सभ्यता एवं संस्कृति सदैव परिवर्तनशील- सच्चिदानंद सिंह

सच्चिदानंद सिंह की कलम से
उप निरीक्षक
थाना कोतवालीजनपद वाराणसी

सभ्यता एवं संस्कृति सदैव परिवर्तनशीलऔर यही परिवर्तनशीलता उसकी विशिष्टता है| विश्व इतिहास में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब वह जड़ता को त्याग कर नवीनता को ग्रहण करता है और ऐसी स्थिति में समाज को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है| यदि हम विश्व इतिहास के क्रम को देखें तो पाएंगे की समस्त उपलब्धियों का सार चुनौतियों एवं संघर्ष की कहानी है| यदि किसी समाज एवं राष्ट्र के समक्ष कोई चुनौती नहीं है तो इसका तात्पर्य है की वह धीरे-धीरे जड़ता को प्राप्त कर अपनी अस्मिता को नष्ट कर रहा है |

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पिछले कुछ वर्षों से विश्व पटल पर जिस तरह से भारत ने आर्थिक ,सांस्कृतिक ,राजनीतिक एवं कूटनीतिक बढ़त हासिल की है एवं विश्व के अग्रणी एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है वह अतुलनीय है| भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा उसकी आंतरिक रुग्णता है | यह उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ महीनों से भारत मां के दामन में नासूर बन चुके घावों की शल्य चिकित्सा लगातार जारी है ऐसी स्थिति में हमे विशेष आत्मबल की आवश्यकता है| ट्रिपल तलाक, पाक एवं चीन सीमा विवाद, सर्जिकल स्ट्राइक ,जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन, राम जन्मभूमि एवं बाबरी मस्जिद विवाद, नागरिकता संशोधन विधेयक आदि पर जिस तरह से निष्पक्ष एवं में साहसपूर्ण निर्णय लिए गए हैं वह भारत को एक नई दिशा प्रदान कर विश्वगुरु के रूप में स्थापित करेंगे। भारत के विभाजन से लेकर आज तक ना जाने ऐसे कितनी विकट परिस्थितियां आई जब हमने उन चुनौतियों का डटकर सामना किया एवं निरंतर आगे बढ़े ।ऐसी परिस्थिति में समाज के पास सबसे बड़ा हथियार धैर्य होता है। आज एक बार पुनः आवश्यकता है कि हम राष्ट्र निर्माण में अपने संकीर्ण स्वार्थो की आहूति देकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना से भारत के विशाल हृदय को चरितार्थ करें।

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"खुद में आग लगा इतनी की दुश्मन सारे जल जाये,
शंकर बन भारत के हम सारे विष को पी जाये।"
जय हिंद