंधन के अधिकारियों-कर्मचारियों के मिलीभगत पर अन्य के उपर झोरझरा फीमेल नामक बाघिन का रहस्यमय तरीके से हुई मौत के संबंध में आरोप भी तय हुए थे लोगों में चर्चाएं हैं कि कहीं ऐसे कृत्य की पुनरावृत्ति वर्तमान प्रबंधन के द्वारा तो करके छुपाया नहीं जा रहा है। झोरझरा बाघिन के मौत पर वर्ष 2010 में तत्कालीन क्षेत्र संचालक सी के पाटिल ने तो वन्यप्राणियों के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होकर दूध का दूध पानी का पानी कर कार्यवाही के लिये कदम बढ़ा लिया था भले उस केस में पार्क प्रबंधन के अमला रहे हो किंतु सभी के ऊपर कार्यवाही की थी लोगों का मानना है कि क्या वर्तमान क्षेत्र संचालक वर्ष 2010 के क्षेत्र संचालक की तरह न्यायिक कार्यवाही कर पाएंगे..? जानकारी अनुसार हाल ही में एक शावक के साथ ही जिस बाघिन की मौत हुई है उसकी निगरानी में प्रबंधन ने हाथीयों की फौज खड़ी कर दी थी लेकिन तब पर भी उसे बचाया नही जा सका। सूत्रों की माने तो ग्रामीण तक यह शंका व्यक्त की जा रही थी कि रक्षा में जिन हाथियों की तैनाती की गई थी उसी के कारण बाघिन की मौत हुई है, जबकि कई लोग तरह तरह के अनुमान लगा रहे हैं, लेकिन टी 42 की मौत राज लिये खाक में मिल गई है।

सवालों के घेरे में प्रबंधन :

वहीं बाघिन की मौत को लेकर वन्य जीव प्रेमियों का कहना है कि संरक्षित क्षेत्र के बहुत बड़े ग्रास लैंड और पानी को छोड़कर बाघिन अपना इलाका क्यों बदली और बाघिन की निगरानी में जब हाथी लगे थे तो बाघिन व शावक की मौत कैसे हुई..? सूत्रों की माने तो उपरोक्त बाघिन का शव क्षत-विक्षत की स्थिति में मिला ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि हाथी के गश्त के दौरान ऐसे रहस्यमय तरीके से मौत कैसे हो गई.? वहीं जानकारी अनुसार बाघिन के शव क्षत-विक्षत को देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उपरोक्त जगह पर प्रबंधन का कोई भी आमला गस्त नहीं कर रहा था। अलबत्ता मीडियाकर्मियों के नजर से बाघ को बचाकर आनन फानन में जला देना कहीं न कहीं अपने आप में कई राज लिए हुए है जिसका सच सामने कैसे आएगा यह एक चिंतनीय प्रश्न बना हुआ है। तो वहीं प्रबंधन की करतूतों ने उसे स्वयं ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है, जिससे लोग यह चर्चा करते नहीं थक रहे हैं कि फील्ड डायरेक्टर बाघ विहीन जंगल की राह पर निकल पड़े हैं।

इन्होंने कहा -

मामले को लेकर क्षेत्र संचालक से संपर्क किया गया तो उनका फोन कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था - विंसेंट रहीम, क्षेत्र संचालक, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व