तम्बौर- सादगी से मोहर्रम मनाने की क़स्बे के बुद्धिजीवियों ने की अपील

सादगी से बनाये मोहर्रम
तम्बौर सीतापुर/ तंबौर क़स्बे के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने मोहर्रम में मजलिसों के एहतेमाम को लेकर सादगी और सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के साथ इस गम की याद को ताजा रखने की क्षेत्र वाशियों से अपील की है मौलाना अबुल खैर नदवी ने कहा कि अपने घरों में ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रोग्राम करें और कोविड-19 के इस दौर में सरकार का सहयोग करें। मुन्ना मुज़म्मिल खान ने कहा कि कोरोना महामारी में शुक्रवार को पहले मोहर्रम की सुरुआत हो गयी है मोहर्रम कोई त्यौहार नही बल्कि मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अ. स. के द्वारा आज से 1442 साल पहले कर्बला के मैदान में जुल्म और आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठायी गयी थी। समाजसेवी फारूक अंसारी ने कोरोना वायरस के चलते मोहर्रम पर शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए कहा कि इमाम हुसैन ने आ स ने यजीद नामक दुनिया के पहले आतंकवादी के आगे सिर न झुकाते हुए शहिद हो गए थे। मोहर्रम इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के द्वारा दी गयी शहादत की एक गमगीन शहादत की यादगार है। हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की अनोखी मिसाल है। हाजी अज़ीज़ अहमद गौरी ने मोहर्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मोहर्रम का इतिहास जुल्म और आतंकवाद के खिलाफ जंग का नाम है। पैगम्बर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एंव उनके साथियों की शहादत याद में मोहर्रम मनाया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम हिजरी संवत का प्रथम मास है। इस माह की उनके लिए बहुत विशेषता और महत्ता है। समाजसेवी सय्यद मो0 रेहान ने कहा कि मोहर्रम एक महीना है। जिसमे दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाया जाता है। इस महीने में मुसलमानों के सबसे चहेते पैगम्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पवित्र मक्का पवित्र नगर मदीना में हिज़रत किया था। नगर अध्यक्ष जावेद नेता ने मोहर्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इतिहास-कर्बला यानी आज का सीरिया जहां सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का ख़लीफ़ा बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था। जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी भल पैगम्बर मुहम्मद साहब के खानदान का इकलौते चिराग इमाम हुसैन जो किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।